जीएसटी की बेहतरी
किसी विधान का कामयाब होना मुख्य रूप से दो बातों पर निर्भर है- एक, उसका व्यावहारिक स्तर पर लोगों की जरूरत से मेल होना, और दूसरे, विधान का पालन इस सहजता से हो कि वह लोगों के दैनिक आचरण का हिस्सा बन जाये. विधान की व्यावहारिकता का पता उसके इस्तेमाल की सहूलियतों और दिक्कतों से […]
किसी विधान का कामयाब होना मुख्य रूप से दो बातों पर निर्भर है- एक, उसका व्यावहारिक स्तर पर लोगों की जरूरत से मेल होना, और दूसरे, विधान का पालन इस सहजता से हो कि वह लोगों के दैनिक आचरण का हिस्सा बन जाये. विधान की व्यावहारिकता का पता उसके इस्तेमाल की सहूलियतों और दिक्कतों से चलता है.साथ ही, उसका आदत में बदलना लंबी अवधि तक अमल के बाद ही संभव है.
वस्तु एवं सेवाकर के बारे में वित्त मंत्री अरुण जेटली के बयान को इस संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा है कि जीएसटी की एक दर लागू करना संभव नहीं है, क्योंकि भारत आर्थिक विषमताओं वाला देश है.
बड़ी तादाद में लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं. उन्होंने यह भरोसा दिलाया है कि टैक्स के अनुपालन के मानकों में सुधार के बाद कर दरों में बदलाव किया जायेगा. पर इस बाबत उन्होंने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया, जो लगे कि ‘एक देश-एक कर’ के नारे के अनुरूप शुद्धतावादी है और हमारे विशाल देश में मौजूद ऐतिहासिक विषमता की अनदेखी करता है.
जेटली का बयान इस बात की भी निशानदेही करता है कि जीएसटी व्यवस्था को आगे प्रयोगों के कई दौर से गुजरना होगा, तभी वह अनुपालन के मामले में लोगों के लिए आदत का रूप ले पायेगी. पुराने कर ढांचे की खामियां जगजाहिर थीं और ज्यादा से ज्यादा आर्थिक गतिविधियों को करों के दायरे में शामिल करने के प्राथमिक उद्देश्य से जीएसटी का कानून अमल में आया. अब मुख्य प्रश्न कानून के जमीनी स्तर पर लागू करने में आनेवाली दिक्कतों की पहचान करने और उनके समाधान की है.
इस सिलसिले में फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) के हालिया सर्वेक्षण पर ध्यान दिया जाना चाहिए. सर्वेक्षण के मुताबिक, जीएसटी के लागू होने के बाद से व्यावसायिक गतिविधियों में कुछ मायनों में आसानी हुई है. सामान गंतव्य तक आसानी से पहुंच रहे हैं और पहले की तरह वाहनों को नाकों पर देर तक हरी झंडी मिलने का इंतजार नहीं करना पड़ रहा है. मुख्य समस्या जीएसटीएन पोर्टल के कामकाज में आ रही है.
जीएसटी के अंतर्गत जिन प्रक्रियाओं को पूरा करना अपेक्षित है, उससे संबंधित ब्योरों की विशालता के लिहाज से पोर्टल की गति धीमी है, आंकड़े जरूरत के अनुरूप अद्यतन नहीं हो रहे हैं और ब्योरों की गलतियों को सुधारना पोर्टल के मौजूदा फॉरमेट में कठिन है. कारोबारी जगत का एक तबका चाहता है कि जीएसटी के लिए रिटर्न भरना तिमाही कर दिया जाये, जिसे अभी मासिक आधार पर भरने की बाध्यता है. अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को बढ़ाने की प्रक्रिया में कर प्रणाली बहुत अहम कारक है.
इससे उत्पादन, मांग और वितरण का गणित सीधे तौर पर प्रभावित होता है. चूंकि वित्त मंत्री का रुख जीएसटी के ढांचे में बदलाव के लिहाज से सकारात्मक है, सो उम्मीद की जा सकती है कि कारोबारी तबके की जीएसटी से संबंधित व्यावहारिक परेशानियां जल्दी दूर होंगी.
कुछ अलग
प्यार के रंगों से खेलें होली