आर्थिक वृद्धि दर के बारे में सांख्यिकी कार्यालय के पहले पूर्वानुमान एक तरफ अर्थव्यवस्था की दशा के बारे में कुछ चिंताओं को रेखांकित करते हैं, तो दूसरी ओर उसकी दिशा के बारे में आशाएं भी जगाते हैं. अनुमानों के अनुसार 2017-2018 के वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पादन के बढ़ने की दर 6.5 फीसदी रह सकती है, जो कि पिछले वर्ष की 7.1 फीसदी से कम है.
चार सालों में यह सबसे कम वृद्धि दर है. वित्त वर्ष की पहली छमाही में यह दर जहां छह फीसदी रही थी, वहीं दूसरी छमाही में इसके सात फीसदी होने से आगामी वित्त वर्ष के लिए उम्मीदें भी मजबूत हुई हैं. आकलन में पहली छमाही की कमी का मुख्य कारण वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली (जीएसटी) लागू होना था नोटबंदी के असर का जारी रहना बताया गया है.
यदि दूसरी छमाही की बढ़त यह इंगित करती है कि अर्थव्यवस्था लगातार दो बड़े सुधारों के झटके के बाद फिर से पटरी पर आ रही है. पिछले साल की तुलना में निवेश में दोगुनी बढ़त भी अच्छा संकेत है. लेकिन वृद्धि दर के आकलन के सही होने के लिए जरूरी है कि बजट लक्ष्यों को पूरा किया जाये. वित्तीय घाटे का जीडीपी का 3.2 फीसदी होने का जो आकलन बीते बजट में पूरे साल के लिए किया गया था, वह नवंबर के अंत में ही पूरा हो गया है. हालांकि 50 हजार करोड़ की अतिरिक्त लेनदारी और घाटे में 0.5 फीसदी के योग से इस कमी की भरपाई हो सकती है. वित्तीय घाटे के अनुरूप ही लेनदारी और ब्याज दर तय होती हैं. कई अन्य मोर्चों पर चिंताएं अभी बनी हुई हैं. खरबों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां और लंबित परियोजनाएं अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौतियां हैं.
बैंकिंग सुधार के कदमों तथा बैंकों को पूंजी मुहैया कराने के फैसलों के नतीजों का भी इंतजार है. कृषि क्षेत्र में जोरदार उत्पादन के बावजूद संकट बना हुआ है और खेती में वृद्धि दर अपेक्षित स्तर से कम है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती पर बाजार का स्वास्थ्य बहुत हद तक निर्भर करता है. मैनुफैक्चरिंग और उपभोग में बढ़त के संकेत तो हैं, पर अभी वे मुश्किल से उबर नहीं पाये हैं. आइटी सेक्टर समेत सभी प्रमुख क्षेत्रों में रोजगार की कमी भी बड़ा सिरदर्द है.
ये सभी मुद्दे आगामी बजट के प्रावधानों और नीतिगत निर्णयों को प्रभावित करेंगे. लेकिन मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में वृद्धि दर का सात फीसदी का आंकड़ा छूना संतोष की बात है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह भी भरोसा दिलाया है कि बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराने के बाद उनके प्रदर्शन पर नजर रखी जायेगी.
इससे वित्तीय अनुशासन कायम करने में मदद मिलेगी और पूंजी का इस्तेमाल सावधानी से हो सकेगा. वैश्विक उथल-पुथल के दौर में भी भारतीय अर्थव्यवस्था संतुलित है तथा उम्मीद है कि आगामी वित्त वर्ष में बेहतर वृद्धि दर हासिल कर पाना बहुत कठिन नहीं होगा.