सुनिश्चित हो खाप की जवाबदेही
II जगमती सांगवान II सदस्य, केंद्रीय कमेटी, एआइडीडब्ल्यूए jagmatisangwan@gmail.com अभी कुछ ही दिन पहले देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि दो वयस्कों की शादी में कोई भी बाधा नहीं बन सकता. ऑनर किलिंग पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने खाप पंचायतों को फटकार लगायी थी […]
II जगमती सांगवान II
सदस्य, केंद्रीय कमेटी, एआइडीडब्ल्यूए
jagmatisangwan@gmail.com
अभी कुछ ही दिन पहले देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि दो वयस्कों की शादी में कोई भी बाधा नहीं बन सकता. ऑनर किलिंग पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने खाप पंचायतों को फटकार लगायी थी कि बालिग लड़के-लड़की की शादी के उनके फैसले में कोई भी दखल नहीं दे सकता. ऐसा करने का किसी को भी कोई अधिकार नहीं है.
शायद इसी के जवाब में शामली में बालयान खाप पंचायत के प्रमुख नरेश टिकैत ने सर्वोच्च अदालत के खिलाफ जाकर बयान दिया कि अदालत उनकी संस्कृति और परंपरा में दखलअंदाजी न करे, लड़की की शादी परिवार की मर्जी से ही होगी. टिकैत ने धमकी भरे लहजे में यहां तक कह डाला कि अगर इसमें कोई दखल देता है, तो वे लड़कियों को जन्म देना ही बंद कर देंगे.
खाप पंचायत प्रमुख का यह बयान बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है. यह न सिर्फ लिंग के आधार पर भेदभावपूर्ण है, बल्कि संविधान की मूल भावना के भी खिलाफ है. सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था के फैसले के खिलाफ जाकर न सिर्फ बोलना, बल्कि धमकी तक देना, यह हमारी लोकतांत्रिक मर्यादा को तार-तार करने जैसा है. ऐसा करने के लिए ऐसे लोगों पर उचित कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए. लड़कियों के साथ भेदभावपूर्ण रवैये के चलते हमारा देश बहुत ही खराब लिंगानुपात से जूझ रहा है.
आखिर खुद खाप पंचायतों को भी सोचना चाहिए कि जब लड़कियों को जन्म मिलेगा ही नहीं, तो फिर इससे समाज में कितना लिंगगत असंतुलन पैदा हो जायेगा. वे अपने बेटों को ब्याहने कहां जायेंगे? उनके बयान कई समस्याओं को बढ़ा देते हैं और समाज में हिंसा का एक नया रूप सामने आने लगता है. इसलिए ऐसे बयानों की जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए. माननीय सुप्रीम कोर्ट को खुद पंचायत प्रमुख को नोटिस देना चाहिए और जवाब-तलब करना चाहिए, क्योंकि यह अदालत की अवमानना का सवाल है.
जो आधी आबादी यानी महिलाएं देश की जीडीपी को बढ़ाने, परिवारों को अच्छी तरह से चलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती हैं, अगर उनकी अस्मिता के साथ कोई इस तरह से खिलवाड़ करता है, तो निश्चित रूप से इससे हमारे लोकतंत्र पर असर पड़ेगा और महिलाएं समाज में कमजाेर होंगी. ऐसे बयान, ऐसी धमकियां सिर्फ महिलाओं की क्षमताओं-योग्यताओं को ही नहीं नकारतीं, बल्कि उनके अस्तित्व पर संकट भी खड़ा करती हैं. यह लोकतांत्रिक समाज की आत्मा के साथ खिलवाड़ है कि कोई भी पुरुष अपनी औरतों के बारे में इस तरह की सोच रखे.
देश में कहीं भी, जब भी ऐसी बातें सामने आयें या महिलाओं के अस्तित्व को संकट में डालनेवाला बयान सामने आये, तो हम महिलाओं को इसके विरोध में खड़ा होना चाहिए. हमें जागरूकता अपनानी चाहिए कि हम औरतें किसी के हाथ की कठपुतली नहीं हैं, बल्कि हमारा एक स्वतंत्र वजूद भी है.
आज भी देश में उन महिलाओं का प्रतिशत कम है, जो जागरूकता अपनाने के लिए तमाम तरह की सूचनाओं से अवगत रहती हैं. यह बहुत जरूरी है कि कानून से मिले उन्हें अपने अधिकार को वे समझें, ताकि वे ऐसे बयानों का जवाब दे सकें और उन पर कार्रवाई की मांग कर सकें. कानून और प्रशासन के जरिये उन पर दबाव बनाने की मुहिम चलानी चाहिए, ताकि भविष्य में उनकी अस्मिता को फिर कोई ठेस न पहुंचाये.
पूरी दुनिया के पैमाने पर आज जहां कोशिशें ये हो रही हैं कि महिलाआें को जीवन के हर क्षेत्र में मुख्यधारा से जोड़ा जाये, वहां खाप पंचायतों की ऐसी महिला-विरोधी सोच महिलाओं को मुख्यधारा से जोड़ने के खिलाफ है.
दुनिया के हर देश में महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी क्षमता का शानदार प्रदर्शन कर रही हैं. लेकिन, भारत में खाप पंचायत जैसी संस्थाएं हम महिलाओं को दबाकर रखना चाहती हैं. परंपराओं और रूढ़ियों से आगे जाकर दुनिया के सारे देश महिलाओं को साथ लेकर चल रहे हैं, लेकिन हम अब भी पुरातनपंथी और ढपोरशंखी परंपराओं का सहारा लेकर चल रहे हैं, तो सोचनेवाली बात यह है कि इससे दुनिया में हमारी छवि क्या बनेगी.समाज में हर तरह का संतुलन बना रहे, इसके लिए कानून-व्यवस्था और प्रशासन तंत्र की जिम्मेदारी सुनिश्चित की गयी है.
ऐसे में अगर कोई व्यक्ति लोकतंत्र और संविधान के खिलाफ जाकर कोई बात कहे या कोई कृत्य करे, यह हमारे लिए स्वीकार्य नहीं होना चाहिए. इसलिए लोकतंत्र के हर विभाग को अपने स्तर से ऐसे विषयों पर समृद्ध सोच के साथ आगे आना चाहिए और आधी आबादी को सशक्त करने में अपनी मजबूत भागीदारी निभानी चाहिए. लोगों को भी चाहिए कि वे अपनी बच्चियों के बेहतर भविष्य के लिए ऐसी पंचायतों की निंदा करें.
क्योंकि, इसका असर किसी बाहरी पर नहीं पड़ेगा, बल्कि उन्हीं लोगों के परिवार-समाज पर पड़ेगा. समाज को एक कदम आगे जाकर पंचायतों की जवाबदेही सुनिश्चित कराने में शासन-प्रशासन का सहयोग करना चाहिए, ताकि यह साबित हो सके कि ऐसी पंचायतों की निष्ठा संविधान और लोकतंत्र में है भी या नहीं. संविधान और कानून-व्यवस्था के समानांतर अपनी व्यवस्था चलानेवाली ये पंचायतें हमारे देश-समाज के लिए बहुत ही नुकसानदायक हैं.