जुलूस संस्कृति
बुद्ध, महावीर और गांधीजी सहनशील बनने के प्रवचन देते थे. उनकी बातों से जमशेदपुर वासी थोड़े ज्यादा ही प्रभावित नजर आते हैं. कितनी भी तकलीफ हो, चुपचाप बर्दाश्त कर लेते हैं. कोई विरोध नहीं, कोई आवाज नहीं. आजकल पूजा हो या कोई अन्य आयोजन, सारा कुछ अब सड़कों पर होने लगा है. जुलूसों की संख्या […]
बुद्ध, महावीर और गांधीजी सहनशील बनने के प्रवचन देते थे. उनकी बातों से जमशेदपुर वासी थोड़े ज्यादा ही प्रभावित नजर आते हैं. कितनी भी तकलीफ हो, चुपचाप बर्दाश्त कर लेते हैं. कोई विरोध नहीं, कोई आवाज नहीं. आजकल पूजा हो या कोई अन्य आयोजन, सारा कुछ अब सड़कों पर होने लगा है.
जुलूसों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. इसी महीने 10 दिनों में चार जुलूस आयोजित हुए हैं, जो शहर के मुख्य मार्ग में आवागमन लगभग रोक देते हैं. कोई भी पर्व-त्योहार की खुशी हो या क्रांतिकारियों को नमन करना हो, तो सड़क पर जुलूस निकलना ही सबसे उचित तरीका मिल गया है. कुछ मांगें मनवाना हो तो भी जुलूस निकलता है.
सबसे बड़े आश्चर्य और दुख का विषय है कि इससे होने वाली परेशानियों की चर्चा सब करते हैं लेकिन कोई भी आवाज नहीं उठाता? गूंगे लोगों के लिए लोकतंत्र नहीं होता.
राजन सिंह, इमेल से