करते रहिए फ्लर्ट!

अंशुमाली रस्तोेगी व्यंग्यकार प्यार का तो कुछ ऐसा है कि किसी न किसी से हो ही जाता है. प्यार होते ही साथ-साथ जीने-मरने की कसमें तो खैर खायी ही जाती हैं. कुछ इससे भी आगे निकल शादी कर लेते हैं. यानी लव ‘लव-मैरिज’ में तब्दील हो जाता है. ‘लव-मैरिज’ वालों को मेरा सलाम. समाज में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 8, 2018 5:30 AM
अंशुमाली रस्तोेगी
व्यंग्यकार
प्यार का तो कुछ ऐसा है कि किसी न किसी से हो ही जाता है. प्यार होते ही साथ-साथ जीने-मरने की कसमें तो खैर खायी ही जाती हैं. कुछ इससे भी आगे निकल शादी कर लेते हैं. यानी लव ‘लव-मैरिज’ में तब्दील हो जाता है. ‘लव-मैरिज’ वालों को मेरा सलाम.
समाज में कुछ ऐसे भी साहसी लोग हैं, जो फ्लर्ट भी कर लेते हैं. ऐसा-वैसा नहीं, बल्कि कामयाब फ्लर्ट. हींग लगे न फिटकरी, रंग आये चोखा.
कॉलेज के दिनों में मेरा एक दोस्त था. वो फ्लिर्टिंग का मास्टर था. पढ़ाई-लिखाई से कहीं ज्यादा वह किस्म-किस्म के फ्लर्ट पर ध्यान देता था. फ्लर्ट उसकी आत्मा से लेकर स्वभाव तक में शामिल था. एकाध दफा तो ऐसा भी हुआ कि उसके हमारे मोहल्ले में आने पर मोहल्ले वालों ने पाबंदी ही लगा दी. मोहल्ले की लड़कियों से फ्लर्ट वह कर जाता था, नाम बदनाम मेरा होता था कि ये सब मैं करवा रहा हूं. उड़ते-उड़ते बात मेरे घर तक पहुंच जाती थी. मुझे घर वालों की सख्त नसीहतों का सामना करना पड़ता था सो अलग.
जो भी हो, पर मेरे दिल में न केवल उस दोस्त, बल्कि हर उस व्यक्ति के प्रति खासा सम्मान है, जो किसी न किसी बहाने फ्लर्टिंग में लगे रहते हैं. यों भी, आजकल जमाना प्यार से अधिक फ्लर्टिंग का है.
और, सोशल मीडिया पर तो फ्लर्टिंग के क्या कहने. फेसबुक के इन-बॉक्स में न जाने कितने ही फ्लर्ट की कहानियां दबी पड़ी हैं.आदर्शवादी लोग ऐसा मानते हैं कि फ्लर्ट एक अय्याशी-तलब विधा है. एक फ्लर्टवादी हमारे समाज का सबसे बिगड़ैल प्राणी होता है. फ्लर्ट ने प्यार जैसी पवित्र चीज को नुकसान पहुंचाया है. हालांकि, यह बात पूरी तरह सही नहीं है. फ्लर्टिंग की परंपरा तो अपने देश में अनादि-काल से रही है. कितने ही देवी-देवताओं, राजा-महाराजाओं ने अपने जीवन काल में कितने ही फ्लर्ट किये. चूंकि, वे सबपवित्र आत्माएं थीं, सो उनके फ्लर्ट को ‘प्रेम’ नाम दे दिया गया. हां, यह सत्य है कि उनके फ्लर्ट बड़े कायदे के और आदर्श हुआ करते थे.
आजकल के जमाने में प्यार होना ही इतना कठिन हो लिया है, फ्लर्ट करना तो और भी मेहनत का काम है. किसी को क्या मालूम अपने व्हाॅट्सएप पर अगला कितनों से फ्लर्ट कर रहा है. सबकी अपनी-अपनी चाहतें और स्वतंत्रताएं हैं. आखिर हम एक लोकतांत्रिक मुल्क हैं.
लोकतंत्र में सबको प्यार, धिक्कार, स्वीकार, फ्लर्ट करने का अधिकार है.
गाहे-बगाहे इच्छा तो मेरी भी बहुत होती है कि मैं भी फ्लर्ट करूं. लेकिन, अचानक से पत्नी का कथित रौद्र-रूप ध्यान में आ जाता है और मुझे अपनी इस उत्कंठ इच्छा को कैंसिल कर देना पड़ता है. वैसे, जानकारी के लिए बता दूं, शादीशुदा लोग फ्लर्ट अधिक करते हैं. चाहे तो इस मुद्दे पर शोध करवा लीजिये. मैं गलत साबित न होऊंगा. तो करते रहिये फ्लर्ट. बाकी जो होगा, देखा जायेगा. प्यार का महीना है.

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