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आगाज नये साल का

नये साल की पहली सुबह जब वक्त नये कलेवर में आता है, तब हम भी नये अहद-ओ-वादा का दामन थामे नये सफर की ओर चलते हैं. यह ऐसा मौका भी होता है, जब हम बीते साल के सुख-दुख और हासिल को तजुर्बे और याद की गठरी में समेट लेते हैं तथा फिर से जिंदगी जीने […]

नये साल की पहली सुबह जब वक्त नये कलेवर में आता है, तब हम भी नये अहद-ओ-वादा का दामन थामे नये सफर की ओर चलते हैं. यह ऐसा मौका भी होता है, जब हम बीते साल के सुख-दुख और हासिल को तजुर्बे और याद की गठरी में समेट लेते हैं तथा फिर से जिंदगी जीने और उससे जूझने के लिए तैयार होते हैं.
शायर नजीब अहमद ने क्या खूब फरमाया है- ‘हर एक सांस नया साल बन के आता है/ कदम कदम अभी बाकी है इम्तहां मेरा.’ गुजरा साल हमारे लिए निजी तौर पर जैसे कुछ अच्छा और कुछ खराब रहा, उसी तरह से देश और दुनिया के खाते में भी कुछ भला और कुछ बुरा आया. धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण और रंग के विभेद अब भी हमारे समय के कठोर सच हैं. हिंसा, अशांति, उपद्रव और उन्माद से मुक्ति का सपना अब भी दूर की कौड़ी है. मनुष्यता को रचने-पोसनेवाली आधी आबादी को बराबरी का दर्जा अब तक नहीं मिल सका है तथा बीते साल भी महिलाओं की सिसकियां और चीखें हमने सुनीं. मजदूरों और किसानों के खून-पसीने की कीमत अदा कर पाना तो दूर, हम कायदे से उनको शुक्रिया अदा भी नहीं कर सके हैं.
इक्कीसवीं सदी की यह दूसरी दहाई है और बीती कुछ सदियों की तुलना में अमीर-गरीब के बीच की खाई सबसे ज्यादा है. देश के कुछ हिस्सों में आतंक और अलगाववाद के हमले हुए, तो सीमा-पार से घुसपैठ और गोलाबारी का सिलसिला भी बदस्तूर जारी रहा. एक पड़ोसी देश ने भी अपने जोर से धमकाने की कोशिश की. ऐसे में उम्मीद और भरोसे को कायम रखा सीमा पर और सीमा के भीतर मुस्तैद सैनिकों और सिपाहियों ने.
उनकी शहादत और बहादुरी ने हमें हौसला दिया. समाज को तोड़ने की कोशिशों के बरक्स आम जन ने एक-दूसरे का हाथ भी थामा. घर की चौखट से रोजगार और व्यवसाय में स्त्रियों ने अपनी हकदारी के दायरे को विस्तार दिया. पिछली फसल के हिसाब-किताब से निराश किसान कल की खुशियों के वास्ते खेत पर जाता रहा. नौकरीशुदा, कारोबारी और उद्यमी मेहनत करते रहे. यह सब हुआ, तभी तो समाज भी बचा और बना हुआ है तथा अर्थव्यवस्था भी पटरी पर है. खामियों के बावजूद लोकतंत्र मजबूत हुआ है.
लोकतंत्र का पहरुआ मीडिया सवालों के घेरे में रहा, पर सच यह भी है कि सरकार और नागरिक के बीच जरूरी कड़ी की भूमिका भी उसने बखूबी अदा की. सोशल मीडिया और इंटरनेट पर झूठ और फरेब बहुत परोसे गये, पर इन माध्यमों ने लोगों को मुखरता भी दी और लामबंद करने में सहायक भी हुआ. इन सब खूबियों और खामियों के साथ हम नये साल में हैं. नया साल बेहतर हो, इसके लिए जरूरी है कि हम सभी अपने निजी, सामाजिक और सार्वजनिक भूमिकाओं को ज्यादा जिम्मेदारी और मजबूत साझेदारी के साथ निभाएं.

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