विधानसभा की मर्यादा
झारखंड विधानसभा सात दिनों तक स्थगित रही. सत्र शुरू होते ही हंगामा भी शुरू हो गया. हमारे नेताओं ने विधानसभा की मर्यादा को तार-तार करके रख दिया है. सदन में नैतिकता और अनुशासन कहीं नहीं दिखता. आरोप-प्रत्यारोप में ही समय बीत जाता है. कोई किसी की सुनता ही नहीं, हर कोई अपनी धुन में रहना […]
झारखंड विधानसभा सात दिनों तक स्थगित रही. सत्र शुरू होते ही हंगामा भी शुरू हो गया. हमारे नेताओं ने विधानसभा की मर्यादा को तार-तार करके रख दिया है. सदन में नैतिकता और अनुशासन कहीं नहीं दिखता. आरोप-प्रत्यारोप में ही समय बीत जाता है. कोई किसी की सुनता ही नहीं, हर कोई अपनी धुन में रहना चाहता है. हमारे नेतागण बस राजनीति करने में व्यस्त हैं. सत्र के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है तथा वक्त व पैसे की बर्बादी हो रही है. जनता को बेवकूफ बनाकर नेतागण ‘अपनी डफली अपना राग’ अलाप रहे हैं.
भला इस तरह की अव्यवस्था से राज्य का विकास कैसे संभव है? लोगों की समस्याएं अविचारित ही रह जाती हैं. आम जनता उम्मीद लगाये बैठी है और अफसोस भी जता रही है, लेकिन सच्चाई यह है कि लोकतंत्र की इस स्थिति के लिए जनता भी जिम्मेवार है. चुनाव के वक्त अगर नहीं चेतेंगे, तो यही तमाशा देखना होगा और निराशा की पीड़ा झेलनी होगी.
अनुराग हेंब्रम, इमेल से