सौंदर्य लुटाते वृक्ष

पतझड़ के बाद नव पल्लव अपनी हरीतिमा लिये रंगीन पुष्पों के मध्य इतरा रहे हैं. वसंत और फागुन में सबसे ज्यादा रंगों के आकर्षण हैं. विविधरंगी प्रकृति उत्साह के साथ अपना सौंदर्य लुटाने को बेचैन है. हमारा मन ब्रह्मांड है. अवनि-अंबर का समावेश जिसके विविध रंग हमारे मन पर अनुकूल-प्रतिकूल प्रभाव डालते रहते हैं. इसलिए […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 27, 2018 6:48 AM
पतझड़ के बाद नव पल्लव अपनी हरीतिमा लिये रंगीन पुष्पों के मध्य इतरा रहे हैं. वसंत और फागुन में सबसे ज्यादा रंगों के आकर्षण हैं. विविधरंगी प्रकृति उत्साह के साथ अपना सौंदर्य लुटाने को बेचैन है.
हमारा मन ब्रह्मांड है. अवनि-अंबर का समावेश जिसके विविध रंग हमारे मन पर अनुकूल-प्रतिकूल प्रभाव डालते रहते हैं. इसलिए ज्योतिषीय विश्लेषण में किसी खास समय में खास रंग के आहार-पोषाक की हिदायत दी जाती है.
प्रकृति के उपादानों से रचा मानव शरीर भी अपने मन में इंद्रधनुषी रंगों का समावेश किये हुए है. रंग है तो आनंद है, आनंद है तो उमंग है और यही उमंग ब्रह्म से एकाकार कर जीने की परिभाषा गढ़ता है. आधारभूत रंगों के साथ मिश्रित रंग तथा श्वेत-श्याम विविधता की संरचना करते हैं.
गुस्से में लाल-पीला होना, शर्म से लाल हो जाना, गुलाबी स्वास्थ्य, मन का हरा-भरा होना आदि मुहावरे यूं ही नहीं लिखे गये होंगे. मन को आह्लादित करने के लिए किसी बाग-बगीचे में जाने की जरूरत नहीं, यह तो आस-पास के पलाश, सेमल, अमलतास और गुलमोहर को देखकर ही बाग-बाग हो जाता है. अपने उद्यानों में लगाये गये मौसमी पौधे बच्चों सा दुलार चाहते हैं. पलाश वन में बिंदास तफरीह करनेवाला बता सकता है कि पलाश महज एक फूल नहीं, एक अहसास है. ताल-तलैया के तीर पर दानी अमलतास अपनी शुचिता बरकरार रखते हुए धरती का आंचल हल्दिया देता है. महुआ अपनी पीत मुस्कान में वायुवी उड़ानों संग मधुर मदिर शोखी छलकाता गिरता-पड़ता रहता है.
सेमल नर्म रूई जैसी नर्म कल्पनाओं का प्रतीक है. श्वेत छाल में लिपटे तने पर रक्तवर्ण सेमल की सुंदरता अद्वितीय है. शाल्मली के श्वेत रूप में धवल शीतलता को आत्मसात करने के लिए उनके धूसर छाल के भीतर की गूढ़ लाल त्वचा को देखें, जो अपने नयनरम्य आविष्कार का स्वयं बखान करती हैं. आकाश को चूमनेवाले ये गाछ-वृक्ष आदिकाल से कवियों के हृदय को मोहित कर सृजन के लिए बाध्य करते हैं. भावनाएं महक उठती हैं और शब्द लहलहा उठते हैं कागज पर.
रंगों का नकाब लगाकर मानव अपनी संवेदनाओं को वहां पहुंचा सकता है, जहां वह सीधे नहीं पहुंच पाता. पलाश के फूलों से रंग निचोड़कर लगा देता है उन गालों में, जहां पहुंचने का बहाना वह सालभर से ढूंढता रहता था. रंग शाश्वत हैं. प्रेम और अमरत्व के रंग. श्वेत-श्याम रंग अपनी सार्थक अभिव्यक्ति के बाद भी खुशियों के प्रतीक नहीं हैं. जहां खुशियां हैं, वहां रंग हैं.
पीछे छूट चुके लोगों को रंग वापस बुलाते हैं. मधुऋतु में निर्वसन हुए तरुवर पर जो नयनाभिराम रंग छिटकते हैं, उनकी रुमानियत पोर-पोर को इसलिए स्फुरित करती है, क्योंकि पतझड़ अपनी सूखी पत्तियों के रूखेपन से मन को वीरान कर चुका होता है. दुख की क्षणभंगुरता को प्रकृति के अलावा और कौन दार्शनिक बता सकता है? तो जीवन से अगर रंग भाग रहा है, तो पकड़ लें और उसमें डूब जाने की कला सीख लें.

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