अच्छे दिन सिर्फ नेताओं के आते हैं

डेढ़ महीने तक चलनेवाला लोकतंत्र का महापर्व अंतिम चरण में है. नारों और वादों ने देशवासियों को विकास के भ्रमजाल में फांसने की खूब कोशिश की है. मजबूर किसान के अच्छे दिन आनेवाले हैं, काला धन वापस आयेगा, भ्रष्टाचारी बख्शे नहीं जायेंगे और हर हाथ शक्ति जैसे नारों ने आम वोटरों के सपनों को भी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 10, 2014 4:38 AM

डेढ़ महीने तक चलनेवाला लोकतंत्र का महापर्व अंतिम चरण में है. नारों और वादों ने देशवासियों को विकास के भ्रमजाल में फांसने की खूब कोशिश की है. मजबूर किसान के अच्छे दिन आनेवाले हैं, काला धन वापस आयेगा, भ्रष्टाचारी बख्शे नहीं जायेंगे और हर हाथ शक्ति जैसे नारों ने आम वोटरों के सपनों को भी मानो पंख लगा दिये हों.

इसके चलते अचानक मतदाताओं की संख्या में भी भारी इजाफा देखने को मिल रहा. अगर सचमुच ये नारे आम आदमी के लिए हैं, तो लोकतंत्र का इससे बड़ा मजाक नहीं उड़ सकता. इस देश के गरीब किसानों, बेरोजगार नौजवानों, देश की सीमाओं पर खड़े सिपाहियों ने अपने जिंदगी के 65वर्ष लगा दिये, लेकिन अच्छे दिन की उम्मीद ख्वाहिश बन कर ही रह गयी है. आम आदमी को बड़े-बड़े सपनों का वास्ता दे कर हमेशा से छला गया है, क्योंकि अच्छे दिन तो सिर्फ नेताओं के ही आते हैं.

एमके मिश्र, रातू

Next Article

Exit mobile version