बर्बादी रोकी जाये

संयुक्त राष्ट्र की संस्था खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) का आकलन है कि भारत में हर दिन 19 करोड़ 40 लाख लोग भूखे सोते हैं, यानी आबादी का करीब छठा हिस्सा दो जून की रोटी से वंचित है. भुखमरी के शिकार भारतीयों की यह तादाद ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी की कुल आबादी से कुछ ही […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 10, 2018 7:04 AM
संयुक्त राष्ट्र की संस्था खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) का आकलन है कि भारत में हर दिन 19 करोड़ 40 लाख लोग भूखे सोते हैं, यानी आबादी का करीब छठा हिस्सा दो जून की रोटी से वंचित है.
भुखमरी के शिकार भारतीयों की यह तादाद ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी की कुल आबादी से कुछ ही कम है. यदि ऑस्ट्रेलिया से तुलना करें, तो भारत में रोजाना ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या से आठ गुना ज्यादा लोग भूखे रहने को मजबूर हैं. यह विडंबना ही है कि जहां इतने लोग भूखे रहते हैं, वहीं सालाना 88,800 करोड़ यानी रोज 244 करोड़ रुपये का भोजन भारत में बर्बाद होता है. सवाल है कि आखिर संपन्नता में विपन्नता की यह स्थिति क्यों है?
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक फसल की कटाई-ढुलाई और भंडारण की व्यवस्था ठीक नहीं होने के कारण भारतमें हर साल कुल खाद्य-सामग्री का 40 फीसदी हिस्सा बर्बाद हो जाता है. इस तथ्य को मान लें, तब भी दूसरे सिरे पर यह समस्या उलझी रहती है. दूसरा सिरा यह है कि अन्न की भारी बर्बादी के बीच भी भारत में विगत दो दशक से सरकारी गोदामों में अनाज मानक से ज्यादा मात्रा में संग्रहित होता आया है. आबादी का पेट भरने के लिए 22-23 करोड़ टन अनाज की जरूरत है, जबकि भारत में अनाज का उत्पादन इससे कहीं ज्यादा हो रहा है. साल 2001 में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) के गोदामों में अनाज का भंडार पांच करोड़ टन तक पहुंच गया था.
उस वक्त इस अनाज को गरीबी रेखा के नीचे रहनेवाले परिवारों में बांटा जाता, तो प्रत्येक परिवार को 10 क्विंटल अनाज मिलता. बीते साल मई में 2.18 करोड़ टन अनाज अकेले एफसीआइ के गोदामों में मौजूद था. अन्न की इस विशाल मात्रा की मौजूदगी के बीच करोड़ों लोगों का भूखे रहना प्रशासनिक ढिलाई और प्राथमिकताओं के विचलन का संकेत करती है. मिसाल के लिए, पिछले साल जुलाई में सूचना के अधिकार कानून के तहत डाली गयी अर्जी के जवाब से जाहिर हुआ था कि 2017 की एक जनवरी को एफसीआइ के गोदामों में 10,688 लाख टन अनाज सड़-गल चुका था, जबकि इतना अनाज अगले 10 सालों तक छह लाख लोगों की भूख मिटाने के लिए पर्याप्त होता.
खाद्य-सुरक्षा कानून के लचर क्रियान्वयन से भी समस्या गंभीर होती जा रही है. देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली का विशाल ढांचा दशकों से मौजूद है तथा कानूनन ग्रामीण क्षेत्र में 75 फीसदी तथा शहरी क्षेत्र में 50 फीसदी आबादी को रियायती दर पर अनाज देने का प्रावधान है.
लेकिन, अनाज के वितरण की व्यवस्था प्रशासनिक ढिलाई और नीतिगत परिवर्तनों के कारण चाक-चौबंद नहीं है. भुखमरी की व्यापक समस्या से निबटने के लिए सरकार को फौरी तौर पर लोगों की खरीद क्षमता बढ़ाने के उपाय करने के साथ वितरण प्रणाली को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए.

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