स्विट्जरलैंड में सजनवा
II आलोक पुराणिक II वरिष्ठ व्यंग्यकार प्रस्तुत संवाद में दर्ज पात्र कतई काल्पनिक हैं, बस अरबों रुपये के बैंक घोटाले ही सत्य हैं. सवाल- इत्ती दूर इंडिया से आप यहां न्यूयार्क में बैठे हैं. फिर भी माल साफ करने के लिए आपने भारतीय बैंक ही चुने. मल्लब कोई अमेरिकन बैंक भी चुन सकते थे? जवाब- […]
II आलोक पुराणिक II
वरिष्ठ व्यंग्यकार
प्रस्तुत संवाद में दर्ज पात्र कतई काल्पनिक हैं, बस अरबों रुपये के बैंक घोटाले ही सत्य हैं.
सवाल- इत्ती दूर इंडिया से आप यहां न्यूयार्क में बैठे हैं. फिर भी माल साफ करने के लिए आपने भारतीय बैंक ही चुने. मल्लब कोई अमेरिकन बैंक भी चुन सकते थे?
जवाब- हम देश से प्रेम करते हैं. न्यूयार्क में हैं, तो क्या. देश के प्रति कुछ दायित्व बनता है हमारा. देश के बैंकों को ही साफ करेंगे. तब ही ना बनेंगे हम विश्व गुरु!
सवाल- आप बहुत महत्वपूर्ण बात कर रहे हैं. पर भारतीय बैंक लुटेंगे, तो हम विश्व गुरु कैसे बनेंगे?
जवाब- मन लागो मेरा यार फकीरी में. अमीर बैंक और अमीर लोग कभी विश्व गुरु ना बन सकते. फकीरी जरूरी है. हम सारे बैंकों को इस कदर फकीर बना देंगे कि कुछ बचेगा ही नहीं उनके पास. फिर उनके खाताधारक भी फकीर हो जायेंगे. भारत फकीरों का देश हो जायेगा. फिर हम विश्व गुरु हो जायेंगे.
सवाल- जी आप इतने अमीर कैसे बने?
जवाब- जनता ने हमें अमीर बनाया. जनता से बैंक में पैसे जमा कराये. बैकों ने हमको दे दिये. फिर हम यहां आ गये. अब हमारी रकम से बहुत वकील अमीर बनेंगे. यह अभिनेत्री मेरे साथ हैं, इन्हे भी अमीर बनाया मैंने. पब्लिक से रकम ली थी घर बनाने के प्रोजेक्ट के लिए, रकम लगा दी स्विट्जरलैंड में सजनवा नामक फिल्म में. पब्लिक बेवकूफ है, तो फिल्म पसंद ना की उसने. फिल्म फ्लाप हो गयी, पर हम हिट हो गये. सारी रकम पार करके हम यहां आ गये.
सवाल- पर आपने पब्लिक का पैसा मार लिया, यह बात तो ठीक नहीं है?
जवाब- हम ना मारते तो कोई कानपुर वाला मार लेता. कोई मुंबईवाला मार लेता. पब्लिक दो तरह की होतीहै- एक जो पैसा ले जाती है, दूसरी जो पैसा देती है. अगर आप पैसा लेनेवाली पब्लिक में नहीं हैं, तो आपका पैसा जाना ही है. मैं, यह एक्ट्रेस हम सब पहले टाईप की पब्लिक हैं, पैसा ले आये हैं. जो पब्लिक पैसा देनेवाली नहीं बनना चाहती, वह पहले टाईप की पब्लिक बन जाये और हमें ज्वाॅइन कर ले. क्या तेरा क्या मेरा प्राणी सब यहीं छूट जाना है. इस पब्लिक ने लिया, उस पब्लिक ने लिया, क्या फर्क है. सब एक हैं. पैसा हाथ का मैल है. भारत को विश्व गुरु बनना है. भारतीय पब्लिक पैसे के लिए पागल ना बने.
सवाल- आप इतनी तार्किक बातें कर रहे हैं कि आपकी लूट एकदम जायज लग रही है. है ना?
जवाब- क्या तेरा, क्या मेरा बाबा जोगीवाला डेरा. वैसे उन वाले जोगी का डेरा भी 10 हजार करोड़ का हो गया है.
सवाल- बाबा, जोगी, वकील, ठग उद्योगपति ये ही अमीर बनेंगे क्या? आम आदमी का कोई चांस नहीं है?
जवाब- आम आदमी की कोई दिलचस्पी नहीं है अमीर बनने में. वह तो सस्ते आलू में ही खुश हो जाता है.
सवाल करनेवाला- वैसे बात तो यह भी गलत नहीं है.