रिश्ते को नया आयाम
दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में भारत के लिए कंबोडिया का खास महत्व है. खास इस मायने में कि भारत के साथ कंबोडिया के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों की जड़ें बहुत गहरी हैं. अंकोरवाट का ऐतिहासिक मंदिर और कंबोडिया के जनजीवन पर बौद्ध और हिंदू धर्म-संस्कृति की छाप इसका प्रमाण हैं. कंबोडिया में गृहयुद्ध के […]
दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में भारत के लिए कंबोडिया का खास महत्व है. खास इस मायने में कि भारत के साथ कंबोडिया के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों की जड़ें बहुत गहरी हैं.
अंकोरवाट का ऐतिहासिक मंदिर और कंबोडिया के जनजीवन पर बौद्ध और हिंदू धर्म-संस्कृति की छाप इसका प्रमाण हैं. कंबोडिया में गृहयुद्ध के दौरान जब अंकोरवाट क्षतिग्रस्त हुआ, तो ऐसी कठिन परिस्थिति में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने मदद का हाथ बंटाया.
आर्थिक मोर्चे पर देखें, तो पिछले दो दशक में कंबोडिया की आर्थिक वृद्धि दर सात प्रतिशत रही है, जबकि भारत भी विश्व में सबसे तेज अर्थव्यवस्था वाले देशों में से एक है. इस पृष्ठभूमि में यदि भारत और कंबोडिया ने रक्षा, सांस्कृतिक संबंध और आतंकवाद पर अंकुश की दिशा में सहयोग के लिए हाथ मिलाया है, तो यह दोनों ही देशों की बेहतरी के लिए संभावनाओं के कई द्वार खोलता है.
आसियान देशों के सम्मेलन में शामिल होने आये कंबोडिया के प्रधानमंत्री समदेच हून सेन और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच वार्ता के बाद दोनों देशों ने चार समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं.
इन समझौतों में अपराधों की रोकथाम, जांच में सहयोग सुधारने और आपराधिक मामलों में कानूनी सहायता के अलावा भारत से कंबोडियाई स्टंग सवा हाब जल संसाधन विकास परियोजना के लिए 3.692 करोड़ डॉलर की ऋण सुविधा उपलब्ध कराना शामिल है. दोनों देश मानव तस्करी की रोकथाम के लिए द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर भी सहमत हुए हैं. साथ ही दोनों देशों के बीच 2018-20 के दौरान सांस्कृतिक आदान-प्रदान संबंधी समझौता भी हुआ है. इसके पहले भारत कंबोडिया में क्विक इंपैक्ट प्रोजेक्ट के लिए 500 करोड़ रुपये के एक कोष की स्थापना कर चुका है और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक सेंटर ऑफ एक्सेलेंस की स्थापना भी करनेवाला है.
कंबोडिया के साथ ताजा समझौते को भारत की आसियान देशों के साथ सदियों पुराने रिश्ते को नया आयाम देने की कोशिश के रूप में भी देखा जाना चाहिए. रिश्ते को नया आयाम देने की भारत की पहल ऐसे समय हुई है, जब क्षेत्र में चीन का आर्थिक और सैन्य दखल बढ़ रहा है.
इस लिहाज से कहें, तो व्यापार, निवेश, रक्षा और सांस्कृतिक क्षेत्र में आपसी सहयोग बढ़ाना दोनों पक्षों की रणनीतिक जरूरत भी है. चीन के दखल से निबटने को भारत ने दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ लुक इस्ट (पूरब की तरफ देखने) की जगह एक्ट ईस्ट नीति (पूरब में कुछ करने) पर जोर देना शुरू किया है.
लेकिन, यह नीति तभी कारगर होगी, जब कनेक्टिविटी बढ़े और नये क्षेत्रों में व्यापार की संभावनाएं तलाशी जाएं. इस दिशा में करीब आठ साल पुरानी भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना को त्वरित गति से पूरा करने की जरूरत है. इस सड़क का लाओस और कंबोडिया तक विस्तार किया जाना है.