जनप्रतिनिधियों को हटाने का हक मिल
लोकतंत्र में जनता को वोट देकरनेताओं को संसद में भेजने का अधिकार है, लेकिन उन्हें वापस बुलाने का अधिकार नहीं है. आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में, एक बार सांसद चुन लेने के बाद, अगले पांच वर्षो तक जनता उसके सही-गलत कामों को ङोलते रहने के लिए मजबूर होती है़ जनता द्वारा चुने गये सांसद या […]
लोकतंत्र में जनता को वोट देकरनेताओं को संसद में भेजने का अधिकार है, लेकिन उन्हें वापस बुलाने का अधिकार नहीं है. आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में, एक बार सांसद चुन लेने के बाद, अगले पांच वर्षो तक जनता उसके सही-गलत कामों को ङोलते रहने के लिए मजबूर होती है़ जनता द्वारा चुने गये सांसद या विधायक जब संसद या विधानसभा में पहुंचते हैं और जनता की उम्मीदों के अनुरूप काम नहीं करत़े, तब ऐसी परिस्थिति में जनता को उसे वापस बुलाने का भी अधिकार मिलना चाहिए़
सन 1974 में जयप्रकाश नारायण ने भी यह मांग की थी कि जो सांसद या विधायक जनता के हित में काम नहीं करते, उन्हें जनता जब चाहे वापस बुला सके, यह अधिकार जनता को मिलना चाहिए. जेपी के विचारों से आचार्य कृपलानी भी सहमत थे. जेपी का कहना था कि सांसद तब तक दिल्ली में रहे, जब तक संसद चलती है़ सत्र खत्म होने के बाद वह वापस अपने क्षेत्र में आकर जनता की विभिन्न समस्याओं को देखे.
इसके पीछे उनकी सोच थी कि एक सांसद का दिल्ली में रहने का जो खर्च होता है, उससे आंशिक रूप से बचा जा सकता है़ देश का पैसा देश के काम आये, सांसद पर अनावश्यक खर्च न हो़ मगर आज स्थिति उनके विचारों के एकदम उलट है. सांसद चुने जाने के बाद, वे दिल्ली जाकर वहां की तड़क-भड़क में खो कर अपने क्षेत्र की समस्याओं से मुंह फेर लेते हैं. अगर जेपी की बातों पर उसी समय गौर किया गया होता, तो आज यह स्थिति देश की नहीं होती़ सांसदी मिलने के बाद नेता मालिक नहीं, नौकर बन कर देश की सेवा करता़ क्योंकि उसे हर समय यह डर सताता कि अगर उसने सही ढंग से काम नहीं किया, तो वापस जनता के बीच जाना होगा़
प्रदीप कुमार शर्मा, बारीडीह बस्ती