Advertisement
एक बेटी सबको दो भगवान!
II मिथिलेश कु. राय II युवा रचनाकार सुमेर भैया की माई भगवान से दुआ मांग रही थीं कि कम-से-कम एक बेटी सबको दो. नहीं तो बुढ़ापा बड़ा सूना हो जाता है. सिर्फ दो-तीन बेटे दे देते हो, तो बड़े होकर वे अलग-अलग परिवार में बंट जाते हैं और बूढ़ा-बूढ़ी अलग-थलग पड़ जाते हैं. बहू तबीयत […]
II मिथिलेश कु. राय II
युवा रचनाकार
सुमेर भैया की माई भगवान से दुआ मांग रही थीं कि कम-से-कम एक बेटी सबको दो. नहीं तो बुढ़ापा बड़ा सूना हो जाता है. सिर्फ दो-तीन बेटे दे देते हो, तो बड़े होकर वे अलग-अलग परिवार में बंट जाते हैं और बूढ़ा-बूढ़ी अलग-थलग पड़ जाते हैं.
बहू तबीयत पूछे और बेटे हाल-चाल जाने, इसका इंतजार रहने लगता है. दुख सुनाने और उदासी की उस घड़ी में एक बेटी न हो, तो साथ बैठकर कुछ साझा करने में बड़ी दिक्कत होती है. एक बेटी रहती है, तो साल में एक-दो बार वह हाल-चाल पूछने आ जाती है कि मां कैसी हो. पापा कैसे हैं. इससे कितनी राहत मिलती है.
परसों दिल्ली से बंटी लौटा था. मां के लिए किरण ने उसके हाथ कितना कुछ भेजा था. अरे सामान छोड़ो, देखो कि बेटी कितनी दूर रहती है, फिर भी माता-पिता के बारे में वह सोचती रहती है कि इस मौसम में उन्हें किन चीजों की जरूरत हो सकती है. वह सामान के रूप में अपना नेह, अपना आदर और संतान होने का कर्तव्य भेजती है.
किरण की मां कितनी खुश हैं. सबको बता रही हैं कि देखो, बेटियों को मां-बाप की कितनी फिक्र रहती है. कनियां काकी सही कहती हैं कि भगवान एक बेटी सबको दो. बेटे चूक जाते हैं, बेटियां कभी नहीं चूकतीं! वे कहीं भी रहें, रिश्ते-नाते उनके स्मरण में हमेशा जमे रहते हैं.
एक बेटा के लिए कहो तो सोना बाबू ने क्या-क्या नहीं किया. कहां-कहां नहीं गये. एक पर एक चार बेटी हो गयी. तब जाकर एक बेटा हो पाया. लगा कि दुनिया-जहान की सारी खुशियां मिल गयी हैं. लेकिन बेटियों के घर बसाने के चक्कर में सारी जमा-पूंजी खत्म हो गयी.
एक भरोसा था कि एक बेटा तो है कोख में. वह सब संभाल लेगा. लेकिन अब जब दोनों प्राणी का शरीर थक गया है, उनके आंगन में क्या-क्या हो रहा है. वे किस हाल में हैं. बेटे-बहू अलग और माता-पिता अलग. भला हो बेटियों का कि वे आकर सुधि लेती रहती हैं. बहू तो टके सा जवाब दे देती है कि छोड़ा क्या है हमारे लिए. किस दम पर हम यह बोझ उठायें. अपने जाये की परवरिश तो ढंग से कर नहीं पा रहे हैं. हुंह!
आज बेटियां न होतीं, तो क्या गत होती उनकी. सो भगवान से प्रार्थना करती हूं कि भले किसी को चार-पांच बेटे दो, लेकिन उसे इसके साथ ही एक बेटी भी दो.
बेटे जब लाज-शर्म पी जाते हैं, तब बेटियां बड़ा सहारा बनकर आती हैं और दुख-कष्ट हर लेती हैं. विश्वास नहीं होता है, तो बड़की का जीवन जाकर देख लो. वह शुरू से ही इतरा रही थीं कि उसकी कोख ने तीन-तीन बेटे जने हैं. उन सा भाग्यवान कौन है भला.
आज जब देह गिर गया है, तो एक गिलास पानी के लिए चिल्लाती रहती हैं और कोई नहीं सुनता है. उस दिन कह रही थीं कि एक बेटी रहती, तो कभी-कभी मिलने आती और सारा दुख हर ले जाती. बेटे-बहुओं को डांटती-फटकारती और दामाद संपत्ति बांट लेने की धमकी देते. ये लोग कुछ तो सुधरते. लेकिन हाय री मेरी कोख!बड़की भी अब यही कहती हैं कि अगले जनम एक बेटी जरूर देना भगवान!
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement