मुसाफिरों के लिए आफत हैं चुनाव

मैं चुनाव आयोग का ध्यान इस तथ्य की ओर खींचना चाहूंगा कि सरकारी कामकाज और राजनीतिक रैलियों के चलते इन दिनों रोडवेज और निजी बसों की भयंकर कमी हो गयी है. गरमी में यातायात के साधनों का खराब हाल हो, तो व्यवस्था कैसे पटरी पर रहेगी? दरअसल, राजनीतिक पार्टियां अपनी रैलियों और सभाओं में भीड़ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 9, 2014 4:29 AM

मैं चुनाव आयोग का ध्यान इस तथ्य की ओर खींचना चाहूंगा कि सरकारी कामकाज और राजनीतिक रैलियों के चलते इन दिनों रोडवेज और निजी बसों की भयंकर कमी हो गयी है. गरमी में यातायात के साधनों का खराब हाल हो, तो व्यवस्था कैसे पटरी पर रहेगी? दरअसल, राजनीतिक पार्टियां अपनी रैलियों और सभाओं में भीड़ जुटाने के लिए अधिक से अधिक स्थानीय वाहनों पर पहले ही कब्जा कर लेती हैं.

दूसरी तरफ, सरकारी वाहनों को इस समय चुनाव के कामकाज में लगा दिया जाता है. नतीजतन, मुसाफिरों को काफी दिक्कतें होती हैं. न केवल छोटी दूरी, बल्कि लंबी दूरी की बसें भी नहीं मिल पाती हैं. इन सबका खमियाजा आर्थिक गतिविधियों को भी भुगतना पड़ता है. अगर लंबी चुनाव प्रक्रिया से देश को आर्थिक नुकसान पहुंच रहा है, तो नुकसान को कम करने के क्या रास्ते हो सकते हैं, इस बारे में सोचना चाहिए. पाखी कुमारी

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