भारत-वियतनाम साथ-साथ
II शशांक II पूर्व विदेश सचिव delhi@prabhatkhabar.in भारत ने बीते 26 जनवरी को आसियान देशों के दस प्रमुख नेताओं को अपना मेहमान बनाया था. इसे एक्ट ईस्ट पॉलिसी का ही एक हिस्सा माना जा सकता है, जिसमें खास तौर से वियतनाम के साथ भारत के बहुत पुराने संबंध रहे हैं. कहा जाता है कि वियतनाम […]
II शशांक II
पूर्व विदेश सचिव
delhi@prabhatkhabar.in
भारत ने बीते 26 जनवरी को आसियान देशों के दस प्रमुख नेताओं को अपना मेहमान बनाया था. इसे एक्ट ईस्ट पॉलिसी का ही एक हिस्सा माना जा सकता है, जिसमें खास तौर से वियतनाम के साथ भारत के बहुत पुराने संबंध रहे हैं. कहा जाता है कि वियतनाम के फ्रीडम फाइटर भी एक जमाने में भारत के फ्रीडम फाइटरों के संपर्क में रहते थे.
जब वियतनाम अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब भारत का उसको बहुत समर्थन प्राप्त था. वियतनाम हमेशा से इस बात को याद रखता है और यही वजह है कि वियतनाम-भारत संबंधों को मजबूत बनाये रखने के लिए दोनों देश एक-दूसरे के साथ रक्षा-सुरक्षा समझौते के साथ ही कई अन्य जरूरी समझौते भी करते रहे हैं. वियतनाम के राष्ट्रपति त्रान दाई क्वांग के भारत दौरे को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है.
हाल के वर्षों में दक्षिण एशिया में चीन ने जो दबदबा बनाया है, उससे चीन के पड़ोसी देशों में कुछ खलबली मची हुई है. एिशया में चीन एक महत्वपूर्ण देश है. इस संदर्भ में देखें, तो वियतनाम का जब चीन के साथ बहुत अच्छा संबंध था, तब भी वियतनाम ने भारत के साथ मजबूत रिश्ते बनाये रखा.
दक्षिण चीन सागर में तेल और प्राकृतिक गैस के क्षेत्र में निवेश को लेकर दोनों देशों के बीच समझौते हुए हैं. गौरतलब है कि दक्षिण चीन सागर के दावेदारों में वियतनाम भी शामिल है और इस क्षेत्र में चीन लगातार अपना सैन्य विस्तार कर रहा है. इसलिए अरसा पहले जब वियतनाम ने इस विवादित दक्षिण चीन सागर में निवेश के लिए भारत को आमंत्रित किया था, तब चीन ने सख्त नाराजगी जतायी थी.
इसलिए अब इस समझौते के दौरान वियतनाम ने इस बात पर खास जोर दिया है कि दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में फ्रीडम ऑफ नेविगेशन (विमान मार्गों की स्वतंत्रता) होना चाहिए और सभी विवादों को बिना किसी बल प्रयोग के अंतरराष्ट्रीय कानूनों के जरिये हल निकालना चाहिए. यह पहल न सिर्फ वियतनाम या भारत के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी, बल्कि इससे पूरे दक्षिण एशिया में शांतिपूर्ण व्यापार का मार्ग भी प्रशस्त होगा.
रक्षा-सुरक्षा, कृषि और ऊर्जा के क्षेत्र में भारत और वियतनाम मिलकर काम करते आ रहे हैं. इन क्षेत्रों में हुए समझौताें से इनको आगे बढ़ाने में बहुत मदद मिलेगी. दोनों देशों में कृषि के क्षेत्र में बहुत पहले से कई समझौते हुए हैं. लेकिन, इसको और विस्तार देने के लिए नये समझौतों की जरूरत तो पड़ती ही है, क्योंकि दिन-प्रतिदिन तकनीकी विकास हो रहा है और कृषि क्षेत्र को इससे अछूता नहीं रखा जा सकता.
इसलिए जरूरी है कि कृषि को उन्नतशील बनाने और पैदावार बढ़ाने के लिए दो देश मिलकर काम करें. इसलिए मुझे लगता है कि यह समझौता खाद्य सुरक्षा के मद्देनजर एक बड़ा कदम माना जायेगा. निवेश के क्षेत्र में एक तरफ भारत ने मेक इन इंडिया की बात की है, तो वियतनाम ने भी अपने यहां स्थानीय निवेश बढ़ाने की बात की है. इससे दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में जरूर मदद मिलेगी, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि निवेश की सफलता क्या रही.
यह एक मानक तथ्य है कि सहयोग और समझौतों के जरिये ही दो देशों के रिश्ते मजबूत होते हैं. यहां भारत और वियतनाम के द्विपक्षीय रिश्ते का अहम होना इस बात से भी समझा जा सकता है कि वियतनाम ने एपेक (एशिया-पैसिफिक इकोनॉमिक कोऑपरेशन) में सदस्यता की बात की है और यह भी कहा है कि वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करता है.
वियतनाम इस बात को मानता है कि अगर 21वीं सदी को एिशयाई सदी बनानी है, तो इसके सारे देशों के बीच फ्रीडम ऑफ नेविगेशन बहुत जरूरी है, वह चाहे वायु मार्ग हो या जल मार्ग हो. भारत ने इस बात का पूरी तरह से समर्थन किया है.
इसके लिए चीन को साथ लेकर चलना जरूरी है और मेरे ख्याल में एशिया के बाकी देश भी इस संबंध में अपनी-अपनी कोशिशें कर रहे हैं. यही वजह है कि एिशया की जितनी भी बड़ी संस्थाएं हैं, वे सभी चीन को साथ लेकर चल रही हैं. ऐसा नहीं है कि सभी एशियाई देश चीन के खिलाफ हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो संधियां या समझौते हैं, उनके अनुसार तो उसे चलना ही चाहिए. अगर कुछ देश आपस में ऊर्जा और सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग-समझौते करते हैं, तो इसके लिए उन्हें पूरी छूट मिलनी चाहिए.
इसमें चीन को किसी भी तरह का कोई एतराज नहीं होना चाहिए. जिस तरह से दुनिया के कई देशों में संरक्षणवाद (प्रोटेक्शनिज्म) बढ़ रहा है, उसे देखते हुए वियतनाम की यह पहल मायने रखती है कि देशों के बीच फ्रीडम ऑफ नेविगेशन बढ़े, ताकि एशियाई देशों के बीच पारस्परिक व्यापार के साथ शांति और सद्भाव कायम हो सके.
वियतनाम के राष्ट्रपति ने भारत दौरे पर जो कुछ कहा है, उससे यह संकेत साफ है कि हमें चीन की ताकत से घबराना नहीं चाहिए और मिल-जुलकर काम करना चाहिए.
साथ ही, वियतनाम यह भी नहीं चाहता कि उसके किसी कदम से चीन के साथ संबंधों में कोई कड़वाहट आये. वियतनाम के ये विचार भारत से मेल खाते हैं. इसलिए दोनों देशों ने इस पर सहमति जतायी है कि अगर एशिया को दुनिया का ग्रोथ इंजन बनाना है, तो शांति और सुरक्षा की दृष्टि से सभी एशियाई देशों को साथ लेकर चलना होगा.