चीन की मनोग्रंथि
मुल्कों की सीमा-रेखाओं के विवाद सहज नहीं सुलझाये जा सकते. ज्यादातर यही उम्मीद पाली जा सकती है कि यथास्थिति बहाल रहे और दो मुल्कों के बीच सीमा संबंधी विवाद में एक अस्थायी किस्म की शांति बनी रहे. फिर, इस अस्थायी किस्म की शांति को देर तक कायम रखने के लिए भी लगातार कोशिश करनी पड़ती […]
मुल्कों की सीमा-रेखाओं के विवाद सहज नहीं सुलझाये जा सकते. ज्यादातर यही उम्मीद पाली जा सकती है कि यथास्थिति बहाल रहे और दो मुल्कों के बीच सीमा संबंधी विवाद में एक अस्थायी किस्म की शांति बनी रहे. फिर, इस अस्थायी किस्म की शांति को देर तक कायम रखने के लिए भी लगातार कोशिश करनी पड़ती है, अन्यथा विवाद गहराते देर नहीं लगती. भारत और चीन के बीच पिछले साल से कायम डोकलाम सीमा-विवाद इसका सटीक उदाहरण है. सिक्किम की सीमा से लगते डोकलाम में चीन की सैन्य मौजूदगी और निर्माण-कार्य को लेकर पिछले साल भारत ने सख्त ऐतराज जताया और दोनों मुल्कों के बीच हालात तनावपूर्ण हो गये.
ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन में भागीदारी करने के नाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चीन पहुंचने पर हालात संभले और चीन ने डाेकलाम में अपनी सैन्य टुकड़ियां हटा लीं. दोनों मुल्कों के बीच राय यह बनी कि डोकलाम के मामले में पहले की स्थिति बरकरार रखी जाये. लेकिन, बीते कुछ समय से लगातार खबरें आती रही हैं कि चीन ने डोकलाम में सैनिकों को जुटाना और निर्माण-कार्य फिर से शुरू कर दिया है.
आसार फिर से डोकलाम विवाद के गहराने के हैं, क्योंकि चीन ने बहाने से सीमा-रेखाओं की ऐतिहासिकता का सवाल उठाया है. भारत-चीन सीमा-रेखा लगभग 3500 किलोमीटर लंबी है और चीन इस सीमा-रेखा को अंग्रेजी शासन-काल की देन होने के कारण विवादित ठहराते रहता है. सीमाई विस्तार की चीन की मनोग्रंथि नये सिरे से सक्रिय हुई है.
हाल में चीन में भारत के राजदूत ने एक साक्षात्कार में कहा कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीइसी) को लेकर भारत को चिंता है, क्योंकि गलियारा भारतीय सीमा क्षेत्र का अतिक्रमण करता है. भारतीय राजदूत की इस टिप्पणी को बहाना बनाते हुए चीन के विदेश मंत्रालय ने डोकलाम इलाके पर फिर से अपना दावा जताया है. सेटेलाइट से प्राप्त चित्र बताते हैं कि डोकलाम क्षेत्र में उसने दोनों तरफ निर्माण-कार्य किया है और यह भूटान की संप्रभुता का उल्लंघन है. भूटान के साथ भारत सुरक्षा की संधि से बंधा हुआ है.
इस संधि की रक्षा के नाते और पूर्वोत्तर के राज्यों तक पहुंच के लिहाज से सामरिक रूप से डोकलाम की अहमियत को देखते हुए भारत को तत्काल कोई फैसला लेना होगा. माना जा सकता है कि चीन डोकलाम का मुद्दा भारत पर दबाव डालने की नीयत से गरमाये रखना चाहता है. सीपीइसी के प्रस्तावित राह के लिए वह भारत को सहमत करना चाहता है और यह स्थिति परंपरागत सीमा-रेखा में बदलाव की मांग करती है.
चीनी विदेश मंत्रालय ने इसी नीयत से कहा है कि दोनों देशों को आर्थिक गलियारे सहित तमाम सीमाई विवाद पर बातचीत कर समाधान निकालना चाहिए. भारत अगर आर्थिक गलियारे के प्रस्तावित राह पर सहमत होता है, तो यह चीन की कामयाबी होगी. अगर सीमा-रेखा के मामले में यथास्थिति बहाल रखने पर रजामंदी होती है, तो यह भारत की सफलता कहलायेगी.