कुर्मी को शामिल करना गलत होगा

आजकल झारखंड में कुर्मी समुदाय के लोगों के द्वारा अपने को आदिवासियों की सूची में शामिल किये जाने को लेकर जोरदार अभियान चलाया जा रहा है, जिसमें कुछ राजनीतिक दलों के नेता भी शामिल हैं. कुर्मी समुदाय के लोगों का तर्क है कि उनकी जाति 1913 तक आदिवासियों की सूची में थी. 1931 में एक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 21, 2018 5:45 AM
आजकल झारखंड में कुर्मी समुदाय के लोगों के द्वारा अपने को आदिवासियों की सूची में शामिल किये जाने को लेकर जोरदार अभियान चलाया जा रहा है, जिसमें कुछ राजनीतिक दलों के नेता भी शामिल हैं.
कुर्मी समुदाय के लोगों का तर्क है कि उनकी जाति 1913 तक आदिवासियों की सूची में थी. 1931 में एक साजिश के तहत उसे सूची से हटा दिया गया. यहां सवाल है कि ब्रिटिश शासन काल में किसने साजिश की? तथ्यों के अनुसार पहली बार जनगणना 1872 हुई, जिसमें 18 जनजातियों को अनुसूचित श्रेणी में शामिल किया गया था. 1931 की जनगणना में इनकी संख्या बढ़कर 26 हुई, जिसमें किसान जाति को हटाया गया था.
1941 में बैगा, बेदिया और लोहरा को सूची में शामिल किया गया और बनजारा जाति को हटाकर किसान को पुन: शामिल कर लिया गया. इस तरह कुल संख्या 29 हो गयी. 1956 में बनजारा को और 2003 में कंवर व कोल जाति को भी शामिल किया गया, जिससे कुल संख्या 32 हो गयी. यही संख्या आजतक बनी हुई है. कुर्मी समुदाय के लोग तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश कर रहे हैं. यह गलत है. आदिवासी सिर्फ एक जाति नहीं, बल्कि एक संस्कृति भी है.
धीरेंद्र प्रसाद, रांची

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