बजट से उम्मीदें

राष्ट्रपति के अभिभाषण के साथ संसद का बजट सत्र शुरू हो गया है. राष्ट्रपति ने सरकार की कामयाबी के कई मुकाम गिनाये. बजट सत्र का शुरुआती अभिभाषण सरकार की उपलब्धियों का लेखा-जोखा होता है. राष्ट्रपति के भाषण का मुख्य हिस्सा सरकार की सामाजिक कल्याण की कोशिशों पर केंद्रित रहा. उसमें स्वच्छता अभियान के तहत शौचालयों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 30, 2018 1:19 AM

राष्ट्रपति के अभिभाषण के साथ संसद का बजट सत्र शुरू हो गया है. राष्ट्रपति ने सरकार की कामयाबी के कई मुकाम गिनाये. बजट सत्र का शुरुआती अभिभाषण सरकार की उपलब्धियों का लेखा-जोखा होता है.

राष्ट्रपति के भाषण का मुख्य हिस्सा सरकार की सामाजिक कल्याण की कोशिशों पर केंद्रित रहा. उसमें स्वच्छता अभियान के तहत शौचालयों के निर्माण, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की अहमियत और विस्तार, कृषि-उत्पादन में हुई रिकाॅर्ड वृद्धि और किसानों की आमदनी दोगुनी करने की पहल से लेकर डिजिटल सेवा के विस्तार, गरीब परिवारों तक बिजली पहुंचाने तथा जनधन खातों के जरिये उन्हें बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ने तक बहुत से विकास-कार्यक्रमों का जिक्र था. बात चाहे युवा आबादी के लिए स्वरोजगार के अवसर पैदा करने की हो या फिर अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं के ससशक्तीकरण की, राष्ट्रपति के संबोधन की टेक ‘सबका साथ, सबका विकास’ की थी. सो, अगले बजट की प्राथमिकताओं के बारे में कुछ अनुमान लगाये जा सकते हैं.

बहुत संभव है कि अगले बजट में सामाजिक कल्याण योजनाओं पर विशेष बल दिया जाये और सेहत, शिक्षा, भोजन, आवास जैसी बुनियादी जरूरत के मद में आबंटन बढ़े. दूसरी बड़ी उम्मीद यह लगायी जा सकती है कि बजट में देश की किसान आबादी के फायदे के लिए कुछ विशेष घोषणाएं की जायें. बजट-सत्र की शुरुआत के तुरंत पहले के दो हफ्तों में वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री देश में खेती-किसानी की दशा पर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं. अगले लोकसभा चुनाव से पहले यह मौजूदा एनडीए सरकार का आखिरी पूर्ण बजट होगा.

इस साल आठ राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के साथ लोकसभा चुनावों के लिए दुंदुभि बज चुकी होगी. ऐसे में सरकार चाहेगी कि सामाजिक कल्याण योजनाओं, किसान तथा ग्रामीम आबादी के बीच ‘सबका साथ- सबका विकास’ वाली उसकी छवि चमकदार बनी रहे. पेश होने जा रहे बजट के एेतबार से वित्त मंत्री के सामने मौजूद चुनौतियां भी इसी तथ्य से निकलती हैं. उनको दो विपरीत सिरों के बीच संतुलन बिठाने का कठिन काम करना है.

एक तरफ उनसे देश में जारी कृषि-संकट के समाधान के लिए विशेष राहत योजनाओं की उम्मीद लगायी जा रही है, तो दूसरी तरफ वित्तीय अनुशासन बरतने की. चुनावी मुहावरों के तय होने के वक्त में कृषि-संकट की अनदेखी राजनीतिक रूप से भारी पड़ सकती है, तो दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की चढ़ती कीमतों के कारण मुद्रास्फीति को थामना विभिन्न सामाजिक मदों में खर्चों की कटौती की मांग करेगा.

वैश्विक स्तर पर सूद की दरों में बदलाव आये हैं और सरकार को उधारी पर अब पहले की तुलना में ज्यादा खर्च करना होगा. अगर सरकार देश की व्यापक जनता के हितों के मद्देनजर सामाजिक विकास की योजनाओं पर आबंटन बढ़ाती है, तो देखना यह होगा कि वित्त मंत्री इसके लिए अतिरिक्त राशि जुटाने के क्या उपाय करते हैं.

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