कांग्रेस की बेचैनी
1947 से लेकर लगभग 2005 तक कांग्रेस एकमात्र ऐसी पार्टी थी, जिसका वजूद अखिल भारतीय था. राष्ट्रीय स्तर पर उसको चुनौती देने वाला कोई नहीं था. लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के उभार से कांग्रेस सदमे में है. कांग्रेस को कभी मजबूत विपक्ष की आदत नहीं रही. सत्ता सुख भोगने के आदि उसके नेताओं को […]
1947 से लेकर लगभग 2005 तक कांग्रेस एकमात्र ऐसी पार्टी थी, जिसका वजूद अखिल भारतीय था. राष्ट्रीय स्तर पर उसको चुनौती देने वाला कोई नहीं था.
लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के उभार से कांग्रेस सदमे में है. कांग्रेस को कभी मजबूत विपक्ष की आदत नहीं रही. सत्ता सुख भोगने के आदि उसके नेताओं को अल्पकालीन राजनैतिक वनवास भी बहुत कष्टदायी लग रहा है. आज वही लोग बीजेपी की जीत की पटकथा लिख रहे हैं.
दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि कांग्रेस में राजनैतिक कद बढ़ाने का अवसर नहीं है. वहां सबकुछ फिक्स है. जिस तरह मोदी का कद अपनी पार्टी में बढ़ा, अन्य पार्टी के नेताओं की भी सोयी हुई महत्वाकांक्षा जाग उठी. आखिर राजनीति में सिर्फ त्याग की भावना से कौन आना चाहेगा?
सच तो यह है कि सभी राजनीतिक पार्टियों की पटकथा कांग्रेस ने ही लिखी है. सबने मिलकर कांग्रेस के मुद्दों और नेताओं को आपस में बांट लिया और अपनी काबिलियत के अनुसार उसका इस्तेमाल कर के सत्ता सुख का आनंद ले रहे हैं और कांग्रेस अपने ही बुने जाल में फंस कर छटपटा रही है.
दिलीप कुमार मिश्रा, गढ़वा