उपचुनाव और उसके मायने
अगर गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव का सही तरीके से आकलन किया जाये, तो इसमें कई संदेश छुपे हुए हैं. एक ओर भाजपा हाइकमान की मनमानी को जनता ने नकार दिया है, वहीं दूसरी ओर भाजपा यह भूल गयी है कि गोरखपुर सीट भाजपा का नहीं बल्कि गोरख पीठ का है, जिस पर कब्जा करने की […]
अगर गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव का सही तरीके से आकलन किया जाये, तो इसमें कई संदेश छुपे हुए हैं. एक ओर भाजपा हाइकमान की मनमानी को जनता ने नकार दिया है, वहीं दूसरी ओर भाजपा यह भूल गयी है कि गोरखपुर सीट भाजपा का नहीं बल्कि गोरख पीठ का है, जिस पर कब्जा करने की भाजपा ने नाकाम कोशिश की.
उपचुनाव के माध्यम से जनता लगातार भाजपा को संदेश दे रही है कि मुख्य चुनाव में जिताना हमारी चाहत नहीं, मजबूरी है. सपा और बसपा का साथ आना भविष्य में यूपी में भी बिहार जैसे परिणाम की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता. अभी समय है दोनों पक्षों को भविष्य की तैयारी पर गंभीरता पूर्वक आत्ममंथन करने का.
ऋषिकेश दुबे, पलामू