बस कर यार और कितना फेंकेगा!

।। शैलेश कुमार।। (प्रभात खबर, पटना) बहुत अच्छा लगता है जब मोबाइल पर संदेश आता है कि अब की बार मोदी सरकार या कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ. अब आप कहेंगे कि मैं भाजपा या कांग्रेस का समर्थन कर रहा हूं. जी नहीं, मैं किसी का समर्थन नहीं कर रहा, बल्कि यह बताने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 3, 2014 4:12 AM

।। शैलेश कुमार।।

(प्रभात खबर, पटना)

बहुत अच्छा लगता है जब मोबाइल पर संदेश आता है कि अब की बार मोदी सरकार या कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ. अब आप कहेंगे कि मैं भाजपा या कांग्रेस का समर्थन कर रहा हूं. जी नहीं, मैं किसी का समर्थन नहीं कर रहा, बल्कि यह बताने की कोशिश कर रहा हूं कि हमारे राजनीतिक दलों को कितना भरोसा है कि जीत उन्हीं की होगी. वे जानते हैं कि जनता के पास कोई और विकल्प तो है नहीं. जितनी पार्टियां चुनाव लड़ रही हैं, उन्हीं में से किसी को जिता कर सरकार बनानी है.

कांग्रेस की नहीं बनी, तो भाजपा की बनेगी. भाजपा की नहीं, तो वाम दलों की और उनकी नहीं, तो आम आदमी पार्टी की. जिसकी भी सरकार बने, आखिर फायदा किसे पहुंच रहा है? 2004 के आम चुनाव में ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा आया. इस बार के चुनाव में ‘अच्छे दिन आनेवाले हैं’ खूब चल रहा है. दूरदर्शन और रेडियो पर एक विज्ञापन बार-बार चल रहा है, ‘भारत के मजबूर किसान, हम सब हैं एक समान’. ओह माफ कीजियेगा, ‘मजबूर’ नहीं, ‘मजबूत’ किसान. अब क्या करें, किसानों की हालत देख कर मेरे मन में उनके लिए मजबूर शब्द ही बैठ गया है.

इसलिए किसानों के लिए मजबूत शब्द की कल्पना भी अब मेरा दिमाग नहीं करता. मेरा क्या, शायद जिसने इस विज्ञापन के शब्दों का चयन किया होगा, हो सकता है कि पहली बार उसने भी यही गलती की हो और विज्ञापन बनवानेवाले ने डांट कर उससे इसे सही करवाया हो. इसी तरह मोबाइल, फेसबुक, व्हाट्सऐप पर ‘अबकी बार, मोदी सरकार’ के खूब मैसेज आ रहे हैं. न जाने कहां-कहां से तुक भिड़ाये जा रहे हैं. ऐसा लगता है कि देश का हर नागरिक कवि बन गया है. इस चुनाव के परिणाम क्या होंगे और वे देश के आनेवाले कल को किस प्रकार से प्रभावित करेंगे, इसका जवाब तो आनेवाले कल में ही छिपा है, लेकिन एक बात जरूर है कि चुनाव परिणाम से पहले ही देश में क्रिएटिविटी की जो लहर दौड़ी है, उसने यह उम्मीद जरूर जगा दी है कि कल भले ही इस देश के पास नाज करने को कुछ नहीं हो, पर दुनिया की आंखों में धूल झोंक कर उसके सामने खुद को सबसे अच्छा दिखाने की कला जरूर होगी.

बचपन में एक बार मैंने ‘21वीं सदी का भारत’ विषय पर पांच मिनट का एक भाषण दिया था. परमाणु परीक्षण के बाद सीटीबीटी पर हस्ताक्षर के लिए भारत को बाध्य करने के लिए अमेरिका की निंदा करते हुए मैंने कहा था, ‘उनकी हर रात गुजरती है दीवाली की तरह, हमने एक दीप भी जलाया तो बुरा मान गये.’ मेरा बाल मन देशप्रेम से ओत-प्रोत था. आज भी है. बस फर्क इतना है कि कल जब मैं अपने देश के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करता था, तो फर्क महसूस करता था कि मैंने इस पावन धरा पर जन्म लिया है, पर आज जब ऐसी बातें करता हूं, तो दिल का एक कोना कहता है, ‘बस भी कर यार और कितना फेंकेगा.’

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