बड़े आर्थिक फैसले

विश्वबैंक के ताजा आकलन के मुताबिक 2018 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 7.3 फीसदी तक हो सकती है और अगले दो सालों में यह 7.5 फीसदी तक पहुंच सकती है. इसकी वजह आर्थिक सुधारों की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाना बतायी गयी है. इस कड़ी में बुधवार को सरकार ने सुधारों से संबंधित […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 12, 2018 7:29 AM

विश्वबैंक के ताजा आकलन के मुताबिक 2018 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 7.3 फीसदी तक हो सकती है और अगले दो सालों में यह 7.5 फीसदी तक पहुंच सकती है. इसकी वजह आर्थिक सुधारों की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाना बतायी गयी है. इस कड़ी में बुधवार को सरकार ने सुधारों से संबंधित कुछ साहसी फैसलों पर मुहर लगायी है. एकल ब्रांड खुदरा कारोबार में सौ फीसदी सीधे विदेशी निवेश को हरी झंडी दी गयी है. कैबिनेट ने घाटे से जूझती नागरिक उड़ान सेवा एयर इंडिया में 49 फीसदी विदेशी निवेश के लिए भी रास्ता खोल दिया है.

इस कड़ी में कुछ और महत्वपूर्ण निर्णयों का उल्लेख किया जा सकता है, जैसे- विदेशी संस्थागत निवेशकों और पोर्टफोलियो निवेशकों को पावर एक्सचेंज में प्राथमिक बाजार के माध्यम से मौका देने तथा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति में ‘मेडिकल उपकरणों’ की परिभाषा में बदलाव का फैसला. सरकार का तर्क है कि इन फैसलों का उद्देश्य आमदनी और रोजगार बढ़ाना है. दो चीजें तो बहुत स्पष्ट दिख रही हैं.

एयर इंडिया में निवेश से जुड़ी एफडीआई नीति में हुए बदलाव से देश की निजी एयरलाइन कंपनियां एयर इंडिया में निवेश के अपने प्रयासों को गति दे सकेंगी तथा इसके लिए बाहर से निवेशकों समझौता कर सकेंगी. उम्मीद है कि निवेश आने से एयर इंडिया को खस्ताहाली से उबारा जा सकेगा. दूसरे, एकल ब्रांड खुदरा कारोबार में स्वचालित रास्ते से सौ फीसदी निवेश की मंजूरी के कारण विदेशी कंपनियां बिना वक्त गंवाये अपने कारोबार का संचालन कर सकेंगी. ऐसे में इस फैसले से रोजगार के अवसर पैदा करने में सहायता मिलेगी.

लेकिन इन तात्कालिक फायदों से इतर इन निर्णयों को दूरगामी लाभ के नजरिये से भी देखा जाना चाहिए. ‘मेक इन इंडिया’ का महत्वाकांक्षी सपना मुख्य रूप से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की बढ़वार पर टिका है. पिछले साल अप्रैल से सितंबर के बीच भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 17 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 25.35 अरब डॉलर तक पहुंच चुका था

साल 2016 में यह राशि अप्रैल-सितंबर के बीच 21.6 अरब डॉलर थी. अगर नीतिगत सुधार के जरिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में अपेक्षित तेजी बरकरार रखी जाये, तो डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में स्थिरता लायी जा सकेगी और भुगतान-संतुलन की मौजूदा स्थिति बेहतर की जा सकती है.

देश में व्यवसाय की गति तेज करने, लोहा-सीमेंट जैसे अहम उद्योगों की क्षमता बढ़ाने और व्यापक स्तर पर बाजार का निर्माण करने के लिहाज से आधारभूत ढांचे का विस्तार करना जरूरी है. विशेषज्ञों के अनुसार, भारत को बंदरगाह, हवाई अड्डे तथा राजमार्गों के विकास के लिए 1,000 अरब डॉलर की जरूरत है.

आर्थिक सुधार के कदमों से अगर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ता है, तो वह रोजगार बढ़ाने के साथ बुनियादी ढांचे के निर्माण में सहायक होगा और शहरीकरण पर आधारित ‘न्यू इंडिया’ का सपना साकार करने की प्रक्रिया तेज होगी.

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