आजीविका व रोजगार में फर्क है
पहले प्रधानमंत्री मोदी और अब अमित शाह द्वारा युवाओं को पकौड़े बेचने के लिए प्रोत्साहित करना वाकई में दुखद है. आजीविका और रोजगार में एक बड़ा फर्क होता है. निश्चित तौर पर पकौड़े बेचना शर्म की बात नहीं है, लेकिन पकौड़े बेचने को रोजगार कहना अवश्य शर्म की बात है. रोजगार देने में असफल सरकार […]
पहले प्रधानमंत्री मोदी और अब अमित शाह द्वारा युवाओं को पकौड़े बेचने के लिए प्रोत्साहित करना वाकई में दुखद है. आजीविका और रोजगार में एक बड़ा फर्क होता है. निश्चित तौर पर पकौड़े बेचना शर्म की बात नहीं है, लेकिन पकौड़े बेचने को रोजगार कहना अवश्य शर्म की बात है. रोजगार देने में असफल सरकार बेसिर-पैर की बातें कह कर अपना ही कब्र खोद रही है.
बेरोजगारी का आलम यह है कि मास्टर डिग्रीधारक चपरासी के पद के लिये आवेदन भर रहे हैं. किसानों की आत्महत्या के साथ अब बेरोजगारों की आत्महत्या भी शुरू हो गयी है. जनता ने बहुत भरोसे के साथ वर्तमान सरकार को गद्दी पर बिठाया है. सरकार को इसे बनाये रखने के लिए मेहनत करनी चाहिए.
प्रदीप कुमार रजक, जमशेदपुर