उपद्रव रोका जाये
करणी सेना की उन्मादी भीड़ के उपद्रव को पूरा देश बेचारगी से देखने के लिए मजबूर है. कहीं स्कूली बस में सहमे हुए मासूम हैं, तो कहीं कोई बस जलायी जा रही है और बाजारों में तोड़-फोड़ हो रही है. यह सब देश के अनेक हिस्सों में हो रहा है तथा अदालती आदेश के बावजूद […]
करणी सेना की उन्मादी भीड़ के उपद्रव को पूरा देश बेचारगी से देखने के लिए मजबूर है. कहीं स्कूली बस में सहमे हुए मासूम हैं, तो कहीं कोई बस जलायी जा रही है और बाजारों में तोड़-फोड़ हो रही है. यह सब देश के अनेक हिस्सों में हो रहा है तथा अदालती आदेश के बावजूद हो रहा है.
जिन राज्यों में हिंसक घटनाएं हो रही हैं, वहां की सरकारें आगजनी और पत्थरबाजी कर रहे गिरोहों को रोकने के लिए ठोस कार्रवाई करने से कतरा रही हैं. केंद्र सरकार ने भी निर्देश जारी करने की जहमत नहीं उठायी है. करणी सेना एक साल से रानी पद्मिनी पर बनी फिल्म ‘पद्मावत’ का विरोध कर रही है. इस फिल्म को सार्वजनिक प्रदर्शन की अनुमति भी मिल चुकी है और देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी निर्देश जारी किया है कि इस फिल्म का प्रदर्शन बिना किसी रोक-टोक के होना चाहिए. इसके बाद भी फिल्म को रोकने के लिए करणी सेना हिंसा का सहारा ले रही है और उसके नेता-प्रवक्ता टेलीविजन पर भड़काऊ बयान दे रहे हैं.
पुलिस-प्रशासन का यह दावा भी खोखला साबित हो रहा है कि सुरक्षा के पर्याप्त उपाय किये गये हैं. अब सवाल यह उठता है कि हमारे लोकतंत्र में व्यवस्था कानून से संचालित होगी या फिर हिंसा पर उतारू कोई भीड़ विधान के हर कायदे को नकार कर मनमानी करेगी. और, यदि भीड़ मनमानी करेगी, तो क्या शासन-प्रशासन चुप रहकर उन्हें ऐसा करने देगा? कई जगहों पर सिनेमाघरों ने फिल्म को दिखाने से मना कर दिया है. यह कह पाना मुश्किल है कि ऐसा वे दबाव में कर रहे हैं या फिर तोड़-फोड़ की आशंका से, परंतु इतना तो तय है कि प्रशासन उन्हें यह भरोसा दिला पाने में अक्षम रहा है कि सिनेमाघरों और दर्शकों को सुरक्षा मुहैया करायी जायेगी.
आज हम गणतंत्र दिवस के अवसर पर करीब सात दशकों की यात्रा का लेखा-जोखा कर रहे हैं, अपनी खूबियों-खामियों का जायजा ले रहे हैं और भविष्य को बेहतर करने का संकल्प ले रहे हैं. इसी समय कुछ लोग संविधान और विधि-व्यवस्था की अवहेलना करते हुए सड़कों पर उत्पात मचा रहे हैं. उन्हें न तो अदालत का लिहाज है और न ही शासन का डर.
देश के लिए यह एक चिंताजनक परिदृश्य है. सरकारों से यह पूछा जाना चाहिए कि जब ऐसी घटनाओं की आशंका पहले से थी और करणी सेना कई दिनों से खुलेआम हिंसा की धमकी दे रही थी, तो उसके नेताओं को गिरफ्तार कर और समुचित पुलिस बल का इंतजाम कर अमन-चैन बनाये रखने की कोशिशें क्यों नहीं की गयीं. जिन राज्यों में शांति-भंग नहीं हुई, उनसे सबक लेने की जरूरत है.
यह भी समझा जाना चाहिए कि यदि करणी सेना के उपद्रवियों से सख्ती से नहीं निपटा गया, तो कल दूसरे गिरोहों को भी ऐसा करने की शह मिलेगी. उम्मीद की जानी चाहिए कि एक लोकतांत्रिक देश में विरोध प्रकट करने की आजादी का कोई दुरुपयोग नहीं करेगा. विरोध प्रदर्शन के नाम पर हिंसक वारदात को अंजाम देने वालों के साथ सख्ती से निपटा जायेगा.