रिक्तियां भरी जायें

वित्त मंत्रालय का आकलन है कि केंद्रीय स्तर पर अलग-अलग महकमों में मार्च, 2016 तक करीब चार लाख पद खाली थे. इस रिपोर्ट का एक संकेत यह भी है कि 2014 के बाद से केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में खाली पदों की संख्या तकरीबन एक-सी बनी हुई है. बात चाहे विधि व्यवस्था की हो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 18, 2018 2:53 AM

वित्त मंत्रालय का आकलन है कि केंद्रीय स्तर पर अलग-अलग महकमों में मार्च, 2016 तक करीब चार लाख पद खाली थे. इस रिपोर्ट का एक संकेत यह भी है कि 2014 के बाद से केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में खाली पदों की संख्या तकरीबन एक-सी बनी हुई है. बात चाहे विधि व्यवस्था की हो या फिर सेहत, शिक्षा, आवास, भोजन, परिवहन जैसी बुनियादी सुविधाओं की, लोगों तक इनका पहुंचना सरकारी तंत्र के सहारे ही मुमकिन है.

जाहिर है, लंबे समय तक पदों के खाली रहने से लोगों का रोजमर्रा का जीवन-संघर्ष ज्यादा कठिन हो जाता है. बात सिर्फ केंद्रीय महकमों तक सीमित नहीं है. राज्यों में भी बड़ी तादाद में रिक्तियां हैं. देशभर में फिलहाल पुलिस विभाग में करीब पांच लाख पद खाली हैं. विधि व्यवस्था की बेहतरी के लिए संयुक्त राष्ट्र का मानक है कि प्रति लाख आबादी पर 222 पुलिसकर्मी होने चाहिए, लेकिन भारत में यह अनुपात महज 137 है. कुल स्वीकृत पद (तकरीबन 22.5 लाख) का चौथाई हिस्सा बरसों से बहाली की बाट जोह रहा है. प्रशिक्षित श्रम बल और बुनियादी ढांचे के अभाव की यही हालत चिकित्सा सेवा के मामले में भी है.

देश में लगभग 10 हजार की आबादी पर एक एलोपैथिक डाॅक्टर मौजूद है, औसतन 90 हजार की आबादी की चिकित्सा जरूरत पूरा करने के लिए एक सरकारी अस्पताल है और लगभग दो हजार लोगों के लिए सरकारी अस्पताल में औसतन एक बिस्तर उपलब्ध है. सेवा और सामान मुहैया कराने की अहम जगहों पर प्रशिक्षित श्रम बल का न होना देश के सामाजिक विकास में बरसों से बड़ी बाधा बना हुआ है. इसे फौरी तौर पर दुरुस्त करने की जरूरत है.

खाली पड़े पदों की इस बड़ी तादाद को देश में मौजूद बेरोजगारी, खासकर अर्द्ध-बेरोजगारी के संगीन हालात की रोशनी में भी देखा जाना चाहिए. अलग-अलग स्रोतों के आकलन को आधार बनाकर कहा जा सकता है कि देश के कार्य बल में हर माह 10 लाख लोगों की बढ़त होती है, परंतु अर्थव्यवस्था के प्राथमिक (कृषि) और द्वितीयक क्षेत्र (विनिर्माण) की बढ़वार उस गति से नहीं हो रही है कि इस श्रम शक्ति को अपने कौशल के अनुरूप रोजगार मिले.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में बेरोजगारों की संख्या 1.77 करोड़ थी और जरूरत भर के रोजगार के अवसर न पैदा होने के कारण 2018 में बेरोजगारों की संख्या 1.80 करोड़ हो जायेगी. फरवरी, 2017 में केंद्रीय श्रम मंत्री ने लोकसभा में कहा था कि 2013-14 की तुलना में 2015-16 में बेरोजगारी दर में इजाफा हुआ है.

वर्ष 2013-14 की तुलना में 2014-15 में देश के 29 में से 14 राज्यों में बेरोजगारी दर बढ़ी है. खाली पदों पर नियमित बहाली से बेरोजगारी की स्थिति में सुधार के साथ सरकारी कामकाज की दशा और दिशा को भी बेहतर करने में मदद मिलेगी. इस ओर सरकार को समुचित ध्यान देना चाहिए.

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