शिलान्यास के एक साल बाद भी गोड्डा में 1320 मेगावाट के जिंदल स्टील एंड पावर प्लांट (जेएसपीएल) के प्लांट की नींव तक नहीं डाली जा सकी और गोड्डा के लोगों को अब भी भरोसा होगा प्लांट के लगने का. समस्या सिर्फ यह तकनीकी अड़चन नहीं है कि भूमि अधिग्रहण नहीं हो सका. भूमि अधिग्रहण हो भी जाता तो जरूरी नहीं कि प्लांट लग भी जाता और तय अवधि में काम शुरू हो जाता.
कंपनी के जीएम (कॉरपोरेट मामले) का तो बोलना है कि चहारदीवारी का आंशिक निर्माण हुआ है. सवाल है कि भूमि अधिग्रहण ही नहीं हुआ तो किसकी चहारदीवारी? उनका यह भी कहना है कि जमीन का काम लंबित है. कहते हैं : कंपनी में जमीन को लेकर कोई आंतरिक जांच नहीं चल रही है. काम शुरू होने की वे उम्मीद कर रहे हैं. यह सिर्फ जेएसपीएल की बात नहीं.
धनबाद में टाटा पावर व डीवीसी के संयुक्त उद्यम एमपीएल के लिए भूमि अधिग्रहण की समस्या का हल टाटा ने अपने फॉमरूले के तहत ढूंढ़ लिया. आंशिक तौर पर समस्या अब भी प्रगट हो रही है. बोकारो के चंदनकियारी में इलेक्ट्रोस्टील ने अपना संयंत्र खड़ा कर तो लिया, पर काम शुरू करने में अड़चन ही अड़चन है. यह सब केस स्टडी है, जिसके आधार पर नये आनेवाले संयंत्रों के लिए होमवर्क की पृष्ठभूमि बनती है. यही कारण है कि सारे किंतु-परंतु के बाद भी सिंदरी खाद कारखाने का पुनरुद्धार स्वप्न ही रह गया. नेताओं ने कई सब्ज बाग दिखाये थे.
इसके पुनरुद्धार के लिए सेल के सामने आने से दम तोड़तीं उम्मीदें हरी हो उठी थीं. सब कुछ क्षणिक था. यहां राज्य सत्ता की फांस में मामला दम तोड़ने लगा है. कहां तो सिंदरी प्रोजेक्ट लिमिटेड की महत्वाकांक्षी योजना के साथ सेल आगे आया था. यहां कारखाना और कर्मचारी आवास करीब हजार एकड़ भूमि में फैले हुए हैं. कारखाने की जमीन पर एक बड़ी आबादी बसी है. राज्य सरकार यदि अपने स्तर से भूमि हस्तांतरण कर भी दे तो संयंत्र के लिए अपेक्षित जमीन से भरी-पूरी आबादी को एक दिन में नहीं हटाया जा सकता है. सत्ता प्रतिष्ठान और राज्य सत्ता की सीमाएं तो हैं, पर अंतर्विरोध से उबरने के लिए अपेक्षित आत्मबल व योजना पर अमल के लिए संकल्प की घोर कमी के कारण ऐसी मिसालें आती रहेंगी.