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युवा केंद्रित बजट से मिलेगी मजबूती
वरुण गांधी सांसद, भाजपा अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के 2017 के आंकड़ों के अनुसार भारत में आधिकारिक रूप से 1.8 करोड़ बेरोजगार हैं, जिनमें अधिकांश युवा हैं. श्रम और रोजगार मंत्रालय की बीते साल की रिपोर्ट बताती है कि संगठित क्षेत्र में रोजगार, कुल रोजगार का सिर्फ 10.1 फीसद है, जबकि हमारे 60 करोड़ से अधिक […]
वरुण गांधी
सांसद, भाजपा
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के 2017 के आंकड़ों के अनुसार भारत में आधिकारिक रूप से 1.8 करोड़ बेरोजगार हैं, जिनमें अधिकांश युवा हैं. श्रम और रोजगार मंत्रालय की बीते साल की रिपोर्ट बताती है कि संगठित क्षेत्र में रोजगार, कुल रोजगार का सिर्फ 10.1 फीसद है, जबकि हमारे 60 करोड़ से अधिक कामगारों को असंगठित क्षेत्र में रोजगार मिला हुआ है, जहां सीमित सामाजिक सुरक्षा मिलती है और न्यूनतम वेतन का बमुश्किल पालन होता है. अर्नेस्ट एंड यंग की रिपोर्ट बताती है कि एक दशक के अंदर भारत में विश्व का सबसे बड़ा कार्यबल होगा. इसमें रोजगार पाने की उम्र के 4.7 करोड़ युवा सरप्लस होंगे, जबकि वैश्विक आंकड़ा 5.65 करोड़ का है.
मौजूदा समय में ग्रामीण और शहरी भारत में औसत दिहाड़ी पारिश्रमिक की दर काफी कम है. एक किसान धान की बुवाई कर प्रति एकड़ प्रति माह 2,400 रुपये कमाता है, जबकि गेहूं से 2,600 रुपये कमाता है. खेतिहर मजदूर प्रति माह 5,000 रुपये कमाता है (भारतीय सांख्यिकी, 2016). खेती के पेशे में औसत दिहाड़ी काफी कम है- जुताई के काम में शारीरिक रूप से सक्षम एक मजदूर वर्ष 2016 में रोजाना 280.50 रुपये कमाता था, जबकि महिला सिर्फ 183.56 रुपये कमा रही थी. शहरी काम में- इलेक्ट्रीशियन और निर्माण मजदूर औसतन क्रमशः 367.16 और 274.06 रुपये रोजाना कमाते हैं, जबकि गैर-कृषि मजदूर 237.20 रुपये कमाता है. इस कमाई का भी एक हिस्सा उपभोक्ता मुद्रास्फीति निगल जाती है.
सीमांत कृषि अर्थव्यवस्था कृषि श्रम मार्केट में युवाओं को बड़े पैमाने पर भागीदारी करने से हतोत्साहित कर रही है, जो बेहतर क्वालिटी जॉब्स मार्केट की जरूरत को इंगित कर रही है. सरकारें हमेशा इसे प्राथमिकता देती रही हैं. योजना आयोग ने बेरोजगारी को युवाओं के सामने पेश सबसे बड़ी समस्या माना है.
सबसे पहले 1998 में एक राष्ट्रीय युवा नीति बनायी गयी, जबकि राष्ट्रीय युवा नीति (2003) में युवाओं के कौशल विकास को बढ़ावा देने की बात कही गयी- बाद में 2005 में जिसे राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद के गठन से और मजबूती मिली. 2014 की राष्ट्रीय युवा नीति में सरकार ने युवाओं को लक्षित करके बनी योजनाओं पर सालाना 90,000 करोड़ रुपये खर्च करने का वादा किया था. अब भी काफी कुछ किये जाने की जरूरत है.
शिक्षा व्यवस्था को नये प्रयोगों को अपनाकर सुधार करने पर हमेशा से ही बहुत मामूली रकम (चालू वित्त वर्ष 2018 में सिर्फ 275 करोड़ रुपये) खर्च की जाती रही है. हमारी आबादी को देखते हुए, हमारे पास अलग-अलग विधाओं में शोध करनेवाले विश्व स्तर के कम-से-कम 50 विवि होने चाहिए थे; वहीं हमारे शोध विवि फंड के लिए तरस रहे होते हैं.
इस बजट में निजी क्षेत्र को प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) के तहत रोजगार-योग्य कौशल के विकास के लिए प्रोत्साहित किया जाये, खासकर ऐसे माहौल में, जहां ऑटोमेशन के चलते 69 फीसदी नौकरियां खतरे में हैं. शिक्षा के लिए भुगतान योजनाओं का विस्तार किया जाना चाहिए, जबकि राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद को अर्थपूर्ण बजट उपलब्ध कराया जाना चाहिए.
रोजगार गारंटी से कुछ मदद मिल सकती है. सरकार को स्टार्ट अप के निर्माण में मदद पर ध्यान देना चाहिए. मौजूदा ‘स्टार्ट इंडिया फंड’ एक संभावनाशील पहल है, लेकिन फंड का इस्तेमाल अभी भी एक गंभीर मसला है. यह बजट आंत्रप्रेन्योर्स के लिए स्टार्टअप फर्म शुरू करने, उन्हें चलाने और जरूरत पड़ने पर बिना झंझट निकल सकने की आसानी पैदा करनेवाला हो सकता है.
साथ ही इसमें उद्योग व शैक्षणिक संस्थानों की साझीदारी और बड़े पैमाने पर इनक्यूबेटर्स को बढ़ावा दिया जा सकता है. तेलंगाना ने स्टार्टअप को टी-हब में वर्किंग स्पेस और प्रोत्साहन देनेवाला माहौल मुहैया कराकर उन्हें मदद की पहल की है. इस समय टी-हब से सीधे जुड़े 117 मेंटर और 14 अंतरराष्ट्रीय साझीदारी से 835 स्टार्ट अप जुड़ चुके हैं.
ऐसे समय में राष्ट्रीय रोजगार नीति तैयार करने भी बहुत जरूरत है- हाल की ऐसी रिपोर्टें कि सरकार इस दिशा में कदम उठा रही है, सुन कर अच्छा लगता है. सरकार को उद्यमियों और निजी क्षेत्र की कंपनियों को वित्तीय और टैक्स लाभ देकर ज्यादा लोगों को काम पर रखने के लिए प्रेरित कर संगठित क्षेत्र के हर सेक्टर में क्वालिटी जॉब्स पैदा करने के लिए रोडमैप भी पेश करना चाहिए. हमें लाखों रोजगार पैदा करने की क्षमता रखनेवाले टेक्सटाइल, कंस्ट्रक्शन, इन्फ्रास्ट्रक्चर पर नियमों का बोझ कम करने पर विचार करना चाहिए.
हमें हर हाल में दुनिया के दूसरे देशों के मौजूदा रुख के अनुरूप अपनी नीतियां बनानी चाहिए. वैश्वीकरण के विरुद्ध बढ़ते राजनीतिक शत्रुतापूर्ण माहौल में शुल्क बढ़ाकर रुकावटें पैदा करने जैसे दूसरे देशों के कदमों को देखते हुए हमें भी कदम उठाने होंगे. भारत को किसी भी हाल में नौकरियां पैदा करनेवाले हल्के मैन्युफैक्चरिंग उद्योगों को चीन और पश्चिम से वापस अपने देश में लाना होगा.
उपनिवेशवाद से पहले के भारत में लाखों लोग मलमल बनाते थे, जो दुनिया का तन ढंकता था और दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को सहारा देता था. बजट की सबसे मौलिक चुनौती भारत की श्रम शक्ति की काम पाने की संभावना को बढ़ाना है- बजट में इस आकांक्षा को जरूर पूरा करना चाहिए.
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