तृतीय-लिंग के पक्ष में बड़ा फैसला
न्यायाधीश केएस राधाकृष्णनन और एके सीकरी ने अपने सर्वथा ऐतिहासिक फैसले में सामाजिक और मानवीय न्याय और अधिकार की जो सुखद व शीतल मुक्तिधारा प्रवाहित की है, वह भारतीय समाज के माथे पर लगे उस कलंक को मिटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी, जिसने एक बहुत बड़े ईश्वरीय अभिशाप को झेल रहे हास्य का पात्र बने […]
न्यायाधीश केएस राधाकृष्णनन और एके सीकरी ने अपने सर्वथा ऐतिहासिक फैसले में सामाजिक और मानवीय न्याय और अधिकार की जो सुखद व शीतल मुक्तिधारा प्रवाहित की है, वह भारतीय समाज के माथे पर लगे उस कलंक को मिटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी, जिसने एक बहुत बड़े ईश्वरीय अभिशाप को झेल रहे हास्य का पात्र बने इस समुदाय से उनके होने की पहचान तक छीन ली थी. यह निर्णय मुक्तकंठ से प्रशंसनीय है.
तृतीय-लिंगी (हिजड़ा) समुदाय के पक्ष में दिये गये इस निर्णय से सदियों से सामाजिक हाशिये पर रह रहे असंख्य लोगों को, जो मनोवैज्ञानिक तनाव, निराशा, पीड़ा और उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं, निश्चित रूप से मानव और नागरिक के रूप में पहचान व मान्यता मिल सकेगी.
समाज के समग्र विकास की अवधारणा तब तक सफल नहीं कही जा सकती, जब तक समाज का एक भी व्यक्ति उपेक्षित, दबा-कुचला, सामाजिक, आर्थिक रूप से शोषित और संवैधानिक अधिकारों से वंचित है. तमाम वैज्ञानिक व औद्योगिक विकास भी समाज के एक मानव का दूसरे मानव के प्रति क्रूर, पक्षपातपूर्ण, पूर्वाग्रहों से ग्रसित तथा परंपरावादी सोच को नहीं बदल पाये. किंतु अब इस थर्ड जेंडर को समान नागरिक होने के नाते सभी अधिकार प्राप्त हो सकेंगे. इस प्रयास में लक्ष्मी त्रिपाठी के महत्वपूर्ण योगदान को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
विचारणीय तथ्य यह है कि भ्रमवश इस समुदाय को किन्नर नाम से संबोधित किया जाता रहा है, जो सर्वथा अनुचित है. निर्णय के बाद अब इस समुदाय के सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को शीघ्र से शीघ्र दूर कर समाज की मुख्यधारा से जोड़ना होगा. यही मानव समाज की सच्ची पहचान होगी, जो एक बड़ी चुनौती है.
पूनम पाठक, कोलकाता