कायराना हरकत

किसी मुल्क की विदेश या रक्षा नीति में बदलाव रोज की बात नहीं. नीतिगत लक्ष्य चाहे रोजमर्रा के हिसाब से बदल भी जाएं, पर नीतिगत दृष्टि लंबे समय तक बनी रहती है. कश्मीर में अशांति भड़काये रखना पाकिस्तान की भारत-केंद्रित विदेश नीति का हिस्सा है और इसके पीछे दृष्टि भारत में अस्थिरता फैलाने की है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 2, 2018 6:27 AM

किसी मुल्क की विदेश या रक्षा नीति में बदलाव रोज की बात नहीं. नीतिगत लक्ष्य चाहे रोजमर्रा के हिसाब से बदल भी जाएं, पर नीतिगत दृष्टि लंबे समय तक बनी रहती है. कश्मीर में अशांति भड़काये रखना पाकिस्तान की भारत-केंद्रित विदेश नीति का हिस्सा है और इसके पीछे दृष्टि भारत में अस्थिरता फैलाने की है. पाकिस्तान की इस दृष्टि के लक्ष्य बदलते रहते हैं. कभी सीमा पार से होनेवाली घटनाओं में कमी आती है, तो कभी उनमें हैरतअंगेज तेजी आती है.

दक्षिण कश्मीर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की चौकी पर आतंकी गिरोह जैश-ए-मोहम्मद के हमले को इस परिप्रेक्ष्य में भी देखा जाना चाहिए. इस आतंकी हमले में पांच जवान शहीद हुए और तीन आतंकियों को मार गिराया गया. घटना नये साल की पूर्व-संध्या पर हुई. सो, इसका प्रतीकात्मक अर्थ भी है. सवाल है कि पाकिस्तान में पल रही आतंकी जमातें घुसपैठ के जरिये कश्मीर में दहशतगर्दी के मंसूबे पूरे करने पर उतारू हैं, तो भारत क्या रुख अपनाये?

इसके जवाब के लिए पिछले एक साल के कश्मीर के हालात को देखना होगा. इस साल एक तो अलगाववादी हुर्रियत से जुड़े कुछ नेता जेल भेजे गये. दूसरे, पाकिस्तान से हुर्रियत के नेताओं को हवाला के जरिये रकम मिलने की बात सामने आयी है. बुरहान वानी की मौत के बाद उपजे आक्रोश के कमजोर पड़ने में इन बातों का भी बड़ा हाथ है.

तीसरे, कश्मीर में जारी आतंकी गतिविधियों में जाकिर मूसा ने कदम रखा. हिज्बुल से जुड़े इस आतंकी ने कश्मीर के कथित संघर्ष को एशिया में इस्लामी राज कायम करने का संघर्ष बताया है. हिज्बुल और हुर्रियत दोनों ने जाकिर मूसा के इस बयान से अपने को अलग किया. यह उनकी मजबूरी है, क्योंकि पाकिस्तानी खुफिया संस्था आइएसआइ और अल-कायदा के विचार से अपने को अलग करके ही हुर्रियत या हिज्बुल अपनी कारस्तानियों के लिए सियासी तर्क गढ़ सकते हैं. जाकिर मूसा के बयान के बाद कश्मीर में जारी अशांति का कथानक आंतरिक तौर पर बदला है और अलगाववादी आंदोलन को आजादी की लड़ाई मानकर उसमें शामिल हुए नौजवानों के सामने एक हद तक मोहभंग की हालत है.

इन बातों से कश्मीर के हालात को लेकर जो तस्वीर उभरती है, उसमें एक तरफ भारतीय सुरक्षाबलों की मुस्तैदी की रंग-रेखाएं हैं, तो दूसरी तरफ अलगाववादी हुर्रियत की कमजोर पड़ती साख और घाटी में कमजोर पड़ते पाकिस्तान के फैलाये नेटवर्क के संकेत भी. घाटी में अपने मोहरे पिटते देख पाकिस्तान ने घुसपैठ को तेजी दी है.

पिछले तीन साल की तुलना में 2017 में सीमा पर संघर्ष-विराम के उल्लंघन, गोलाबारी, नागरिकों के हताहत होने तथा आतंकियों के मार गिराये जाने की घटनाओं में बढ़ोत्तरी इसी का संकेत है. सरकार को कश्मीर में संभलती स्थिति के मद्देनजर सुरक्षा-बलों की चौकसी तथा कूटनीति के मोर्चे पर तेवर को धारदार करना होगा. साथ ही कश्मीर के मसले से जुड़े पक्षों से बातचीत की प्रक्रिया को तेज करना होगा.

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