ताकि नसीब हो हमें शुद्ध हवा

II शफक महजबीन II टिप्पणीकार अंग्रेजी के महान साहित्यकार और राजनीतिज्ञ जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा है कि, ‘अपनी पहली सांस लेने के पहले के नौ महीने छोड़ दिया जाये, तो इंसान अपने काम इतने अच्छे ढंग से नहीं करता, जितना कि एक पेड़ करता है.’ यह बात बिल्कुल सच है. पेड़ों का हमारी जिंदगी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 29, 2018 6:41 AM
II शफक महजबीन II
टिप्पणीकार
अंग्रेजी के महान साहित्यकार और राजनीतिज्ञ जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा है कि, ‘अपनी पहली सांस लेने के पहले के नौ महीने छोड़ दिया जाये, तो इंसान अपने काम इतने अच्छे ढंग से नहीं करता, जितना कि एक पेड़ करता है.’ यह बात बिल्कुल सच है. पेड़ों का हमारी जिंदगी में बहुत महत्व है, लेकिन यह विडंबना ही है कि हम इन्हें काटकर खत्म करने में जरा भी नहीं हिचकते.
दुनिया में बहुत से ऐसे देश हैं, जहां अगर चौड़ी सड़क निर्माण की राह में कोई पेड़ आ जाये, तो वहां उसे काटा नहीं जाता, बल्कि पेड़ के अगल-बगल से सड़क को गुजार दिया जाता है. लेकिन, हमारे यहां अगर किसी सड़क के बीच कोई पेड़ आ जाये, तो हम उसे काटकर समतल बना देते हैं.
एक-एक पेड़ बचाना कितना जरूरी है, यह बात उत्तराखंड की गौरा देवी से बेहतर कोई नहीं जानता, जो 27 महिलाओं को साथ लेकर पेड़ों से चिपक गयी थीं, ताकि लकड़ी के व्यापारी पेड़ न काट सकें. गौरा देवी के इस आंदोलन को इतिहास में चिपको आंदोलन के नाम से जाना जाता है. करीब 45 साल पहले घटी यह घटना एक बेहतरीन ऐतिहासिक मिसाल है और इससे पेड़ों की अहमियत को समझना हमें सीखना चाहिए.
अगर इंसानी जरूरतों को ध्यान में रखा जाये, तो पेड़ किसी नेमत से कम नहीं हैं. पेड़ हैं, तो हमारी सांसें हैं, वरना तो जीना बहुत मुश्किल है.
हम अपनी एक-एक सांस के लिए पेड़ों के कर्जदार हैं. पेड़ों के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती, क्योंकि पेड़ों से निकलनेवाला ऑक्सीजन ही हमारी सांसों की खुराक है. और भी बहुत कुछ बेहद जरूरी फायदे हैं पेड़ों के.
पेड़ पूरा कट जाने के बाद भी हम इंसानों के काम आते हैं. असल में पेड़ों से कई सारे उद्योग-व्यापार जुड़े हुए हैं- मसलन कागज, निर्माण और फर्नीचर उद्योग.
इसलिए इनकी कटाई भी खूब होती है. बढ़ती जनसंख्या भी एक वजह है कि पेड़ भारी संख्या में काटे जा रहे हैं, ताकि लोगों की जरूरतों को पूरा किया जा सके. पेड़ों को काटन तभी उचित है, जब हम जितना पेड़ काटें, उसका दो-तीन गुना लगायें भी. लेकिन हम ऐसा नहीं कर पा रहे हैं और पर्यावरण के लिए बड़े खतरे पैदा कर रहे हैं. हम जंगलों को काटकर आलीशान निर्माण करते जा रहे हैं और दुनिया को बड़े पर्यावरणीय संकटों की ओर झोंकते जा रहे हैं.
एक वैश्विक आंकड़ा है कि वर्ष 2000 से 2005 के बीच वनों की कटाई का आकार 64 लाख हेक्टेयर था, जो कि पर्यावरणीय दृष्टि से बहुत ज्यादा है. पेड़ों के कटने से वर्षा में कमी आती है और मिट्टी का क्षरण होता है, जिससे धरती का तापमान बढ़ता है, प्रदूषण बढ़ता है. सबसे बड़ी बात कि पेड़ की कमी से शुद्ध हवा की कमी पैदा होती है, जिसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है.
जाहिर है, पेड़ों की कटाई बहुत गंभीर समस्या पैदा कर सकती है. यह बात हमें समझ लेनी चाहिए और ज्यादा-से-ज्यादा पेड़ लगाकर पर्यावरण को संकट से बचाना चाहिए. तभी हमें शुद्ध हवा नसीब होगी.

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