भारत-अमेरिका में एच-1बी की फांस
आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर अमेरिकी पत्रकार माइकल वूल्फ की एक किताब- फायर एंड फ्यूरीः इनसाइड द ट्रंप व्हाइट हाउस, सामने आयी. इस किताब में ट्रंप को एक ऐसे बेसब्र व्यक्ति के तौर पर दिखाया गया है, जिसकी नीतियों में स्थिरता नहीं है और जो अपनी ही […]
आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर अमेरिकी पत्रकार माइकल वूल्फ की एक किताब- फायर एंड फ्यूरीः इनसाइड द ट्रंप व्हाइट हाउस, सामने आयी. इस किताब में ट्रंप को एक ऐसे बेसब्र व्यक्ति के तौर पर दिखाया गया है, जिसकी नीतियों में स्थिरता नहीं है और जो अपनी ही बातें दोहराता रहता है. ट्रंप प्रशासन ने किताब को बाजार में आने से रोकने की पुरजोर कोशिशें कीं. इसके बावजूद इस किताब की बिक्री शुरू हो गयी है और यह किताब बेस्टसेलर बन गयी है.
हालांकि इसमें कही गयी बातों को ट्रंप प्रशासन ने खारिज किया है. ट्रंप ने ट्वीट कर कहा है कि वह जीनियस हैं. इस किताब से अमेरिकी राष्ट्रपति के व्यक्तित्व की एक झलक तो मिलती ही है. किताब में कहा गया है कि व्हाइट हाउस शिफ्ट होने के बाद ट्रंप किसी को अपना टूथब्रश नहीं छूने देते थे. यहां तक कि वह अपनी शर्ट को भी हाथ नहीं लगाने देते थे. दरअसल उन्हें जहर दिये जाने का डर सताता रहता था.
एक बार हाउसकीपिंग स्टाफ जमीन पर गिरी उनकी शर्ट उठाने लगा, तो उन्होंने डांटते हुए कहा कि अगर उनकी शर्ट जमीन पर गिरी है, तो इसलिए, क्योंकि वह ऐसा चाहते हैं. इसके बाद उन्होंने व्हाइट हाउस में कुछ नये नियम बनाये कि कोई भी कुछ नहीं छुयेगा, खासकर उनका टूथब्रश. साथ ही जब बेडशीट बदलनी होगी, तो वह खुद हाउसकीपिंग को बतायेंगे.
उनका दिमागी फितूर उनके फैसलों में भी दिखायी देता है. उनकी नीतियां वैश्वीकरण के खिलाफ हैं और संरक्षणवादी हैं, जबकि अमेरिका अब तक वैश्वीकरण का सबसे बड़ा पक्षधर और हमेशा संरक्षणवाद के खिलाफ रहा है. अमेरिका इसलिए ताकतवर और सफल रहा है कि उसने दुनिया की प्रतिभाओं को अपने यहां खुले दिल से आमंत्रित किया और इन प्रतिभाओं ने अपनी मेधा के बल पर अमेरिका को नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया. लेकिन ट्रंप के आने के बाद से अमेरिकी प्रशासन ने कई फैसले किये हैं, जो भारत के हित में नहीं हैं. हाल में ट्रंप प्रशासन नये नियम के तहत एच-1बी वीजा के विस्तार पर रोक लगाने जा रहा है. इससे आईटी क्षेत्र के लगभग पांच लाख भारतीय युवा प्रभावित होंगे. यदि अमेरिकी प्रशासन प्रस्तावित ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे लोगों के एच-1बी वीजा का विस्तार नहीं करता है, तो इन्हें भारत लौटना पड़ सकता है.
2016 में अपने चुनाव प्रचार के दौरान ही डोनाल्ड ट्रंप ने एक नारा उछाला था ‘बॉय अमेरिकन, हॉयर अमेरिकन’. दरअसल, अमेरिकी तकनीकी विशेषज्ञ ट्रंप यह समझाने में कामयाब रहे कि विदेशी आईटी विशेषज्ञों के आने न आने से कोई विशेष फर्क पड़ने वाला नहीं है. साथ ही अब अमेरिका में तकनीकी कर्मचारियों की कोई कमी नहीं है. और एच-1बी वीजा पर रोक लगायी जाये, जबकि यह माना जाता है कि अमेरिकी आईटी सेक्टर को भारतीय ही संचालित करते हैं. आईटी सेक्टर के बड़े नाम- माइक्रोसॉफ्ट के सत्य नडला हों अथवा गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई, दोनों भारतीय मूल के हैं और आईटी की दो सबसे बड़ी कंपनियों को संचालित कर रहे हैं. वे भी अमेरिका एच-1बी वीजा से गये थे.
यह समझ लेना भी जरूरी है कि एच-1 बी वीजा होता क्या है? यह वीजा विशेषज्ञ लोगों को दिया जाता है, जैसे डाॅक्टर और इंजीनियर. अमेरिका में सबसे ज्यादा एच-1बी वीजा भारतीय इंजीनियरों के पास हैं. अप्रैल 2017 में इससे जुड़ा आंकड़ा जारी किया गया था.
इसमें बताया गया था कि 2007 से जून 2017 तक 34 लाख एच-1बी वीजा आवेदन मिले. इनमें भारत से 21 लाख आवेदन थे. सन् 2016 में 1,26,692 भारतीय लोगों को एच-1बी वीजा मिला, जो कुल एच1-बी वीजा का 75 फीसदी है. यह वीजा एक बार में तीन साल अमेरिका में काम करने की अनुमति देता है. जिन एच-1बी वीजा धारकों ने ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन किया होता है, उन्हें अंतिम फैसला होने तक अमेरिका में रहने की अनुमति मिल जाती है. यह अनुमति अब बंद होने जा रही है. इनके अलावा एच-1बी वीजा पर गये व्यक्ति की पत्नी अथवा पति को एच-4 वीजा दिया जाता है. अभी तक इनको अमेरिका में काम करने की अनुमति थी. इसे भी बंद किया जा रहा है.
दरअसल, अमेरिका में पिछले 15 साल में आईटी में वैसी प्रतिभाएं सामने नहीं आयी हैं, जिनकी आईटी इंडस्ट्री में जरूरत होती है. यही वजह है कि अमेरिका के कुल सॉफ्टवेयर कारोबार का करीब 65 फीसदी भारत पर निर्भर है. अमेरिका से भारतीय आईटी कंपनियों की आय की बात करें, तो टीसीएस की आय में 50 फीसद से अधिक, इंफोसिस की आय में 60 फीसदी, विप्रो की आय में 50 फीसदी, एचसीएल टेक की आय में 60 फीसदी, टेक महिंद्रा की आय में लगभग 50 फीसदी अमेरिकी कारोबार का योगदान रहता है.
जाहिर है कि इसका असर भारतीय इंजीनियरों, भारतीय आईटी कंपनियों और भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. दरअसल, भारतीय जीडीपी में भारतीय आईटी कंपनियों का योगदान लगभग 9.5% है और इन कंपनियों पर पड़ने वाला कोई भी असर सीधे तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा. यही वजह है कि भारत सरकार ने भी ट्रंप प्रशासन को अपनी चिंताओं से अवगत कराया है. इस मसले पर केंद्र सरकार और आईटी कंपनियों के अधिकारियों के बीच कई बैठकें भी हो चुकी हैं. अमेरिका चैंबर ऑफ कॉमर्स ने भी कहा है कि एच-1बी वीजा का विस्तार समाप्त करना एक खराब नीति होगी. अमेरिका के कुछ सांसदों ने भी ट्रंप की नीति का विरोध किया है. लेकिन जैसा कि ट्रंप का ट्रैक रिकॉर्ड है, वह किसी की सुनने वाले नहीं हैं.
यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि सब देश अपनी अपनी- अपनी सीमाओं में बंद होते जा रहे हैं. यदि आदान-प्रदान नहीं होगा, तो मानव जाति का विकास कैसे होगा? यूरोप में ऐसा हो रहा है और अब अमेरिका भी अपने दरवाजे बंद करता जा रहा है. हमें विचार करना होगा कि हम 21वीं सदी की ओर जा रहे हैं या पीछे लौट रहे हैं. भारतीय नीति निर्धारकों को इस पर भी विचार करना होगा कि हम अमेरिका के साथ लगातार अच्छे रिश्ते बनाने की कोशिश कर रहे हैं. हम लचीला रुख अपनाते हुए कारोबार के क्षेत्र में उन्हें जरूरत से ज्यादा सुविधाएं प्रदान कर रहे हैं.
बावजूद इसके अमेरिका के लगातार फैसले भारतीय हितों के खिलाफ जा रहे हैं. मेरा मानना है कि यह फैसले भारत के लिए चुनौती भी हैं और अवसर भी. अब तक भारत प्रतिभा पलायन की बात करता आया है. अगर भारतीय प्रतिभाएं वापस आती हैं, तो यह अवसर होगा कि हम अपनी प्रतिभाओं को भारत में ही समुचित अवसर और संसाधन प्रदान करें ताकि वे यहां रहकर विदेशों में भारत का परचम लहरा सकें.