गंगा से हुआंगो की यात्रा

II राजीव रंजन II असिस्टेंट प्रोफेसर, शंघाई यूनिवर्सिटी, शंघाई rajivranjan@i.shu.edu.cn मैंने जहां जन्म लिया, वह बुद्ध की धरती है. सोचा नहीं था कि एक दिन कन्फ्यूशियस के आंगन तक सफर कर पाऊंगा. पिछले दस सालों से चीन के समाज, राजनीति, पर्यावरण के बारे में शोध करता रहा, पर पिछले चार सालों से चीन को चीन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 27, 2018 6:54 AM
II राजीव रंजन II
असिस्टेंट प्रोफेसर,
शंघाई यूनिवर्सिटी, शंघाई
rajivranjan@i.shu.edu.cn
मैंने जहां जन्म लिया, वह बुद्ध की धरती है. सोचा नहीं था कि एक दिन कन्फ्यूशियस के आंगन तक सफर कर पाऊंगा. पिछले दस सालों से चीन के समाज, राजनीति, पर्यावरण के बारे में शोध करता रहा, पर पिछले चार सालों से चीन को चीन में रहकर करीब से देखने का मौका मिला है.
चीनी आम आदमी बुद्ध से वाकिफ है. उनमें सीखने की ललक है. बुद्ध के बारे में जानने के लिए ह्वेनशांग सातवीं शताब्दी में भारत आया था. जब हम चीनी में आम जनता से बात करते हैं, तो वे हम से अलग नहीं दिखते. उनमें भी वही सामाजिक मान्यताएं, रूढ़िवादी समस्याएं और विकास की ललक है.
चीनी लोक गणराज्य की स्थापना 1949 में हुई. चीन ने तंग छिआओंफिंग के नेतृत्व में 1978 में सुधार की शुरुआत की, भारत में हुए आर्थिक सुधारों (1991) के करीब 13 साल पहले. पर इन सालों में चीन दुनिया में सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरा है. चीन में पश्चिमी लोकतंत्र नहीं, पर उनकी अपनी अलग व्यवस्था है. वहां कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार है, और भी कई पार्टियां हैं, पर निर्णायक भूमिका कम्युनिस्ट पार्टी की होती है. कुछ वैसा, जैसा भारत में आइएएस के मातहत अन्य सेवाएं. चीन में सिविल सर्विस सबसे पुरानी व्यवस्था है.
चीन एक विकसित और पुरानी सभ्यता रहा है. चीन कई मामलों में अत्याधुनिक है, तो कई मामलों में दकियानूसी. मिसाल के तौर पर वर-वधू पश्चिमी प्रभाव के कारण अब सफेद परिधान पहनते हैं, जो पहले लाल थी.
तो वहीं अंक 4 अशुभ और 8 व 6 शुभ हैं. कहते हैं, चार का उच्चारण चीनी में ‘मरने’ जैसा है! मोबाइल और गाड़ी नंबर लेते समय बड़ा खयाल रखते हैं कि अंतिम संख्या चार ना हो.
चीन में रेल का विकास तीव्र गति से हुआ है. ट्रेनें समय से चलती हैं और अगर आप पांच मिनट देर से स्टेशन पहुंचे, तो आपको यात्रा नहीं कर सकते. हमारे यहां जैसा प्लेटफॉर्म पर ठेलम-ठेला नहीं है. ज्यादातर महिलाएं टीटी हैं और उनके लिए बोगी में एक अलग टीटी कैबिन है.
टिकट चेक करने से लेकर बोगी को साफ रखना, दरवाजे बंद करना, आपके सामानों को रखने में मदद करना, सब इनका काम है. ट्रेन खुलने से पहले दरवाजे लॉक करना और फिर स्टेशन आने पर खोलना, स्टेशन आने पर बताना, ये सब साधारण ट्रेन की बात है. बुलेट ट्रेन की यात्रा आप बस हवाई यात्रा से कर लें, बगैर रिफ्रेशमेंट के. पूरा ट्रैक दिल्ली मेट्रो की तरह कंटीली तारों से सुरक्षित किया गया है, और कोई क्रॉसिंग फाटक नहीं है.
चीन में नियम है- जमीन सरकार की है, आपको लीज पर दी गयी है. वहां भूमि अधीग्रहण आसान है, पर पूरा मुआवजा दिया जाता है. खेती की जमीन एक गांव में समानरूप से वितरित की गयी है.
कोई जमींदार नहीं है, हमारे यहां भी नहीं है कानूनी रूप से. किसान सिर्फ खेती ही नहीं करता, अन्य काम भी करता है, इसीलिए आय अधिक है. वहां एक साधारण किसान अपने बच्चों को विदेश भेज सकता है पढ़ने के लिए, बिना स्काॅलरशिप के. इसका अर्थ यह नहीं कि वहां गरीबी नहीं है. चीन में भी स्कूलों में मध्याह्न भोजन है. वहां बच्चे ट्रैफिक सिग्नल पर भीख नहीं मांगते हैं, न ही सामान बेचते हैं. स्कूली शिक्षा हमसे अलग है. प्राईवेट स्कूलों का ज्यादा चलन नहीं है, पर अब बढ़ रहा है.
चीनी समाज परिवार आधारित है, न कि व्यक्ति आधारित. व्यक्तियों के उपनाम वही हैं, जो उनके पूर्वजों के थे. उनका उपनाम एक तरह से कुनबा है.
कन्फ्यूशियस के वंशजों का पूरा लिखित इतिहास है और अब भी जारी है. इनके वंशज चीन, कोरिया, जापान तक फैले हैं. लड़कियां शादी के बाद भी अपना उपनाम नहीं बदलतीं, पर बच्चे पिता का उपनाम अपनाते हैं, एक पितृसत्तात्मक समाज में जो होता है. उपनाम नहीं बदला, क्योंकि समाज जाति आधारित नहीं है.
कम्युनिस्टों के आने से पहले तक महिलाओं की जिंदगी बड़ी कठिन थी. महिलाएं, खासकर सभ्रांत परिवार की, अपने पैर को बांधकर रखती थीं.
छोटे पैर महिलाओं की खूबसूरती का एक पैमाना था- कमल जैसा पैर. चीनी कहते हैं- कमल फूल भारत से आया है बौद्ध धर्म के साथ. पहले महिलाओं के बाल बड़े करीने से बंधे होते थे, आज ऐसा नहीं है. लड़कियां हों या महिलाएं, वे बाल को खुला रखती हैं. दुकान संभालने से लेकर ट्रक और ट्रेन चलाने तक महिलाओं की महती भागीदारी चीन में है. हालांकि, ‘लेफ्टोवर वुमेन’ और ‘लेफ्टोवर बच्चे’ समस्या चीन की विकास का दूसरा और काला पहलू है.
चीनी घूमते भी खूब हैं. छुट्टी हुई नहीं कि घूमने निकल लिये. एक औपचारिक भाषा के कारण संवाद समस्या नहीं है. ऐसा नहीं है कि पूरा चीन एक जैसा है.
उतरी चीन में चीआओत्सी (मोमो), आटे की बनी चीजें खाते हैं, तो दक्षिणी चीन में चावल की बनी. चीनी खूब बातें करते हैं- सिनेमा, किताबें और खाने-पीने की बातें. चीन की राजनीति पर वे बात नहीं करते, लेकिन अमेरिकी राजनीति पर खूब बतियाते हैं.
चीन में बौद्ध धर्म वैसा नहीं है, जैसा भारत में. बुद्ध की प्रतिमाओं में स्वस्तिक बुद्ध के सीने पर बना दिखेगा. बहुत सारे हिंदू कर्मकांड और मान्यताएं बौद्ध धर्म में दिखती हैं. चीनी इन सब को बौद्ध धर्म का अंग मानते हैं.
ज्यादातर चीनी धार्मिक नहीं हैं, पर बौद्ध विहारों में जाते हैं. पूजा भी करते हैं, पर अपने पूर्वजों का. पूर्वजों की पूजा के लिए राष्ट्रीय अवकाश भी है. बसंत ऋतु में पूरे परिवार के साथ वे नववर्ष मनाते हैं.

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