विश्व की प्रमुख नदियों में पानी की मात्रा निरंतर घट रही है. भारत की प्रमुख नदियां भी निरंतर सूखती जा रही हैं. धरती की शक्ति बढ़ाने वाले समस्त प्राकृतिक तत्व भी अस्त-व्यस्त हो चले हैं. धरती के गर्भ का गिरता जल स्तर लगातार जीवन मूल्यों की तरह रसातल में उतरता जा रहा है. संसार के 15 प्रतिशत पक्षी, 30 प्रतिशत स्तनधारी जीव लगभग विलुप्त हो गये हैं. पृथ्वी का हरियाली तंत्र बिगड़ने के कारण बीमारियों के प्रकोप भी लगातार बढ़ रहे हैं.
इसलिए विश्व के कुछ अमीर देश पूरे संसार की वनस्पतियों पर नजर गड़ाये हैं. विकसित राष्ट्र विकासशील राष्ट्रों की बेबस सरकारों को मामूली लालच देकर स्थानीय संसाधनों की छीना-झपटी में लगे हैं. इसी जंग के कारण हमारी धरती माता के बदन में बम, रासायनिक पदार्थ, सीमेंट, पॉलीथिन, पेस्टीसाइड और न जाने क्या-क्या पदार्थ धंसाए जा रहे हैं. प्रकृति ही सर्वोपरी है और हम सब उसी के अंग हैं. उससे लड़ कर शांति नहीं मिल सकती.
डॉ हेमंत कुमार, भागलपुर.