भारत-आसियान संबंध के 25 साल

डॉ सुमित झा विजिटिंग फेलो, नेशनल चेंग्ची यूनिवर्सिटी, तायपेई दिल्ली के राजपथ पर संपन्न 69वां गणतंत्र दिवस समारोह के माध्यम से पूरी दुनिया भारत की सामरिक शक्ति और सांस्कृतिक विविधता की विरासत से एक बार फिर परिचित हुई. यह अवसर इसलिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी के निमंत्रण पर आसियान के सभी दस देशों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 30, 2018 1:20 AM

डॉ सुमित झा

विजिटिंग फेलो, नेशनल चेंग्ची यूनिवर्सिटी, तायपेई

दिल्ली के राजपथ पर संपन्न 69वां गणतंत्र दिवस समारोह के माध्यम से पूरी दुनिया भारत की सामरिक शक्ति और सांस्कृतिक विविधता की विरासत से एक बार फिर परिचित हुई. यह अवसर इसलिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी के निमंत्रण पर आसियान के सभी दस देशों के राष्ट्राध्यक्ष और सरकार के मुखिया गणतंत्र दिवस पर बतौर मुख्य अतिथि आये थे.

उन्हें संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि यह ठीक है कि भारत-आसियान साझेदारी 25 वर्ष पुरानी है, लेकिन भारत का दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ संबंध सदियों पुराना है. धर्म, संस्कृति, भाषा, कला एवं व्यवसाय भारत और दक्षिण एशिया के बीच महत्वपूर्ण कड़ी का काम कर रहा है.

इसमें दो राय नहीं है कि इन साझा पहलुओं के बावजूद एक अरसे तक आसियान देशों के साथ भारत अपने रिश्तों को सुधारने के लिए विशेष रूप से प्रयासरत नहीं रहा है.

आज के भारत-आसियान रिश्तों की नींव वर्ष 1992 में पड़ी, जब प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने पूर्वी एशियाई और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ आर्थिक और व्यापारिक संबंध को बेहतर करने के उद्देश्य से ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ को अपनाया. बीते 25 वर्षों में भारत-आसियान संबंध ने कई महत्वपूर्ण आयाम हासिल किये. इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि 1992 में भारत आसियान का ‘सेक्टोरल’ साझेदार बना और 2002 की बैठक में स्तरीय साझेदार बना. भारत आज आसियान-संचालित ‘ईस्ट एशिया समिट’, ‘आसियान डिफेंस मिनिस्टीरियल मीटिंग प्लस’, ‘आसियान रीजनल फोरम’ जैसे महत्वपूर्ण संगठनों का हिस्सा है.

मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद भारत ने इस क्षेत्र के देशों के साथ संबंध को बेहतर करने के दृष्टिकोण से ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ की शुरुआत की. पिछले 30 वर्षों में फिलिपींस की यात्रा पर जानेवाले मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री बने. इंडोनेशिया के राष्ट्रपति 2016 में भारत की यात्रा पर आये थे और भारत-आसियान संबंध के 25 साल पूरा होने के उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री मोदी ने आसियान के सभी सदस्यों को गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथियों के रूप में आमंत्रित किया.

भारत-आसियान के दो दिवसीय शिखर सम्मलेन में दोनों पक्षों ने आपसी हित के कई महत्वपूर्ण विषयों पर विस्तार से चर्चा की. निश्चित रूप से, आर्थिक संबंध हमेशा से भारत-आसियान संबंध का मजबूत पक्ष रहा है. पिछले 25 सालों में दोनों के बीच आपसी व्यापार 70 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया है.

आसियान भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है. भारत के कुल निवेश का 20 प्रतिशत आसियान के देशों में जाता है. पिछले दस साल में भारत और इंडोनेशिया के बीच द्विपक्षीय व्यापार में ढाई गुना की वृद्धि हुई है. भारत आसियान को आर्थिक साझेदार के रूप में देखता है और 2022 तक आपसी व्यापार को 200 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है. सिंगापुर ने असम में एक स्किल डेवलपमेंट सेंटर खोला है.

ऐसे समय में अब भारत को अपनी आर्थिक विकास की गति को तेज करने की जरूरत है, ताकि विकास-कार्य और लोगों को रोजगार दिया जा सके. आसियान के साथ मजबूत आर्थिक संबंध से भारत को इस दिशा में महत्वपूर्ण सहयोग मिलेगा. आसियान से बेहतर रिश्तों से भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों के विकास में भी तेजी आयेगी, यह क्षेत्र पूरे भारत को आसियान के देशों से जोड़ता है.

चीन भी एक कारण है कि भारत और आसियान देश आपसी रिश्तों को मजबूत करना चाहते हैं.सालों से भारत और चीन के बीच सीमा विवाद चल रहा है और हाल के वर्षों में भारत के विरुद्ध चीन कभी-कभी आक्रामक होता रहा है. दूसरी ओर, आसियान देशों और चीन के बीच विवाद रहा है, दक्षिणी चीनी समुद्र क्षेत्र पर चीन अपनी संप्रभुता का दावा कर रहा है. दक्षिणी चीनी समुद्र क्षेत्र भारत के लिए भी महत्व रखता है, क्योंकि इसी समुद्री मार्ग से भारत का आधा से ज्यादा व्यापार होता है. इसलिए भारत और आसियान दोनों के लिए इस बात को सुनिश्चित करना आवश्यक है कि इस भाग में शांति-सुरक्षा कायम रहे.

भारत, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने भारत-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग और समन्वय से संबंधित विषयों पर चर्चा की थी, इससे भारत-आसियान के संबंध का इस पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. भारत की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक ऑपरेशन’ की सफलता के लिए भी आसियान के सहयोग की आवश्कता है.

हलांकि, आसियान और चीन के बीच 185 बिलियन डॉलर का व्यापार है, लेकिन चीन की प्रधानता वाली नीति को देखते हुए आसियान के देश चाहते हैं कि भारत इस क्षेत्र में अपनी मुख्य भूमिका को समझे, ताकि बीजिंग की निरंकुश प्रभुत्ववादी सोच पर अंकुश लग सके. भारतीय मूल के छह मिलियन से ज्यादा लोग आसियान क्षेत्र में रहते है.

अत: भारत के लिए आवश्यक है कि वह अपनों से जुड़े, जो दोनों पक्षों के बीच एक विशेष कड़ी की भूमिका निभा सकते हैं, भारत के विकास में भी.आसियान के दस राष्ट्राध्यक्षों और राष्ट्र प्रमुखों की भारत यात्रा से जहां भारत-आसियान के रिश्तों को एक विशेष गति मिलेगी, वहीं दोनों पक्ष को अपने आपसी संबंधों को मजबूत करने के लिए व्यापार, संचार और सुरक्षा पर भी विशेष बल देने की जरूरत है.

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