कर्जदारों पर नकेल

सजग और सतर्क होने की पहचान यह है कि नुकसान को भांपते हुए उससे बचने के उपाय किये जायें. बैंकों के फंसे हुए कर्ज की समस्या को इस कोण से भी देखा जाना चाहिए. वित्तीय भ्रष्टाचार के मामले पहले भी होते थे, पर उदारीकरण के बाद इसने एक नया रूप लिया है. प्रस्तावित कारोबार की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 22, 2018 12:10 PM

सजग और सतर्क होने की पहचान यह है कि नुकसान को भांपते हुए उससे बचने के उपाय किये जायें. बैंकों के फंसे हुए कर्ज की समस्या को इस कोण से भी देखा जाना चाहिए. वित्तीय भ्रष्टाचार के मामले पहले भी होते थे, पर उदारीकरण के बाद इसने एक नया रूप लिया है. प्रस्तावित कारोबार की लागत को बढ़ा-चढ़ाकर बताना, निजी और सरकारी बैंकों के शीर्ष पदाधिकारियों की मिली-भगत से बड़े कर्जे की मंजूरी लेना, कारोबार में घाटे का जिक्र करके फिर से कर्जे हासिल करना और आखिरकार अपने कारोबार को दिवालिया घोषित कर विदेश में शरण लेने की घटनाएं हाल के दिनों में बढ़ी हैं. हालत यहां तक आ पहुंची है कि कर्ज के बोझ से लदे सरकारी बैंकों की उपादेयता पर ही प्रश्न उठाये जाने लगे हैं.

इन घटनाओं का एक संकेत है कि हमारा तंत्र वित्तीय अपराध की बदली हुई प्रकृति की पहचान और जरूरी निगरानी तथा अंकुश के इंतजाम कर ने में असफल रहा है. लेकिन, केंद्र सरकार के कुछ हालिया प्रयासों से ऐसे संकेत मिलते हैं कि देर से ही सही, गलती सुधारने की दिशा में पहलें की जा रही हैं. सरकार ने ऐसे 91 कारोबारी लोगों की पहचान की है, जिनके पास बैंकों के भारी कर्जे चुकाने के साधन तो हैं, परंतु वे जान-बूझकर रकम नहीं चुका रहे हैं. ये लोग अब देश छोड़कर भाग नहीं सकेंगे, क्योंकि उन्हें कर्ज वापसी के बिना विदेश जाने की अनुमति नहीं होगी. दूसरी कोशिश कानून के मोर्चे से शुरू की गयी है. इसके अंतर्गत ऐसे विधेयक का मसौदा तैयार किया जा रहा है, जिसमें सरकार को बैंकों के कर्ज न चुकानेवाले बड़े कारोबारियों की संपत्ति जब्त कर ने के प्रत्यक्ष अधिकार होंगे.

ऐसे प्रयासों की लंबे समय से जरूरत महसूस की जा रही है. निगरानी और अंकुश के कारगर इंतजाम के अभाव में लोगों में यह धारणा बनती जा रही थी कि चंद धनी लोगों के लिए कानून में छूट की गुंजाइश होती है, जबकि आम नागरिक से सख्ती की जाती है. धनी और रसूखदार का विदेश भागना और कानून की पहुंच से दूर बेखटके रहना, आम नागरिक को सत्यापन की जटिल प्रक्रियाओं से गुजरने की भारी परेशानी बाद कर्ज मिलना या कर्ज न चुका पाने की लाचारी में किसानों का आत्महत्या कर ना ऐसी धारणा को और ज्यादा पुष्ट कर रहे थे. हाल के समय में एक ऐसा क्षण भी आया, जब पंजाब नेशनल बैंक घोटाले के प्रमुख किरदार के रूप में चिह् नित नीरव मोदी ने सार्व जनिक तौर पर चिट्ठी लिखकर कहा कि दोष तो बैंक का है, जिसने कर्ज चुकाने का पर्याप्त मौका नहीं दिया और इस मसले को सबके सामने उजागर कर उसके कारोबारी ब्रांड को नुकसान पहुंचाया. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ठीक कहा है कि ऐसे लोगों को कानून से खिलवाड़ का मौका नहीं दिया जायेगा. उम्मीद की जानी चाहिए कि वित्तीय भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए सरकार सख्त रवैया बरकरार रखेगी और जरूरत के मुताबिक कदम उठाती रहेगी.

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