उपचुनाव के नतीजों के संकेत

II आशुतोष चतुर्वेदी II प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in माना जाता है कि उपचुनाव के नतीजे हांडी के एक दाने चावल जैसे होते हैं, जिनसे यह आभास होता है कि जनता जनार्दन के बीच राजनीतिक दलों को लेकर कैसी खिचड़ी पक रही हैं. यह सही है कि उपचुनाव अभियान में राष्ट्रीय नेता नहीं होते. कई […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 5, 2018 6:38 AM
II आशुतोष चतुर्वेदी II
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in
माना जाता है कि उपचुनाव के नतीजे हांडी के एक दाने चावल जैसे होते हैं, जिनसे यह आभास होता है कि जनता जनार्दन के बीच राजनीतिक दलों को लेकर कैसी खिचड़ी पक रही हैं.
यह सही है कि उपचुनाव अभियान में राष्ट्रीय नेता नहीं होते. कई बार विधानसभा चुनावों के नतीजे उपचुनाव के परिणामों के एकदम उलट होते हैं. लेकिन जब उसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव हों, तो मौजूदा नतीजे महत्वपूर्ण हो जाते हैं. राजस्थान में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं. उपचुनाव के नतीजे भाजपा के खिलाफ आये हैं. खिचड़ी कैसी पक रही है, इसका आभास तो ये नतीजे दे ही देते हैं. भाजपा का हिंदी पट्टी पर राजनीतिक वर्चस्व है.
लेकिन राज्यों के नेतृत्व को लेकर लोगों में नाराजगी उभरकर सामने आने लगी है. ऐसा लगता है कि हिंदी पट्टे के कुछ किले दरकने लगे हैं.
बजट के दिन राजस्थान और पश्चिम बंगाल के उपचुनावों के नतीजे आये. बजट की गहमागहमी के कारण चुनावी परिणामों की खबर को प्रमुखता नहीं मिल पायी. चुनाव नतीजे इसलिए गंभीर हैं कि ये एकतरफा हैं. भाजपा के कब्जे वाले राजस्थान में लोकसभा की दो सीटों अलवर और अजमेर तथा एक विधानसभा की एक सीट मांडलगढ़ के लिए उपचुनाव हुए.
इन तीनों सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की. दूसरी ओर पश्चिम बंगाल की उलबेड़िया लोकसभा सीट पर तृणमूल कांग्रेस ने कब्जा बरकरार रखा और कांग्रेस के कब्जे वाली नोआपाड़ा विधानसभा सीट पर भी तृणमूल ने जीत दर्ज की.
संदर्भ समझने के लिए राजस्थान के पुराने चुनाव परिणामों को जानना जरूरी है. लगभग सवा चार साल पहले राजस्थान में विधानसभा चुनाव हुए थे. विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 200 में से 163 सीटें जीती थीं, कांग्रेस को केवल 21 सीटें मिली थीं और शेष अन्य के खाते में गयीं थीं. 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राजस्थान में 25 में से 25 संसदीय सीटों पर कब्जा कर रिकॉर्ड बनाया था.
लेकिन अलवर और अजमेर लोकसभा सीटों के आये उपचुनाव परिणामों के बाद भाजपा की दो सीटें कम हो गयी हैं. अब राजस्थान से उसकी लोकसभा सदस्यों की संख्या में 25 से घटकर 23 रह गयी है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा सांसद सांवर लाल जाट के निधन से अजमेर और चांद नाथ योगी के निधन से अलवर तथा भाजपा विधायक कीर्ति कुमारी के निधन से मांडलगढ़ विधानसभा सीट खाली हुई थी. अलवर लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी कर्णसिंह यादव ने भाजपा उम्मीदवार जसवंत यादव को हराया. जसवंत यादव कोई ऐसे-वैसे उम्मीदवार नहीं थे.
वह वसुंधरा राजे सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. जिन तीन सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया है, वे भाजपा के पास थीं. करीब सात-आठ महीने बाद होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव को देखते हुए इन तीनों उपचुनावों को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा था. इन दोनों लोकसभा क्षेत्रों के तहत आने वाली 16 विधानसभा सीटों और एक मांडलगढ़ को मिलाकर कुल 17 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की है. जाहिर है कि यह भाजपा नेतृत्व के लिए खतरे की घंटी है.
पिछले कुछ समय से लगातार सूचनाएं आ रही हैं कि लोगों में राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की कार्यशैली को लेकर नाराजगी है. बेकाबू गौरक्षक हों या करणी सेना का बवाल या फिर किसानों की नाराजगी अथवा आरक्षण को लेकर आंदोलन, वसुंधरा राजे हालात से निबटने में नाकामयाब रहीं हैं. इस सबने वसुंधरा राजे की स्थिति को कमजोर किया है. लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने इसकी अनदेखी की और अब स्थिति यह है कि वहां नेतृत्व परिवर्तन का समय नहीं बचा है. मध्य प्रदेश में भी कमोबेश यही स्थिति है.
कुछ समय पहले शिवराज सिंह सरकार के खिलाफ किसानों का व्यापक आंदोलन चला था. वहां भी चित्रकूट उपचुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. कई राज्यों में भाजपा नेतृत्व को लेकर लोगों में नाराजगी है. लेकिन लगता है कि बदलाव की हिचकिचाहट के कारण फैसला टाल दिया जाता है. इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ सकता है.
आइए, अब पश्चिम बंगाल उपचुनाव में पर नजर डालते हैं. उत्तर 24 परगना जिले के नोआपाड़ा विस सीट से तृणमूल कांग्रेस के सुनील सिंह को जीत मिली है. उपचुनाव में सुनील सिंह ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के संदीप बनर्जी को हराया. माकपा तीसरे स्थान पर और कांग्रेस चौथे स्थान पर रही.
दूसरी ओर उलबेडिया लोकसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार साजदा अहमद ने भाजपा के अनुपम मल्लिक को हराया. माकपा खिसक कर नंबर तीन पर आ गयी. लब्बोलुआब यह कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल की पकड़ कायम है. भाजपा प्रमुख विपक्षी दल बनकर उभरी है. लेकिन पश्चिम बंगाल उपचुनाव के नतीजे इस मायने में दिलचस्प हैं कि ममता बनर्जी ने वहां विकास को लेकर कोई झंडा गाड़ दिया हो या फिर युगांतकारी कदम उठाये हों, ऐसा कुछ भी नहीं है. लेकिन तृणमूल की ताकत लगातार बढ़ती नजर आ रही है.
ये चुनावी नतीजे बेहद अप्रत्याशित भी नहीं हैं. लेकिन इन उपचुनावों का निहितार्थ यह भी है कि इसने विधानसभा के साथ नवंबर में लोकसभा चुनाव की अटकलों को हवा दे दी है. प्रधानमंत्री मोदी लगातार विधानसभा चुनावों के साथ लोकसभा चुनाव कराये जाने की बात कहते आये हैं.
राष्ट्रपति ने भी अपने अभिभाषण में एक राष्ट्र, एक चुनाव की बात कही है. इस साल के अंत में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने हैं. हिंदी भाषी तीनों राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं और उसे यहां कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिल रही है. हाल में गुजरात में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को किसानों की नाराजगी झेलनी पड़ी थी.
यही वजह है कि इस बजट में किसानों और गरीबों का विशेष ध्यान रखा गया है और इसे चुनावी बजट माना जा रहा है. एक साथ चुनाव की बात भाजपा शीर्ष नेतृत्व से आ रही है. इसलिए इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए. साथ ही प्रधानमंत्री मोदी चौंकाने वाले फैसले लेने में माहिर हैं. लेकिन यह देश का दुर्भाग्य है कि सरकारें अपनी असफलताओं से चली जाती हैं. इसमें विपक्ष की कोई अहम भूमिका नहीं होती. कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि भाजपा सरकारें अपने बोझ से कैसे गिरें, वह उसका इंतजार करती नजर आती है.
सड़कों पर उतरकर सरकार के खिलाफ जनमत जगाने का काम वह नहीं करती. राजस्थान और मध्य प्रदेश में एक बात कांग्रेस के पक्ष में है कि वहां उसके पास पायलट और सिंधिया जैसे राज्यस्तरीय युवा नेता हैं. लेकिन जैसा कि कांग्रेसी भी कहते हैं, उन्हें विपक्ष की जरूरत नहीं होती, उनकी अपनी पार्टी के लोग इस कमी को पूरा कर देते हैं.

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