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मूर्तियां तोड़ना सही नहीं

त्रिपुरा में लेनिन की मूर्तियों को बुलडोजर से ढहा देना किसी भी प्रकार से उचित नहीं है. लेनिन का सिद्धांत पूंजीवादी सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था के प्रति एक विद्रोहात्मक स्वर था. यह एक विचारधारा थी और त्रिपुरा जैसे राज्य की जनता का समर्थन पाकर ही वहां इतने दिनों तक अस्तित्व में रही. आज बदले […]

त्रिपुरा में लेनिन की मूर्तियों को बुलडोजर से ढहा देना किसी भी प्रकार से उचित नहीं है. लेनिन का सिद्धांत पूंजीवादी सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था के प्रति एक विद्रोहात्मक स्वर था.
यह एक विचारधारा थी और त्रिपुरा जैसे राज्य की जनता का समर्थन पाकर ही वहां इतने दिनों तक अस्तित्व में रही. आज बदले हुए परिवेश में उसके प्रतीक अवशेषों को समाप्त करने की चेष्टा करना, जनमत और इतिहास दोनों का निरादर है. यह बदले का स्वर प्रतीत होता है. अगर सरकार मूर्तिभंजन के खिलाफ है तो प्रतिक्रियाएं इतनी देर से और शिथिल स्वर में क्यों?
पेरियार की मूर्ति टूटने पर वह वैचारक रूप से सक्रिय हुई और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति को क्षति पहुंचाने की चेष्टा के बाद वह मुखर हुई. किसने शह दी इन अराजक तत्वों को- यह एक प्रश्न है. और इस शह को मात भी कौन देगा? यह भी एक प्रश्न है. इन बातों की उपेक्षा करने पर प्रधानमंत्री की अंतरराष्ट्रीय छवि धूमिल भी हो सकती है.
आशा सहाय, इमेल से
श्रेष्ठता के नाम पर दुर्दशा

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