।। पुष्परंजन।।
(ईयू एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक)
अल जजीरा वेब पेज पर मीर सुहैल के एक काटरून को पाकिस्तान में बहुत पसंद किया जा रहा है. इस कार्टून में अलग-अलग दल-जमात के चार नेता दांत चियारे, बैलेट बॉक्स उठाये खड़े हैं. चारों की मत पेटियों पर लिखा है, ‘वोट फॉर मी’. ये चारों नेता एक संगीनधारी सैनिक की छत्रछाया में खड़े हैं. इस कार्टून के बिना पर दक्षिणी कश्मीर में पिछली बार कम पड़े वोट, और बंदूक के साये में चुनाव का विश्लेषण किया गया है.
सुहैल ने इससे पहले भी अपने कार्टून में एक विशालकाय मुर्गी को उकेरा था. उस मुर्गी ने काफी उछल-कूद के बाद कबूतर के अंडे के आकार का एक अंडा दिया था, जिस पर लिखा था, ‘टर्न आउट’! 24 साल के पॉलिटिकल कार्टूननिस्ट सुहैल को कश्मीरी अलगाववादी मिसाइल से कम नहीं मानते. उनके कार्टून से उनकी मंशा पूरी होती है. भारत में 543 लोकसभा सीटों के लिए हो रहे आम चुनाव में जम्मू-कश्मीर से छह सांसद चुने जाने हैं. 69,33,118 मतदाताओं वाले जम्मू-कश्मीर में 70 से अधिक पुरुष और तीन महिलाएं चुनाव लड़ रही हैं. पाक की कोशिश यह है कि सात मई को बारामुला और लद्दाख (सुरक्षित) में अंतिम चरण का मतदान करने बहुत कम लोग जायें, या फिर चुनाव का बहिष्कार करें.
कश्मीर में सबसे कम वोट पड़ना, या चुनाव का बहिष्कार पाकिस्तान के लिए मिर्च-मसाले वाली खबर है. जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ), हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दो अलग-अलग खेमों के नेता सैयद अली शाह गिलानी और मीरवाइज उमर फारूक ने मतदान बहिष्कार की वजहों में जनमत संग्रह, अनुच्छेद 370, सेना को दिया गया विशेषाधिकार, मुठभेड़ में मारे गये लोगों की जांच, अफजल गुरु को फांसी जैसे मुद्दे गिनाये हैं.
चुनाव प्रचार को पलीता लगाने के लिए सीमा पार से ऑल पार्टी कश्मीर कॉन्फ्रेंस, यूनाइटेड जिहाद कौंसिल (यूजेसी) ने लगातार बैठकें की हैं. इन बैठकों में पाकिस्तानी कब्जेवाले कश्मीर के प्रधानमंत्री चौधरी अब्दुल मजीद, ‘पीओके’ के विपक्षी नेता राजा फारूक हैदर खान, शाह गुलाम कादिर, सरदार हैदर खान, ‘जेकेएलएफ’ प्रमुख अमानुल्ला खान लगातार हाजिर रहे हैं. पाकिस्तान, हर कीमत पर कश्मीर में हो रहे मतदान को पटरी से उतारना चाहता है.
दिलचस्प है कि चुनाव भारत में है, और इसके बहिष्कार से संबंधित बैठकें सीमा पार मुजफ्फराबाद व एबटाबाद में होती रही हैं. कश्मीर में वोट का प्रतिशत कम होने पर पाकिस्तान को कहने में आसानी हो जाती है कि इस सूबे के लोगों को दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार पर भरोसा नहीं हैं. इसलिए कश्मीर का समाधान अंतरराष्ट्रीय बिरादरी करे.
अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को पाक से एक सवाल अवश्य पूछना चाहिए कि उसके कब्जे वाले कश्मीर में पाक संसद (नेशनल असेंबली) के लिए कभी चुनाव हुआ भी है? सच यह है कि ‘पीओके’ (पाक अधिकृत कश्मीर) में पिछले 65 साल में कभी पाक संसद के लिए कोई प्रतिनिधि चुना ही नहीं गया. पाक संसद में मिनिस्ट्री ऑफ कश्मीर अफेयर्स, गिल्गिट-बाल्टिस्तान (केएजीबी) नामक एक विभाग बनाया गया है, जिसके मंत्री हैं चौधरी मुहम्मद बजिर्स ताहिर. कमाल की बात यह है कि बजिर्स कश्मीरी हैं ही नहीं. वह पंजाब में पैदा हुए, ननकाना साहेब-1 से पाकिस्तान मुसलिम लीग (नवाज) के टिकट पर 2013 में सांसद चुने गये. बजिर्स पांचवी बार सांसद बने हैं. उनसे पहले मियां मंजूर अहमद बट्ट ‘केएजीबी’ के मंत्री थे.
बट्ट भी पंजाब से ताल्लुक रखते थे. सवाल यह है कि पाकिस्तान के पंजाबी सांसद किस हक से कश्मीर मामलों के मंत्री बन जाते हैं? क्या यह पाक अधिकृत कश्मीर की जनता से जोर जबरदस्ती नहीं है? कश्मीरियों पर पंजाब के मंत्री इसलिए थोपे जाते हैं, क्योंकि पाकिस्तान के सियासतदानों को उन पर भरोसा नहीं रहा है.
पाकिस्तान भले ‘पीओके’ को आजाद कश्मीर कहता रहा है, लेकिन सच यह है कि यह पूरा इलाका पिछले 65 साल से उसकी गुलामी को ङोल रहा है. यदि ‘आजाद कश्मीर’ को एक स्वायत्त राष्ट्र का ओहदा पाकिस्तान ने दे रखा है, तो उसका दूतावास इसलामाबाद में क्यों नहीं है? दुनिया के किसी भी देश में ‘आजाद कश्मीर’ का दूतावास नहीं है. ‘पीओके’ के लोग सेना, कठोरपंथियों और अतिवादियों के सितम के विरुद्घ पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा तक नहीं खटखटा सकते. हर माह मानवाधिकार हनन के दर्जनों मामले पीओके की वादियों में ही दफन हो जाते हैं.
1970 में राष्ट्रपति पद सृजित कर उसे ‘आजाद कश्मीर’ का निर्वाचित शासनाध्यक्ष बनाया गया था. इसके पांच साल बाद 1975 में ‘अंतरिम संविधान संशोधन 1974’ के तहत पाकिस्तान ने आजाद कश्मीर के लिए ‘संसदीय लोकतंत्र’ की घोषणा की. आजाद कश्मीर संसद का गठन किया गया, उसके 49 सदस्य भी हैं और बाकायदा आजाद कश्मीर सरकार के मंत्रलय भी बने. आजाद कश्मीर के पहले प्रधानमंत्री खान अब्दुल हमीद खान बनाये गये, लेकिन ‘आजाद कश्मीर’ के प्रधानमंत्री की औकात इतनी भर है कि एक अदना सा इंस्पेक्टर उसे घसीट कर इसलामाबाद ले जाता है.
29 जून, 1990 से 5 जुलाई, 1991 तक राजा मुमताज हुसैन राठौर ‘आजाद कश्मीर’ के प्रधानमंत्री थे. वे भुट्टो परिवार के सेवक माने जाते थे. 1991 में सरकार से खटपट हुई और उन्हें गिरफ्तार कर इसलामाबाद ले जाया गया. राजा फारूक हैदर, दस महीने के लिए (22 अक्तूबर, 2009 से 29 जुलाई, 2010 तक) आजाद कश्मीर के प्रधानमंत्री बने. उनकी ईमानदारी कश्मीर मामलों के मंत्रलय, ‘केएजीबी’ को रास नहीं आया. उन्हीं दिनों मूरी के जीसीओ से प्रधानमंत्री हैदर की ठन गयी. मंगला डैम से पैदा बिजली में हिस्सेदारी पर विवाद के बाद प्रधानमंत्री हैदर को गिरफ्तार कर इसलामाबाद लाया गया. यह पूरी कहानी ‘डेली जंग’ में 16 मई, 2010 को छपी थी. मंगला डैम ‘पीओके’ में है, जहां एक हजार मेगावाट से अधिक बिजली पैदा होती है, मगर दुर्भाग्य कि ‘पीओके’ की 335 मेगावाट बिजली की मांग पूरी नहीं की जाती.
‘आजाद कश्मीर’ की त्रसद कथा यह है कि पाकिस्तान में जब-जब मार्शल लॉ लगा, साथ-साथ पीओके की संसद भंग कर दी गयी. अगर कश्मीर ‘आजाद’ है, तो मुजफ्फराबाद में संसद भंग करने का क्या अर्थ है? फौज का शासन तो पाकिस्तान की सीमाओं तक ही सीमित होना चाहिए. आजाद कश्मीर अपना कोई डाक टिकट जारी नहीं कर सकता. अपने नागरिकों को पासपोर्ट नहीं दे सकता. ऐसा क्यों है कि पाकिस्तान जब भी जम्मू-कश्मीर के विरुद्घ दुष्प्रचार करता है, हम बचाव की मुद्रा में आ जाते हैं. क्या उसकी करतूतों को उजागर करना जरूरी नहीं है?