बीरबल की खिचड़ी का मजा 16 को

।। रंजीत प्रसाद सिंह।। (प्रभात खबर, जमशेदपुर) जहां-जहां चुनाव हो गया है, वहां रोजगार के लाले पड़े हुए हैं. दिन टीवी रिमोट टीपते-टीपते बीतता है, तो रात करवट बदलते-बदलते. गणित भिड़ायें भी तो कितने दिन? अब तो जोड़-घटाव भी भुला गये हैं! कौन प्रत्याशी था और किसने किसको वोट डाला- ये सब जैसे फ्लैशबैक में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 10, 2014 4:26 AM

।। रंजीत प्रसाद सिंह।।

(प्रभात खबर, जमशेदपुर)

जहां-जहां चुनाव हो गया है, वहां रोजगार के लाले पड़े हुए हैं. दिन टीवी रिमोट टीपते-टीपते बीतता है, तो रात करवट बदलते-बदलते. गणित भिड़ायें भी तो कितने दिन? अब तो जोड़-घटाव भी भुला गये हैं! कौन प्रत्याशी था और किसने किसको वोट डाला- ये सब जैसे फ्लैशबैक में चला गया है. चुनाव आयोग तो मानो पंचवर्षीय योजना लेकर निकला है. इ पहली बार हुआ कि वोट डालने से पहले उंगली पर लगनेवाली अमिट स्याही रिजल्ट आते-आते नाखून बढ़ जाने से अपने-आप गायब हो गयी.

पर इ बात भी तय है कि भले ही चुनाव बीरबल की खिचड़ी हो गया हो, लेकिन इसका स्वाद होगा जबरदस्त और खाय पड़ेगा सबको. बीते डेढ़ महीना में इसमें इतना माल-मसाला जो पड़ा है. 16 मई को जब हांडी का ढक्कन हटेगा, तो किसी को इ खिचड़ी तितकठ लगेगा, तो किसी को ‘महाप्रसाद’. और उससे जो भाप निकलेगा उ होगा लोकतंत्र. जिसमें स्वाद नहीं होता, खाली अहसास होता है. आप चाहें या ना चाहें आपके दिल और दिमाग में समा जाता है. इ अहसास पांच साल तक नथुना में घुसल रहनेवाला है. जंच गया तो रामबाण, नहीं तो सेप्टिक तय है. इलाज पांच साल के बाद.

तो भइया इ राजनीति है, हाजमा ठीक हो या ना हो, नथुना मजबूत रखियेगा. हां, एक काम जरूर कीजियेगा. रिजल्ट आने के बाद इ हांडी को पूरा उलट दीजियेगा और अगली सरकार का सब पाप-पुण्य अभिये से इसमें डालते जाइयेगा. ताकि लोकतंत्र की हांडी केवल डेढ़ माह के चुनाव में ना पके, बल्कि पांच साल तक धीरे-धीरे पकती रहे और जब तैयार हो तो ऐसा कि पांच साल का पूरा हिसाब-किताब बता दे.

तो ना पैसा बोलेगा और ना दारू, न जात बोलेगा और ना धर्म. बोलेगा तो खाली काम. और पांच साल तक इ लोकतंत्र की खिचड़ी को ऐसे घोंटते रहियेगा कि भ्रष्टाचारी, व्यभिचारी और उ सब चीज जो जनता को बेचारी बनाये, कोना पकड़ ले. और जब मौका मिले हांडी से उसको बाहर फेंक दीजिये. सिस्टम को रिफ्रेश कर दीजियेगा. लोकतंत्र की खिचड़ी खाली एगो बीरबल ना पकाये, बल्कि करोड़ों जनता के हाथों पके. कलछुल जनता के हाथ में रहेगी तो नेता डरेगा. डरेगा कि जनता हमको छांट कर अलग कर देगी. पर इ बार खिचड़ी खाके कलछुल नेता को पकड़ा दिये तो फिर समझिये कुछो नहीं बदलने वाला. ना हांडी, ना खिचड़ी और ना लोकतंत्र.

तो यदि बदलना है तो अगला पांच साल इ देखते रहियेगा कि वादों, मुरादों, आश्वासनों और भावनाओं का चावल जो इ चुनाव में चढ़ाया गया, उ कच्च तो नहीं रह जा रहा. उसकी जगह कंकड़-पत्थर तो नहीं आ रहा. फिलहाल इ फकैती छोड़ 16 मई को खिचड़ी उतरने का इंतजार कीजिए. उससे पहले चुनाव का आखिरी चरण देखिए और आखिरी चरण की धार देखिए.

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