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एचइसी को बचाने आगे आएं

II आशुतोष चतुर्वेदी II प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in बिहार और झारखंड की सबसे बड़ी चुनौती है बड़े उद्योगों का अभाव. आजादी के बाद अनेक स्थानों पर सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां लगीं, लेकिन इस क्षेत्र की अनदेखी कर दी गयी. इस पूरे क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र की गिनी-चुनी इकाइयां हैं, जिनमें से एक है भारी […]

II आशुतोष चतुर्वेदी II

प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in
बिहार और झारखंड की सबसे बड़ी चुनौती है बड़े उद्योगों का अभाव. आजादी के बाद अनेक स्थानों पर सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां लगीं, लेकिन इस क्षेत्र की अनदेखी कर दी गयी. इस पूरे क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र की गिनी-चुनी इकाइयां हैं, जिनमें से एक है भारी उद्योग निगम (एचइसी). निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को लेकर बात करें तो माना जाता है कि झारखंड की दो शान हैं- एक टाटा और दूसरी एचइसी.
सार्वजनिक क्षेत्र की यह इकाई बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार उपलब्ध कराती है. जैसा कि होता है, किसी भी बड़ी इकाई के आसपास एक शहर सा बस जाता है और छोटे-छोटे काम धंधे करने वालों को रोजगार का अवसर मिल जाता है. ऐसा अनुमान है कि यह इकाई लगभग 30 हजार लोगों को रोजी-रोटी का अवसर प्रदान करती है. हाल ही में रांची से भाजपा सांसद रामटहल चौधरी एचइसी सप्लाई मजदूर यूनियन की मांगों को लेकर केंद्रीय भारी उद्योग और सार्वजनिक उपक्रम मंत्री अनंत गीते से मिलने गये थे. बातचीत में अनंत गीते ने उन्हें जानकारी दी कि एचइसी की स्थिति ठीक नहीं है. अभी सप्लाई मजदूर यूनियन की मांग को पूरा करना संभव नहीं है. साथ ही गीते ने सांसद को एचइसी को केंद्र सरकार द्वारा बेचे जाने का संकेत भी दिया. केंद्रीय मंत्री ने बताया कि केंद्र ने एचइसी को बेचने की प्रारंभिक प्रक्रिया शुरू कर दी है और प्रधानमंत्री कार्यालय भी इस मामले में सक्रिय हो गया है.
यह सूचना पूरे झारखंड के लिए बुरी खबर है. थोड़ा अनंत गीते के बारे में भी बता दूं कि वह केंद्र सरकार में शिव सेना का प्रतिनिधित्व करते हैं.
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम एचइसीएल का गठन 1958 में किया गया और 1964 में कंपनी ने उत्पादन शुरू कर दिया था. एचइसी का मुख्य उद्देश्य था इस्पात उद्योग को संयंत्र उपलब्ध कराना. दरअसल, वह सार्वजनिक क्षेत्र का दौर था. उस दौरान इस्पात क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र की अनेक इकाइयां स्थापित की जा रही थीं.
नेहरू ने इन्हें आधुनिक भारत का मंदिर बताया था. उस समय कल्पना की गयी थी कि देश में हर साल एक लाख टन क्षमता का एक इस्पात संयंत्र जोड़ा जायेगा. जैसा कि होता है सरकारी योजनाएं तो बहुत आकर्षक बनायी जाती हैं, लेकिन वे कभी सिरे नहीं चढ़ पातीं. नतीजा यह रहा कि इतने इस्पात संयंत्र स्थापित नहीं हुए और संयंत्रों की मांग कभी इतनी नहीं रही, जिसकी कल्पना की गयी थी. लेकिन, एचइसी ने खुद को नयी परिस्थितियों के अनुरूप ढाला और अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार कर लिया.
कंपनी खनन, रेलवे और रक्षा क्षेत्रों के लिए उपकरण और संयंत्र बनाने लगी. वर्तमान में कंपनी स्टील, कोयला, सीमेंट, ऊर्जा, रक्षा,
एल्युमीनियम, जहाज निर्माण और रेलवे जैसे क्षेत्रों के लिए उपकरण तैयार करती है. एचइसी देश का सबसे बड़ा एकीकृत इंजीनियरिंग कॉम्प्लेक्स है. 21 लाख वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैले एचइसी में स्टील मेल्टिंग, कास्टिंग, फोर्जिंग, फैब्रिकेशन, मशीनिंग, असेंबली एंड टेस्टिंग की सुविधा उपलब्ध है. कंपनी की उपलब्धियों पर नजर डालें तो इसने इस्पात क्षेत्र के लिए 550 हजार टन से अधिक उपकरणों का निर्माण और आपूर्ति की है. बोकारो और विजांग स्टील संयंत्र की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. भिलाई इस्पात संयंत्र के विस्तार के लिए उपकरण की आपूर्ति की है. एचइसी ने ही भारत के लगभग सभी सार्वजनिक क्षेत्रों के इस्पात संयंत्रों का निर्माण किया है.
कंपनी ने भारत के अंतरिक्ष योजना में भी योगदान दिया है. कंपनी ने इसरो के लिए मोबाइल लांच पैड, विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के लिए लांच पैड बनाया. एचइसी के बनाये लांच पैड से इसरो ने पीएसएलवी, जीएसएलवी और चंद्रयान की सफल लांचिंग की. युद्धपोत आइएनएस राणा के लिए प्रणाली बनायी, आधुनिक टैंक निर्माण में योगदान दिया है.
समय समय पर एचइसी की उपलब्धियों को सराहा भी गया है. एचइसी ने उत्कृष्टता और सार्वजनिक क्षेत्र के प्रबंधन में उत्कृष्ट योगदान के लिए स्कोप अवार्ड जीता है. भारतीय परमाणु सोसाइटी ने परमाणु क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए एचइसी के प्रयासों को सराहा है. एचइसी में कायापलट को मान्यता देने के लिए कंपनी को 2010 के बीआरपीएसइ टर्नअराउंड पुरस्कार 2010 से सम्मानित किया गया.
यह पुरस्कार सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के पुनर्निर्माण बोर्ड (बीआरपीएसइ) द्वारा 2011 में दिया गया था. 2012 में एचइसी द्वारा उद्योग में उत्कृष्ट योगदान के लिए एचइसी को बीटी – स्टार पीएसयू एक्सीलेंस अवार्ड से नवाजा गया. कहने का आशय यह कि आधुनिक भारत के निर्माण में एचइसी ने भारी योगदान दिया है और ये पुरस्कार इसकी पुष्टि करते हैं.
अचानक ऐसा क्या हो गया कि इसे निजी हाथों में सौंपने की नौबत आ गयी. दरअसल, वर्षों से इस कंपनी की अनदेखी की जाती रही है. इसके आधुनिकीकरण को लेकर जो प्रयास होने चाहिए थे, वे कभी नहीं हुए. तकनीक बदल गयी, उपकरण बदल गये, लेकिन कंपनी 50 वर्ष पुराने उपकरणों से ही काम चला रही है. कंपनी के अधिकारी बताते हैं कि 2200 करोड़ रुपये की आधुनिकीकरण की एक योजना उद्योग मंत्रालय को सौंपी गयी है और अभी उस पर कोई फैसला नहीं हुआ है.
दिलचस्प तथ्य यह है कि कंपनी के पास लगभग 1200 करोड़ रुपये के ऑर्डर हाथ में हैं और उसकी देनदारी केवल 70 करोड़ रुपये की है. ऐसे में इसे निजी हाथों में सौंपा जाना, गले नहीं उतरता. जब कंपनी की स्थापना की गयी थी तो झारखंड राज्य बिहार का हिस्सा था. उस समय कंपनी को सात हजार एकड़ भूमि उपलब्ध करायी गयी थी. अनेक किसानों ने इस उम्मीद के साथ अपनी जमीन दी थी कि इससे उन्हें और उनकी आगामी पीढ़ियों को रोजगार का अवसर मिलेगा. कंपनी ने इस भूमि पर संयंत्र स्थापित किये, प्रशासनिक कार्यालय और एक पूरा आवासीय परिसर बसाया.
लेकिन, कंपनी की लंबी चौड़ी जमीन ही इसकी मुसीबत बन गयी है. माना जा रहा है कि निजी क्षेत्र की कंपनियों की निगाहें इसी जमीन पर हैं. यह सही है कि सांसद और विधायक अपना काम करेंगे और केंद्र और राज्य सरकार के समक्ष एचइसी को निजी हाथों में न सौंपे जाने का अनुरोध करेंगे. लेकिन, पूरा मामला केवल उनके भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता.
इस कंपनी से झारखंड के लोगों का सीधा सरोकार और हित जुड़ा है. ऐसे में इसे बचाने की जवाबदेही जनता की भी है. इस सार्वजनिक उपक्रम को निजी हाथों में जाने से बचाने के लिए जन पहलकदमी की जरूरत होगी. संसदीय लोकतंत्र का अनुभव बताता है कि सरकारें लोगों की भावनाओं की अनदेखी नहीं कर सकतीं. जनभावनाएं एचइसी के निजीकरण के खिलाफ हैं और इसके वर्तमान स्वरूप को बनाये रखने के पक्ष में हैं.

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