II आकार पटेल II
कार्यकारी निदेशक,
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
aakar.patel@me.com
इस बार के आम बजट में कुछ आकर्षक और अप्रत्याशित पहलू शामिल हैं. पहला है, रक्षा क्षेत्र के खर्च में कटौती. इसने हमारे रणनीतिक विशेषज्ञों को चिंतित कर दिया है. हमारे यहां सेना पर प्रति वर्ष चार लाख करोड़ रुपये खर्च होते हैं.
इस परिप्रेक्ष्य में अगर मोदीकेयर योजना को देखें, जिसके तहत 50 करोड़ गरीब भारतीयों को लाने का इरादा है, तो उसके लिए दस हजार करोड़ रुपये सालाना खर्च का अनुमान है. सेना पर खर्च, जिसमें पेंशन भुगतान भी शामिल है, की राशि एक लाख करोड़ रुपये है. यह राशि मोदीकेयर की राशि से दस गुना ज्यादा है.
वन रैंक वन पेंशन एेसी योजना है, जिसका लाभ किसी भी अन्य सरकारी कर्मचारी, जैसे- डाकिया, सफाई कर्मचारी या शिक्षक, को नहीं मिलता है. केवल सेवानिवृत्त जवानों की ही एक गरीब देश से इस तरह के स्थायी लाभ और सुरक्षा की मांग है. इन चार लाख करोड़ में तीस हजार करोड़ या वह राशि जो भारत सीआरपीएफ जैसे सुरक्षा बलों, जो कश्मीर और पूर्वोत्तर में स्थायी रक्षा तैनाती पर हैं, पर सालाना खर्च करता है, शामिल नहीं है.ये सभी बल ‘सुरक्षा बलों’ की जो व्याख्या की गयी है, उसके अंतर्गत ही आते हैं और आफस्पा जैसे विशेष कानूनों के तहत संरक्षित हैं.
हालांकि मोदी सरकार ने रक्षा खर्च में कटौती नहीं की है, लेकिन इस राशि में वर्ष 2014 से महज छह प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ही वृद्धि की है. यह मुद्रास्फीति की दर से थोड़ा ही ज्यादा है, जिसका अर्थ है कि वास्तविक खर्च लगभग सामान्य ही रहा है. विशेषज्ञ इस बात को लेकर चिंतित हैं कि ऐसे समय में जब चीन आक्रामक हो रहा है, भारत इस चुनौती को स्वीकार नहीं कर पा रहा है. मेरे हिसाब से प्रधानमंत्री मोदी की यह प्रवृत्ति कि शोर ज्यादा मचाया जाये, लेकिन कार्रवाई छोटे स्तर पर की जाये, एक बुद्धिमत्तापूर्ण कदम है.
जो देश सेना रखते हैं, उनसे मुझे कोई समस्या नहीं है. वस्तुत: यहां प्रश्न असैनिक राष्ट्र बनाने या इसके जैसा ही दूसरा कृत्य करने काे लेकर नहीं है. लेकिन, इतना जरूर है कि हमें अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखना चाहिए और उसे प्राथमिकता देनी चाहिए. एक औसत भारतीय नागरिक के चीनी आक्रमण से कहीं ज्यादा बीमारी और गरीबी से मरने की आशंका है.
हमें इसी परिप्रेक्ष्य में अपनी सुरक्षा को रखना चाहिए, और अगर हम ऐसा करते हैं, तब रक्षा मद में चार लाख करोड़ रुपये और पेंशन भुगतान के लिए एक लाख रुपये की राशि खर्च करना बहुत अधिक है. मेरा मानना है कि अव्यावहारिक खर्च की इस राशि में ज्यादा कटौती करने के बजाय इस पर रोक लगाकर प्रधानमंत्री मोदी ने शानदार काम किया है.
विशेषज्ञों को मोदीकेयर योजना के साथ पहली समस्या यह है कि इसके लिए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने महज दो हजार करोड़ रुपये आवंटित किये हैं, जबकि इसका वास्तविक खर्च इससे कहीं ज्यादा है. पांच लाख रुपये कवरेज की बीमा प्रीमियम के लिए एक परिवार पर 1,100 से 1,400 रुपये तक का सालाना खर्च आयेगा. यानी करीब 11 से 14 हजार करोड़ रुपये की राशि हर साल इस मद में चाहिए.
दूसरी आलोचना है कि यह योजना महज एक घोषणा है. सरकार का कहना है कि योजना के कार्यरूप की तैयारी में छह महीने का समय लगेगा और इसे लागू करने की शुरुआत वर्ष के उत्तरार्ध में हो पायेगी. निश्चित ही इसके बारे में पहले सोचकर ही घोषणा करनी चाहिए थी.
तीसरी समस्या है कि योजना का आधा पैसा राज्य सरकारों को देना होगा और अभी तक राज्यों के साथ इस संबंध में चर्चा शुरू नहीं हुई है. चौथी बात यह कि इस तरह की योजना पहले से ही कुछ राज्यों में चल रही है (जिसके लिए 1,100 रुपये या ऐसी ही मूल्य की राशि दी जा रही है), लेकिन उसका पर्याप्त प्रभाव देखने में नहीं आया है.
पांचवी बात, अनेक भारतीयों के लिए गुणवत्ता वाले अस्पतालों तक पहुंचना ही परेशानीवाली बात है.
ऐसे में बीमा आधारित हल आधारभूत ढांचे की कमी को पूरा नहीं कर सकते हैं. छठी बात, अध्ययन से यह बात सामने आयी है कि भारत सरकार द्वारा प्रदत्त चिकित्सा सुविधाएं विश्व में सबसे खराब हाल में हैं, जिनमें गैरहाजिरी और गैरजिम्मेदारी भी शामिल हैं. यहां शासन की खामी भी एक समस्या है. ये सभी आपत्तियां सही हैं और इन्हें अनदेखा करके केवल बीमा योजनाओं पर ही ध्यान देना ठीक नहीं होगा.
फिर भी स्वास्थ्य योजना एक बेहतरीन सोच है.
अगर यह केवल घोषणा मात्र भी है, तब भी यह सरकार को खर्च करने के लिए मजबूर करेगी. यह कमजाेर और वंचित वर्ग के स्वास्थ्य के मुद्दे को रेखांकित करती है. इससे स्वास्थ्य राष्ट्रीय चर्चा का मुद्दा बना है, जबकि कभी रक्षा और वन रैंक वन पेंशन का मुद्दा मुखर था और यह मुद्दा गौण था. जब तक यह दबाव है, पैसा मिलेगा. फिर जनता सुविधा की भी मांग करेगी. तब पांच लाख रुपये के पर्याप्त होने या न होने को भी समझा जा सकेगा.
इन सभी कारणों के आधार पर मेरा मानना है कि सरकार का यह कदम शानदार है. अपने पूरे राजनीतिक जीवन में मोदी ने जिस धार्मिक बहुसंख्यकवाद का अनुसरण किया है, मुझे उससे कतई सहानुभूति नहीं है.
उनके शासन में इस मोर्चे पर जो कुछ भी हो रहा है, वह डरावना व खतरनाक है. लेकिन, जब वे कुछ अच्छा कदम उठाते हैं, तो हमें उनकी प्रशंसा करनी चाहिए. इसलिए मैं मानता हूं कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना का अवश्य ही समर्थन किया जाना चाहिए.