डेटा भंडार पर खतरा
कभी खनिज-तेल को सबसे कीमती धन की संज्ञा मिली थी, लेकिन इक्कीसवीं सदी सूचना-प्रौद्योगिकी के विस्तार की है और इस प्रद्योगिकी का कच्चा माल यानी ‘डेटा’ सबसे कीमती संसाधन बनकर उभरा है. लिहाजा, डेटा पर अधिकार तथा हिफाजत का मसला किसी देश की संप्रभुता तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिहाज से अब बहुत अहम है. मसलन, […]
कभी खनिज-तेल को सबसे कीमती धन की संज्ञा मिली थी, लेकिन इक्कीसवीं सदी सूचना-प्रौद्योगिकी के विस्तार की है और इस प्रद्योगिकी का कच्चा माल यानी ‘डेटा’ सबसे कीमती संसाधन बनकर उभरा है. लिहाजा, डेटा पर अधिकार तथा हिफाजत का मसला किसी देश की संप्रभुता तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिहाज से अब बहुत अहम है.
मसलन, फेसबुक के मंच से हुई डेटा चोरी और इसके जरिये अमेरिकी चुनावों को प्रभावित करने का हाल का मसला देखा जा सकता है. सेवा-क्षेत्र के तेज विस्तार पर टिकी भारतीय अर्थव्यवस्था की एक मुश्किल है कि वह तेजी से डिजिटल इंडिया बनने की राह पर है, लेकिन डेटा की हिफाजत का कोई आधारभूत कानून मौजूद नहीं है. आधार-संख्या को सामाजिक कल्याण की विविध योजनाओं सहित मोबाइल और बैंकिंग जैसी सेवाओं के लिए अनिवार्य बनाने के निर्देश को चुनौती देनेवाली याचिकाओं की सुनवाई के क्रम में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘डिजिटल इंडिया’ की इस बुनियादी कमी की तरफ ध्यान दिलाया है.
इस साल जनवरी में सर्वोच्च न्यायालय के पांच जजों की पीठ ने सरकारी सामाजिक कल्याण की योजनाओं से आधार-संख्या को जोड़ने के निर्देश की संवैधानिक वैधता पर नये सिरे से सुनवाई शुरू की. इससे पहले आधार-संख्या से जुड़े डेटा के ऑनलाइन लीक होने की खबरें आ चुकी थीं. लेकिन, सरकार का पक्ष था कि आधार के डेटा भंडार में सेंधमारी नहीं हुई है, लोगों का इस पर पूरा भरोसा है और आधार-संख्या का डेटा पूरी तरह सुरक्षित है.
कोर्ट ने सुनवाई के क्रम में आधार-संख्या के नियामक आधार प्राधिकरण को डेटा के हिफाजती इंतजाम के बारे में अपना पक्ष रखने को कहा. मामले में शीर्ष अदालत का अवलोकन है कि आधार-संख्या मुहैया कराने में निजी ऑपरेटर संलग्न रहे हैं, सो वे आधार-संख्या के नामांकन के वक्त दर्ज सूचनाएं अपने पास रख सकते हैं.
कोर्ट के मुताबिक एक आशंका यह भी है कि आधार-संख्या को सत्यापन का एक मंच की तरह इस्तेमाल करनेवाली कंपनियां ग्राहक की पहचान-सूचक जानकारियां कॉपी करके उसका दुरुपयोग करें. अच्छी बात यह है कि आधार के प्रतिनिधि ने कोर्ट के अवलोकन के बाद माना कि फिलहाल आधार के लिए यह जानना मुश्किल है कि किसी व्यक्ति की आधार-संख्या का सत्यापन कोई कंपनी किन उद्देश्यों से कर रही है. बहरहाल, यह मानकर संतोष नहीं किया जा सकता कि सूचना-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जो कुछ आज सुरक्षित जान पड़ रहा है, वह भविष्य में सुरक्षित नहीं भी हो सकता है.
आधार के प्रतिनिधि की यह बात आंशिक रूप से सच हो सकती है, लेकिन डेटा की हिफाजत के बुनियादी इंतजामों के अभाव को इस तर्क से छुपाया नहीं जा सकता. निजता के अधिकार को शीर्ष अदालत ने अपने एक फैसले में मौलिक अधिकारों में माना है. इस मौलिक अधिकार की रक्षा के निमित्त देश के सबसे बड़े डेटा-भंडार के रूप में उभरे आधार प्राधिकरण तथा सरकार को जवाबदेही भरे कदम उठाने की जरूरत है.