खबर पर पहरा!
पत्रकारिता और सत्ता प्रतिष्ठानों के बीच तकरार कोई नयी बात नहीं है. आधार प्राधिकरण द्वारा डेटा सुरक्षा के दावों की कलई खोलनेवाली रिपोर्ट और रिपोर्टर के साथ यही बरताव किया जा रहा है. कुछ दिन पहले एक अंग्रेजी दैनिक की रिपोर्टर ने खबर बनायी थी कि मात्र पांच सौ रुपये खर्च कर एक अरब से […]
पत्रकारिता और सत्ता प्रतिष्ठानों के बीच तकरार कोई नयी बात नहीं है. आधार प्राधिकरण द्वारा डेटा सुरक्षा के दावों की कलई खोलनेवाली रिपोर्ट और रिपोर्टर के साथ यही बरताव किया जा रहा है.
कुछ दिन पहले एक अंग्रेजी दैनिक की रिपोर्टर ने खबर बनायी थी कि मात्र पांच सौ रुपये खर्च कर एक अरब से अधिक भारतीयों के आधार डेटा को कोई भी प्राप्त कर सकता है. आधार प्राधिकरण ने इस खबर को बेबुनियाद बताते हुए अपना पक्ष रखा, जिसे उस अखबार समेत पूरी मीडिया ने प्रमुखता से प्रकाशित और प्रसारित किया. लेकिन बात यहीं तक नहीं रुकी. आधार प्राधिकरण की ओर से एक अधिकारी ने उस रिपोर्टर और अखबार के खिलाफ अवैध तरीके से डेटा चुराने का मुकदमा दायर कर दिया.
आधार प्राधिकरण को स्पष्टीकरण के बाद लोगों को यह भरोसा दिलाना चाहिए था कि उनकी सूचनाएं सुरक्षित हैं और उनकी सुरक्षा में सेंध मार पाना मुमकिन नहीं है. उसे अपने पूरे तंत्र की ठोस समीक्षा करनी चाहिए थी और कमियों को दूर करना चाहिए था. आधार संख्या और नागरिकों की निजता को लेकर सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ सुनवाई कर रही है. पहले भी डेटा चोरी होने या सार्वजनिक होने के मामले सामने आ चुके हैं. सरकारी और गैर-सरकारी सेवाओं के लिए आधार की अनिवार्यता पर निरंतर जोर दिया जा रहा है. अदालती आदेश के बाद इस अनिवार्यता की समय-सीमा को 31 मार्च तक बढ़ायी गयी है.
उम्मीद की जा रही है कि इस तारीख से पहले न्यायालय का निर्णय आ जायेगा. ऐसे माहौल में आधार प्राधिकरण को एक मुस्तैद और दुरुस्त संस्था के रूप में खुद को पेश करना चाहिए. अपनी गड़बड़ियों पर पर्दा डाल कर न तो प्राधिकरण को कुछ हासिल होना है और न ही आधार के इस्तेमाल से बेहतर सेवा देने के इरादे को. अगर आधार का तंत्र सुरक्षित नहीं है, तो अंततः इसका खामियाजा नागरिकों और देश को ही भुगतना है. लोकतांत्रिक व्यवस्था में मीडिया की जिम्मेदारी सरकार और नागरिकों के बीच संवाद को संभव करना है. इस प्रक्रिया में सरकारी कामकाज के गुण-दोष को जाहिर करना होता है.
आधार डेटा के असुरक्षित होने की बात बता कर यह रिपोर्टर अपनी जिम्मेदारी ही निभा रही थी. पहले से यह होता रहा है कि यदि किसी खबर या आलेख पर किसी व्यक्ति या संस्था को आपत्ति होती है, तो वह अपना पक्ष रखते हुए रिपोर्ट की गलतियों की ओर संकेत करता है. आम तौर पर अखबार दूसरा पक्ष छाप देते हैं या फिर खबर गलत होने पर उसे हटाते हुए माफी मांग लेते हैं. खबर की गंभीरता के अनुसार रिपोर्टर या लेखक पर आंतरिक कार्रवाई भी होती है. प्रेस कौंसिल और समाचार प्रसारण प्राधिकरण जैसी व्यवस्थाएं भी हैं.
बहुत ज्यादा हुआ, तो कुछ मामलों में मानहानि का मुकदमा होता है. लेकिन एक जरूरी और जोरदार खबर देने-छापने के बदले आपराधिक मुकदमे का यह मामला बहुत चिंताजनक है.