धर्म के नाम पर अधर्म
भारतीय संविधान द्वारा भारत को एक धर्मनिरपेक्ष देश बनाया गया है, जो हमारे संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता एवं परिपक्वता को दर्शाता है. उनका उद्देश्य धार्मिक सद्भावना द्वारा समाज के विभिन्न समुदायों को जोड़कर राष्ट्र निर्माण का मार्ग प्रशस्त करना है, लेकिन संविधान के लागू होने के 68 वर्षों बाद भी यह प्रश्न हमारे सामने मुंह […]
भारतीय संविधान द्वारा भारत को एक धर्मनिरपेक्ष देश बनाया गया है, जो हमारे संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता एवं परिपक्वता को दर्शाता है. उनका उद्देश्य धार्मिक सद्भावना द्वारा समाज के विभिन्न समुदायों को जोड़कर राष्ट्र निर्माण का मार्ग प्रशस्त करना है, लेकिन संविधान के लागू होने के 68 वर्षों बाद भी यह प्रश्न हमारे सामने मुंह बाये खड़ा है कि क्या हम धर्मनिरपेक्षता के आदर्शों को वास्तविक रूप में समक्ष पाये हैं?
धार्मिक हिंसा की घटनाएं आज भी हमें कलंकित कर रहीं हैं. उत्तर प्रदेश के कासगंज एवं दिल्ली के अंकित की हत्या जैसी घटनाएं धार्मिक उन्माद की पराकाष्ठा है.
अंकित का गुनाह बस इतना था कि उसने मजहब के बंधन को तोड़कर मोहब्बत की मंजिल की तलाश की थी, जो धार्मिक रूढ़िवादिता से ग्रस्त समाज के ठेकेदारों को रास नहीं आया. आज के आधुनिक भारत से बेहतर तो हमारा प्राचीन एवं मध्यकालीन समाज था, जिसमें हमें ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं, जहां अंतरधार्मिक विवाह को खुले मन से स्वीकार किया गया था. न जाने कब हमारा ह्रदय धर्म से ज्यादा मानवता के लिए धड़केगा.
मोहम्मद नेहालुद्दीन, वासेपुर, धनबाद