टीवी बहसों में प्रवक्ताओं के तेवर
।। आकार पटेल।। (वरिष्ठ पत्रकार) मैं अकसर टेलीविजन की बहसों में भाग लेते हुए आमतौर पर भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ताओं द्वारा कांग्रेस की बखिया उधेड़े जाते देखता हूं. सरकार के कामकाज को देखते हुए ऐसा करना आसान है, लेकिन भाजपा के पास भी बहुत सक्षम लोगों की टीम है. शांत, धैर्यवान और सचेत स्मृति […]
।। आकार पटेल।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
मैं अकसर टेलीविजन की बहसों में भाग लेते हुए आमतौर पर भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ताओं द्वारा कांग्रेस की बखिया उधेड़े जाते देखता हूं. सरकार के कामकाज को देखते हुए ऐसा करना आसान है, लेकिन भाजपा के पास भी बहुत सक्षम लोगों की टीम है.
शांत, धैर्यवान और सचेत स्मृति ईरानी अपने तर्को में बहुत विश्वसनीय हैं. हालांकि, व्यक्तिगत स्तर पर उनमें महत्वाकांक्षी अवसरवादिता भी है. गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी की भूमिका के विरुद्ध पैदा हुए शहरी क्षोभ से प्रभावित होकर उन्होंने मोदी से विद्रोह कर दिया था. बाद में, उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ और मेरी जानकारी में वे एकमात्र शख्स हैं, जिनका मोदी से संबंध पुन: सामान्य हो सका. पिछले गुजरात चुनाव में टेलीविजन पर मेरे उनके इस तरह बदलने के बारे में पूछने पर उनका जवाब था कि मीडिया ने उन्हें बरगला दिया था. यह एक जबरदस्त जवाब था. ईरानी ही वह शख्स हैं, जिन्होंने लाखों लोगों तक यह तर्क पहुंचाया है कि मोदी धर्मनिरपेक्ष हैं, क्योंकि बिजली कोई भेदभाव नहीं करती है. मेरी यह भविष्यवाणी है कि अमेठी में हार के बावजूद अगली सरकार में उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका मिलेगी.
एक अन्य प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी आक्रामक हैं और जोर से बोलती हैं. विपक्षी को तेज आवाज से दबाने के तरीके के बावजूद वे अपने तर्क पर डटी और अड़ी रहती हैं. मुंबई के चर्चगेट में लगे तसवीरों के लिए ख्यात नाना चुड़ास्मा की बेटी शाइना एनसी शांत और सौम्य हैं तथा मोदी की ओर आकर्षित अंगरेजीदां लोगों को प्रभावित करती हैं. ये तीनों, विशेषकर ईरानी और लेखी, हिंदी में भी अपनी बात बहुत अच्छे से रख सकती हैं.
निर्मला सीतारमन मोदी के विरुद्ध कही गयी किसी बात पर अपनी नाराजगी कभी भी अभिव्यक्त कर सकती हैं. एक बार करण थापर के कार्यक्रम में मेरे साथ तीखी नोक-झोंक के बाद कार्यक्रम समाप्त होने पर बहुत ही विनम्रता से पेश आकर उन्होंने मुङो चकित कर दिया था. जहां तक पुरुष प्रवक्ताओं की बात है, पहले मोदी ने अपने पक्ष में बोलने के लिए दो गुजरातियों को लगाया हुआ था. उनमें से एक मेरे मित्र व कई वर्षो तक गुजरात में मंत्री रहे जयनारायण व्यास थे (और मेरे द्वारा संपादित एक गुजराती अखबार में स्तंभकार भी). मोदी के राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय होने के बाद उनका उपयोग बंद हो गया. मोदी के पक्ष में बोलनेवाले अन्य सक्षम गुजराती युवा वकील देवांग नानावटी हैं.
राष्ट्रीय स्तर पर रवि शंकर प्रसाद हैं, जो गाहे-बगाहे एंकर पर उदार होने का आरोप लगाते हैं. उदार होना इन दिनों बड़ा अपराध है. और फिर सुब्रमण्यम स्वामी (जोर से बोलने व परेशान करनेवाले) और पीयूष गोयल (अशिष्ट) भी हैं. यह आक्रामकता उपयोगी रणनीति है, क्योंकि मोदी के पक्ष में अभियान पहले ही प्रभावी तरीके से चल रहा है: भ्रष्ट और अक्षम यूपीए और निर्णायक, स्वच्छ व दृढ़ मोदी. छवि निर्माण के लिए बहुत मेहनत करने के बाद भाजपा को बस इतना भर करना है कि उसकी भंगिमा बरकरार रहे, और यह इस देश में दूसरों को न बोलने देकर या क्रोध या चिढ़ दिखाकर किया जाता है.
भाजपा के नये प्रवक्ता एमजे अकबर को अभी तक मैंने किसी बहस में नहीं देखा है, लेकिन उनके बारे में मैंने लिखा है कि वे बहुत मजबूत हैं. इनके अलावा, प्रकाश जावड़ेकर, मुख्तार अब्बास नकवी और शानदार शाहनवाज हुसैन (ये अगर अंगरेजी में बोलें, तो असाधारण सिद्ध होंगे) भी हैं. इन लोगों को आमतौर पर टेलीविजन बहसों में नहीं भेजा जाता है. ये लोग संवाददाता सम्मेलनों और ऐसे ही अन्य अवसरों पर दिखते हैं.
भाजपा की इस सूची की तुलना में कांग्रेस की सूची उतनी प्रभावशाली नहीं है. मनीष तिवारी (जो आजकल गायब हैं) के अलावा मुङो कोई नहीं दिखता. संजय झा अविश्वसनीय और रणदीप सुरजेवाला उबाऊ हैं. गुजरात से आनेवाली अमि याज्ञनिक दयनीय हैं. ये बेचारे भाजपा की टीम से बुरी तरह मात खा जाते हैं, पर इसका कारण सिर्फ यह नहीं है कि इनके पास कहने के लिए कुछ नहीं है. कांग्रेसी प्रवक्ताओं में तैयारी का साफ अभाव दिखता है, जिसके चलते एंकर भी इन्हें कम समय देते हैं.
अफसोस की बात है कि कांग्रेस अभिषेक मनु सिंघवी को उनसे जुड़े स्कैंडल के बावजूद बहसों में भेजती है. वे भले ही बुद्धिमान हों, लेकिन उन पर टीका-टिप्पणी का अंदेशा रहता है. जिस व्यक्ति की विश्वसनीयता नहीं होती, वह आपकी तरफदारी के लिए सही व्यक्ति नहीं है. एक समस्या यह है कि शशि थरूर, पी चिदंबरम, गुलाम नबी आजाद व ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे प्रवक्ता टेलीविजन की बहसों को अधिक महत्व नहीं देते हैं या कम-से-कम मैंने उन्हें अधिक नहीं देखा है. सोनिया गांधी के मंत्रियों ने उनको निराश ही किया है और उन पर कायरता दिखाने का आरोप उचित ही है. कुछ दिन पहले एक कांग्रेसी ने बताया कि कांग्रेस के मंत्री पार्टी की ओर से बोलने के लिए तैयार नहीं हैं. कांग्रेस में जी-हजूरी की परंपरा को देखते हुए यह रवैया बहुत चकित करनेवाला है.
आमतौर पर कांग्रेस के दोचार प्रवक्ताओं में से एक हर रात टेलीविजन पर किसी कर्मकाण्ड की तरह पिटने के लिए आ जाता है. एंकर हमें निष्पक्ष (या कथित रूप से निष्पक्ष) दिखते हैं, ताकि बहस दिलचस्प लगे. मैं सोचता हूं कि क्या मोदी सरकार के दौरान यह स्थिति बदलेगी. हालांकि, मुङो संदेह है कि ऐसा कुछ होगा.