इतनी हड़बड़ी क्यों!
बुधवार को लोकसभा में महज आधे घंटे की कार्यवाही में वित्त विधेयक और विनियोग विधेयक को मंजूर कर लिया गया. इस प्रक्रिया में भारत सरकार के 99 मंत्रालयों और विभागों के आवंटन और 218 संशोधन शामिल हैं. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी वित्त विधेयक में 21 संशोधनों का प्रस्ताव रखा था. देश की सबसे […]
बुधवार को लोकसभा में महज आधे घंटे की कार्यवाही में वित्त विधेयक और विनियोग विधेयक को मंजूर कर लिया गया. इस प्रक्रिया में भारत सरकार के 99 मंत्रालयों और विभागों के आवंटन और 218 संशोधन शामिल हैं.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी वित्त विधेयक में 21 संशोधनों का प्रस्ताव रखा था. देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में चर्चा, बहस और वोटिंग के जरिये फैसले लेने की परिपाटी है. किन्हीं विशेष परिस्थितियों में सदस्यों की सहमति से इस प्रक्रिया के बिना भी विधेयक या प्रस्ताव पारित होते हैं.
हाल में 2003-04 और 2013-14 के बजट को ‘गिलोटिन’ प्रणाली से पारित किया था. इस प्रक्रिया के तहत सभी अनुदान मांगों को एक साथ बिना बहस पारित किया जाता है. यह हड़बड़ी संसदीय परंपरा के लिहाज से चिंताजनक है, क्योंकि बजट सत्र पूरा होने में तीन हफ्ते बाकी हैं.
इस प्रकरण पर सरकार और विपक्ष एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. सरकार का कहना है कि विपक्ष संसद की कार्यवाही को हंगामे से बाधित कर रहा है तथा विपक्ष का आरोप है कि सरकार और लोकसभाध्यक्ष लोकतंत्र का गला घोंट रहे हैं. बीते कुछ दिनों से अनेक मुद्दों पर चर्चा की मांग करते हुए विभिन्न दल हंगामा कर रहे हैं. दोनों सदनों में कामकाज लगभग ठप है और विधेयक पारित नहीं हो पा रहे हैं.
इस स्थिति में सरकार का तर्क है कि उसके पास वित्तीय प्रस्तावों को एकबारगी मंजूर कराने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. परंतु, यह भी सरकार की ही जिम्मेदारी है कि वह विपक्ष के साथ संवाद कायम कर कार्यवाही को सुचारु रूप से चलाने की कोशिश करे. शोर-शराबे और हंगामे को कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता है तथा संसद का कामकाज शांति-व्यवस्था से चलाने में विपक्षी दलों को भी सकारात्मक योगदान देना चाहिए. चूंकि वित्त और विनियोग विधेयकों पर चर्चा के दौरान सभी मंत्रालयों और विभागों पर बहस मुमकिन नहीं है, इसलिए अमूमन पांच-छह मुख्य विभागों पर सांसद अपनी राय रखते हैं और सरकार अपना स्पष्टीकरण देती है. यही परंपरा कटौती प्रस्तावों के साथ भी है.
मौजूदा सत्र में रेल, कृषि और सामाजिक न्याय जैसे मंत्रालयों को चर्चा के लिए चुना गया था. राजनीतिक दलों को चंदा, संचित निधि से सरकार द्वारा धन निकालने, पूंजी लाभ कर जैसे बेहद गंभीर प्रस्ताव भी थे. बजट मंजूर करना संसद, खासकर लोकसभा, के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है. बुधवार को जो कुछ लोकसभा में हुआ है, उसकी जवाबदेही सदन में मौजूद हर सदस्य पर है.
सरकार विपक्ष को बजट पर चर्चा के लिए राजी करने की कोशिश कर सकती थी. बजट जैसे मुद्दे आने पर विपक्ष अपनी मांगों को कुछ देर रोक सकता था. जो दल या सदस्य इन दो खेमों में नहीं है, वे मध्यस्थता कर सकते थे. उम्मीद की जानी चाहिए कि संसद, सरकार और राजनीतिक पार्टियां इस प्रकरण पर आत्ममंथन करेंगी और ‘गिलोटिन’ के इस्तेमाल से परहेज करेंगी.