संसद का नहीं चल पाना हर हाल में रुकना ही चाहिए. सामान्य नागरिक के जीवन को प्रभावित करनेवाले अहम विधेयक विचाराधीन पड़े हैं. इस प्रस्ताव में दम तो जरूर है कि यदि संसदीय आचार की कमी से संसद नहीं चलती, तो सदस्यों को उस दिन के भत्ते नहीं मिलने चाहिए और सदन के संचालकों को इस नियम का पक्षपातरहित ढंग से क्रियान्वयन करना चाहिए. राष्ट्र अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों से उच्चतम कोटि की वैसी ही तार्किक चर्चा की अपेक्षा रखता है, जैसी अतीत में हुआ करती थी.
विपक्ष को अपनी दृष्टि का औचित्य गरिमा तथा तथ्यों के साथ सिद्ध करना चाहिए तथा सत्तापक्ष की प्रतिक्रिया भी वैसी ही होनी चाहिए. दो टूक कहा जाये, तो भारत की जनता संसद में यह अनुचित बरताव बहुत झेल चुकी. अब समय आ गया है कि सभी राजनीतिक पार्टियां यह संदेश स्वीकार कर लें.
डॉ हेमंत कुमार, भागलपुर