संवेदना जीवितों के लिए भी हो

पिछले कुछ सप्ताह से फिल्म पद्मावत को लेकर अनवरत विरोध प्रदर्शन अखबार की सुर्खियां बना हुआ है. क्या पुरुष और क्या महिलाएं, हर किसी को अपनी संस्कृति, परंपरा और ऐतिहासिक तत्वों की इतनी चिंता है कि वे सड़कों पर उतर आये. सिर्फ यही नहीं, उन्होंने सरकारी संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया. वे एक तरफ तो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 29, 2018 6:30 AM
पिछले कुछ सप्ताह से फिल्म पद्मावत को लेकर अनवरत विरोध प्रदर्शन अखबार की सुर्खियां बना हुआ है. क्या पुरुष और क्या महिलाएं, हर किसी को अपनी संस्कृति, परंपरा और ऐतिहासिक तत्वों की इतनी चिंता है कि वे सड़कों पर उतर आये. सिर्फ यही नहीं, उन्होंने सरकारी संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया. वे एक तरफ तो सभ्यता और संस्कृति की दुहाई देते हैं, वहीं दूसरी तरफ हिंदुस्तान की संपत्ति को धड़ल्ले से नुकसान पहुंचा रहे हैं.
अगर इतने ही जागरूक व संवेदनशील हैं, तो उनकी संवेदना तब कहां जाती है, जब नन्हीं मासूम बच्चियों से दुष्कर्म किया जाता है, जब हमारी माओं व बहनों की अस्मिता के साथ हैवानियत और दरिंदगी का खेल खेला जाता है? तब इनका विरोध प्रदर्शन, इंसानियत और सभ्यता-संस्कृति कहां चली जाती है? क्या तब हमारी गरिमा कलंकित नहीं होती? जो अतीत बन चुका है, उसपर सवाल खड़े हो रहे हैं, मगर जीते जागते इनसानों की कोई परवाह नहीं.
रत्ना मानिक, टेल्को, जमशेदपुर

Next Article

Exit mobile version