नये साल के पहले दिन में
रविभूषण वरिष्ठ साहित्यकार सबसे पहले सभी पाठकाें को नये वर्ष की मंगलकामनाएं! आज सुबह-सवेरे से नये वर्ष की शुभकामनाओं और ‘हैप्पी न्यू ईयर’ का जो सिलसिला चल रहा है, वह शायद शाम और रात तक चलेगा. नये साल का पहला दिन अन्य दिनों से इस अर्थ में भिन्न है कि इस दिन से पूरा साल […]
रविभूषण
वरिष्ठ साहित्यकार
सबसे पहले सभी पाठकाें को नये वर्ष की मंगलकामनाएं! आज सुबह-सवेरे से नये वर्ष की शुभकामनाओं और ‘हैप्पी न्यू ईयर’ का जो सिलसिला चल रहा है, वह शायद शाम और रात तक चलेगा. नये साल का पहला दिन अन्य दिनों से इस अर्थ में भिन्न है कि इस दिन से पूरा साल आरंभ होता है. यह नये वर्ष का स्वागत-दिवस है.
ईसा के दो हजार वर्ष पहले मेसोपोटामिया में नववर्षोत्सव आरंभ हुआ था. आधुनिक ग्रेगोरियन कैलेंडर में 1 जनवरी को नये वर्ष पहला दिन माना गया. जूलियन कैलेंडर में भी पहली जनवरी नया वर्ष है.
चार हजार वर्ष पहले बेबीलोन में 21 मार्च नये वर्ष का त्योहार था. यह समय वसंतागमन का हुआ करता था. जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व पैंतालीसवें वर्ष में जूलियन कैलेंडर की स्थापना की थी और उसी समय से 1 जनवरी नये वर्ष का उत्सव-दिवस बना.
भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तिथियों को नया वर्ष मनाने की परंपरा है. पंजाब, बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू, कश्मीर, गुजरात आदि राज्यों में नये वर्ष की भिन्न तिथियां हैं.
जिन राज्यों में नये वर्ष की अपनी अलग तिथि है, वहां भी आज का दिन नया वर्ष है. पहली जनवरी की प्रतीक्षा आगामी कल और वर्षारंभ की है. वर्षांत में हम सब वर्षभर के कार्यों की समीक्षा करते हैं और वर्षारंभ में कई संकल्प लेते हैं, योजनाएं बनाते हैं. मनुष्य हर्ष, आनंद, उत्साह और उल्लास का समय और दिन सदैव खोजता रहा है. चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन गुड़ी पड़वा पर नया वर्ष मनानेवाले भी पहली जनवरी की प्रतीक्षा करते हैं.
समय की गति निर्बाध है. प्रत्येक क्षण व्यतीत होता जाता है और जिसे हम वर्तमान कहते हैं, उसकी मौजूदगी अतीत और भविष्य के बीच है. स्मृति और स्वप्न के बीच. इस स्मृति और स्वप्न के कारण मनुष्य समय की रचना करता है.
समय हमें रचता है और हम समय को रचते हैं. समय की रचना सब नहीं कर पाते. आवश्यक है इसके लिए समय की सही पहचान और उसे अपने अनुकूल मोड़ देने की सामर्थ्य. समय या तो हमारे अनुकूल होता है या फिर प्रतिकूल. समय को अपने अनुकूल करने के लिए हम संघर्ष करते हैं.
समय के साथ प्रवाहित होना समयानुकूल होना है, व्यावहारिक होना है और समय को एक वृहत्तर उद्देश्य और लक्ष्य के लिए मानव-हित में मोड़ना संघर्षरत होना है. समय के साथ होना और समय से संघर्ष करने में अंतर है. साथ सब होते हैं और संघर्षरत व्यक्तियों की संख्या सदैव कम रही है.
समय को अनुकूल करने के लिए समय से, उससे उत्पन्न, स्थितियों से निरंतर संघर्ष आवश्यक है. यह श्रम-कर्म है. संघर्ष विकास, श्रम विमुख, कर्म विमुख होकर समय की रचना नहीं की जा सकती. समय का दास बना जा सकता है, जो आसान है. यह एक प्रकार का यथास्थितिवाद है. जीवन में इससे बड़ा बदलाव नहीं आता. हम भौतिक रूप से समृद्ध और आंतरिक-वैचारिक रूप से निर्धन बन जाते हैं. समय निरंतर गतिशील है और वह हमें सदैव सक्रिय, कार्यरत और गतिशील बने रहने को प्रेरित भी करता है.
सभी सर्जक भी काल से होड़ नहीं लेते (काल तुझसे होड़ है मेरी : शमशेर)
हमारा समय ‘सेल्फ’ और ‘सेल्फी’ का है. इसी से जुड़ा शब्द ‘सेल्फिश’ भी है. औपचारिक-अनौपचारिक, आत्मीय-अनात्मीय रूप में हम सब एक दूसरे को बधाइयां देेते हैं, संग-साथ होते हैं. यह संग-साथ हमेशा का नहीं होता. हम ‘स्व’ की अधिक चिंता करते हैं, ‘अन्य’ की कम. वास्तविक हर्षोल्लास उस गहरी आत्मीयता में है, जो क्रमश: विलुप्त होती जा रही है.
आत्मीयता का ह्रास मनुष्यता का ह्रास है. फिर बच जाता है केवल मानव-तन. तन और धन में सिमटते जाने से हमारा मन भी छोटा होता जाता है और हम क्रमश: जन से दूर होते जाते हैं. राजनीति और अर्थनीति फिलहाल जिस चाल में है, उससे उसके चाल-चलन व्यवहार को समझना कठिन नहीं है. वह अपने अनुसार अपने हित में मूल्य-रचना करती है. उसकी चिंता में सब नहीं होते. सहजता, सरलता, मनुष्यता इन सबके लिए वहां अधिक स्थान नहीं है.
दिल से की गयी दुआ, कहते हैं, लगती है. पर ‘दिल मांगे मोर’ वाले समय में क्या सचमुच दिल से दुआएं निकलती भी हैं? निश्चित रूप से भाषा महत्वपूर्ण है. एक ‘नीच’ शब्द संदर्भ-विछिन्न होकर किस प्रकार ऊंचा स्थान पा लेता है, सब देख चुके हैं. औपचारिक कथनों का, उपहारों और ग्रीटिंग्स कार्डों का भी अपना महत्व है, पर यह सर्वस्व नहीं है. सर्वस्व तो आज भी गहरी आत्मीयता, पर-दुख कातरता, अपनापन, भाईचारा और मेल-मिलाप ही है.
हमारे समय में विभाजनकारी शक्तियां अधिक प्रबल हैं. नये वर्ष में क्या हम इन शक्तियों को कमजोर करने का संकल्प लेंगे? क्या हम यह संकल्प लेंगे कि इस वर्ष हम सचमुच ‘मनुष्य’ बनें? जिनके पास पद, धन और सत्ता है, वे अपने अहं का नाश करेंगे? यह दिन हमारी मंगल कामना का है.
हमारा मंगल और कल्याण मेल-मिलाप में है. गरीबी घटे, भूख से कोई मौत न हो, हम लफ्फाज न बनें, बाजार के गुलाम न बनें, विवेकवान और तार्किक बनें, एक सभ्य सुसंस्कृत समाज की रचना में यथासंभव यथाशक्ति उन्मुख हों, सृजनरत हों, श्रमरत-कर्मरत हों, प्रगतिशील, जीवनदायी शक्तियों के साथ हों, मिलें-जुलें, साथ-साथ चलें, गुनगुनाएं- सर्वे भवंतु सुखिन:.
आज का पूरा दिन हमारे हाथ है और शेष हैं 364 दिन और. यह पूरा वर्ष गले-गले मिलने का हो, न कि एक-दूसरे का गला काटने का. वैसे आततायियों के खिलाफ यह पूरा वर्ष हो.